विवेकानन्द साहित्य >> ध्यान तथा इसकी पद्धतियाँ ध्यान तथा इसकी पद्धतियाँस्वामी विवेकानन्द
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प्रस्तुत है पुस्तक ध्यान तथा इसकी पद्धतियाँ।
माया का जाल
नारद ने एक दिन श्रीकृष्ण से पूछा, "प्रभो, माया कैसी है, मुझे दिखाइये।” कुछ दिनों बाद श्रीकृष्ण नारद को लेकर एक मरुस्थल की ओर चले। बहुत दूर जाने के बाद श्रीकृष्ण नारद से बोले, "नारद मुझे बड़ी प्यास लगी है। क्या कहीं से थोड़ा-सा जल ला सकते हो?” नारद बोले, "प्रभो, ठहरिए, मैं अभी जल लिये आया।” यह कहकर नारद चले गये।
कुछ दूरी पर एक गाँव था, नारद वहीं जल की खोज में गये। एक मकान में जाकर उन्होंने दरवाजा खटखटाया। द्वार खुला और एक परम सुन्दरी कन्या उनके सम्मुख आकर खड़ी हुई। उसे देखते ही नारद सब कुछ भूल गये। भगवान् मेरी प्रतीक्षा कर रहे होंगे, वे प्यासे होंगे, हो सकता है, प्यास से उनके प्राण भी निकल जायँ - ये सारी बातें नारद भूल गये। सब कुछ भूलकर वे उस कन्या के साथ बातचीत करने लगे। उस दिन वे अपने प्रभु के पास लौटे ही नहीं। दूसरे दिन वे फिर से उस लड़की के घर आ उपस्थित हुए और उससे बातचीत करने लगे। धीरे धीरे बातचीत ने प्रणय का रूप धारण कर लिया। तब नारद उस कन्या के पिता के पास जाकर उस कन्या के साथ विवाह करने की अनुमति माँगने लगे। विवाह हो गया। नव दम्पति उसी गाँव में रहने लगा। धीरे धीरे उनके सन्तानें भी हुईं। इस प्रकार बारह वर्ष बीत गये। इस बीच नारद के ससुर मर गये और वे उनकी सम्पति के उत्तराधिकारी हो गये। पुत्र-कलत्र, भूमि, पशु, सम्पत्ति, गृह आदि को लेकर नारद बड़े सुख-चैन से दिन बिताने लगे। कम से कम उन्हें तो यही लगने लगा कि वे बड़े सुखी है।
इतने में उस देश में बाढ़ आयी। रात के समय नदी दोनों कगारों को तोड़कर बहने लगी और सारा गाँव डूब गया। मकान गिरने लगे; मनुष्य और पशु बह बहकर डूबने लगे, नदी की धार में सब कुछ बहने लगा। नारद को भी बचने के लिये भागना पड़ा। एक हाथ से उन्होंने स्त्री को पकड़ा, दूसरे हाथ से दो बच्चों को, और एक बालक को कंधे पर बिठाकर वे उस भयंकर बाढ़ को पाँझने लगे। कुछ ही दूर जाने के बाद उन्हें पानी का वेग अत्यन्त तीव्र प्रतीत होने लगा। कन्धे पर बैठा बच्चा गिर पड़ा और बह गया। निराशा और दुःख से नारद आर्तनाद करने लगे। उसकी रक्षा करने प्रयास में एक और बालक, जिसका हाथ वे पकड़े हुए थे, छूट गया और बह गया। अपनी पत्नी को वे अपने शरीर की सारी शक्ति लगाकर पकड़े हुए थे, अन्त में तरंगों के वेग में पत्नी भी उनके हाथ से छूट गयी और स्वयं नारद बड़े कातर स्वर से विलाप करते हुए तट पर जा गिरे।
पीछे की ओर से उन्हें सौम्य वाणी सुनाई दी, “वत्स, जल कहाँ है? तुम जल का घड़ा लेने गये थे न, मैं तुम्हारी प्रतीक्षा में खड़ा हूँ। तुम्हें गये आधा घण्टा बीत चुका।” “आधा घण्टा!” नारद चिल्ला पड़े। उनके मन में तो बारह वर्ष बीत चुके थे, और आध घण्टे के भीतर ही ये सब दृश्य उनके मन में से होकर निकल गये! और यही माया है! (२.७५-७६)
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