विवेकानन्द साहित्य >> ध्यान तथा इसकी पद्धतियाँ ध्यान तथा इसकी पद्धतियाँस्वामी विवेकानन्द
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प्रस्तुत है पुस्तक ध्यान तथा इसकी पद्धतियाँ।
घास-फूस की पूली
भारत में कोल्हू में बैल जोते जाते हैं। तेल निकालने के लिए बैल गोल ही गोल घुमाया जाता है। बैल के कन्धे पर जुआ होता है। जुए का एक सिरा आगे बढ़ा होता है। उसके एक छोर पर घास की पूली बाँध दी जाती है फिर बैलकी आँख इस तरह बाँध देते हैं कि वह केवल सामने ही देख सके। बैल अपनी गर्दन बढ़ाता है और घास खाने की कोशिश करता है। ऐसा करते हुए वह लकड़ी के टुकड़े को थोड़ा आगे धकेल देता है। बैल दूसरी बार, तीसरी बार फिर कोशिश करता है और इसी तरह कोशिश करता जाता है,
परन्तु वह घास उसके मुँह में कभी नहीं आती और वह गोल गोल चक्कर लगाये ही जाता है। और ऐसे करते हुए तेल पेरता है। इसी प्रकार तुम और हम भी प्रकृति, रुपये-पैसे, स्त्री-बच्चों के जन्मजात दास हैं। आकाश-कुसुम की तरह उस घास को पाने के लिए हजारों जन्म तक हम चक्कर लगाये जाते हैं, पर जो हम पाना चाहते हैं, वह हमें नहीं मिलता। (३.१०२)
हममें से हर एक के जीवन की यही कहानी है। प्रकृति का हम पर ऐसा भीषण प्रभाव है कि उसके द्वारा बार बार ठुकराये जाने पर भी अत्यधिक उत्तेजनापूर्ण आवेश में हम उसका पीछा किये ही जाते हैं। हम निराशा में भी आस लगाये बैठे रहते हैं। (३.१०३)
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