विवेकानन्द साहित्य >> ध्यान तथा इसकी पद्धतियाँ ध्यान तथा इसकी पद्धतियाँस्वामी विवेकानन्द
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प्रस्तुत है पुस्तक ध्यान तथा इसकी पद्धतियाँ।
दोष किसी का नहीं
अपने दोष के लिए तुम किसीको उत्तरदायी न समझो, अपने ही पैरों पर खड़े होने का प्रयत्न करो, सब कामों के लिए अपने को ही उत्तरदायी समझो।
कहो कि जिन कष्टों को हम अभी झेल रहे हैं, वे हमारे ही किये हुए कर्मों के फल है। यदि यह मान लिया जाय, तो यह भी प्रमाणित हो जाता है कि उन कर्मों को काटने का कार्य भी केवल मुझे ही करना पड़ेगा। जो कुछ हमने सृष्ट किया है, उसका हम ध्वंस भी कर सकते है, जो कुछ दूसरों ने किया है, उसका नाश हमसे कभी नहीं हो सकता।
अतएव उठो, साहसी बनो, वीर्यवान होओ। सब उत्तरदायित्व अपने कन्धे पर लो - यह याद रखो कि तुम स्वयं अपने भाग्य के निर्माता हो। तुम जो कुछ बल या सहायता चाहो, सब तुम्हारे ही भीतर विद्यमान है। अतएव इस ज्ञानरूप शक्ति के सहारे तुम बल प्राप्त करो और अपने हाथों अपना भविष्य गढ़ डालो।
गतस्य शोचना नास्ति - अब तो सारा भविष्य तुम्हारे सामने पड़ा हुआ है।
तुम सदैव यह बात स्मरण रखो कि तुम्हारा प्रत्येक शब्द, प्रत्येक विचार, प्रत्येक कार्य संचित रहेगा; और यह भी याद रखो कि जिस प्रकार तुम्हारे असत-विचार और असत्-कार्य चीतों की तरह तुम पर कूद पड़ने की ताक में है, उसी प्रकार प्रेरणादायी यह आशा भी है कि तुम्हारे सत्- विचार और सत्- कार्य भी हजारों देवताओं की शक्ति लेकर सर्वदा तुम्हारी रक्षा के लिए तैयार हैं। (२.१२०-१२१)
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