विवेकानन्द साहित्य >> ध्यान तथा इसकी पद्धतियाँ ध्यान तथा इसकी पद्धतियाँस्वामी विवेकानन्द
|
127 पाठक हैं |
प्रस्तुत है पुस्तक ध्यान तथा इसकी पद्धतियाँ।
महान जीवन ही अन्य जीवन को प्रेरणा देता है
एक मनुष्य तुम्हारे पास आता है, वह खूब पढ़ा-लिखा है, उसकी भाषा भी सुन्दर है, वह तुमसे एक घंटा बात करता है, फिर भी वह अपना असर नहीं छोड़ जाता। दूसरा मनुष्य आता है। वह इने-गिने शब्द बोलता है। शायद वे व्याकरणशुद्ध और व्यवस्थित भी नहीं होते, परन्तु फिर भी वह खूब असर कर जाता है। यह तो तुममें से बहुतों ने अनुभव किया होगा। इससे स्पष्ट है कि मनुष्य पर जो प्रभाव पड़ता है, वह केवल शब्दों द्वारा ही नहीं होता। शब्द, यही नहीं, विचार भी, शायद प्रभाव का एक- तृतीयांश ही उत्पन्न करते होंगे, परन्तु शेष दो-तृतीयांश प्रभाव तो उसके व्यक्तित्व का ही होता है। जिसे तुम वैयक्तिक आकर्षण कहते हो, वही प्रकट होकर तुमको प्रभावित कर देता है। (४.१७०-१७१)
मनुष्य जाति के बड़े बड़े नेताओं की बात यदि ली जाय, तो हमें सदा यही दिखलायी देगा कि उनका व्यक्तित्व ही उनके प्रभाव का कारण था। अब बड़े बड़े प्राचीन लेखकों और विचारकों को लो। सच पूछो तो, मूल विचार उन्होंने हमारे सम्मुख रखे ही कितने हैं? अतीतकालीन मार्गदर्शकों ने जो कुछ लिख छोड़ा है, उस पर विचार करो; उनकी लिखी हुई पुस्तकों को देखो और प्रत्येक का मूल्याङ्कन करो। असल, नये और स्वतंत्र विचार, जो अभी तक इस संसार में सोचे गये हैं, केवल मुट्ठी भर ही हैं। उन लोगों ने जो विचार हमारे लिए छोड़े हैं, उनको उन्हींकी पुस्तकों में से पढ़ो, तो वे हमें कोई दिग्गज नहीं प्रतीत होते, परन्तु फिर भी हम यह जानते हैं कि अपने समय में वे दिग्गज व्यक्ति थे। इसका कारण क्या है? वे जो बहुत बड़े प्रतीत होते थे, वह केवल उनके सोचे हुए विचारों या उनकी लिखी हुई पुस्तकों के कारण नहीं था, और न उनके दिये हुए भाषणों के कारण ही था, वरन् किसी एक दूसरी ही बात के कारण, जो अब निकल गयी है, और वह है उनका व्यक्तित्व। जैसा मैं पहले कह चुका हूँ, व्यक्तित्व दो-तृतीयांश होता है, और शेष एक-तृतीयांश होता है - मनुष्य की बुद्धि और उसके कहे हुए शब्द। यह सच्चा मनुष्यत्व या उसका व्यक्तित्व ही है जो हम पर प्रभाव डालता है। (४.१७१)
|