विवेकानन्द साहित्य >> ध्यान तथा इसकी पद्धतियाँ ध्यान तथा इसकी पद्धतियाँस्वामी विवेकानन्द
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प्रस्तुत है पुस्तक ध्यान तथा इसकी पद्धतियाँ।
प्रेम ही चिरस्थायी है
दिन-रात यही जपते रहो - 'तुम्हीं मेरे पिता हो, माता हो, पति हो, प्रिय हो, प्रभु हो तथा ईश्वर हो - तुम्हारे सिवाय मुझे और कोई इच्छा नहीं, कुछ भी इच्छा नहीं, कुछ भी इच्छा नहीं।' तुम मुझमें हो, मैं तुममें हूँ। तुममें और मुझमें कोई अन्तर नहीं।' धन नष्ट हो जाता है, सौन्दर्य विलीन हो जाता है, जीवन तेजी से समाप्त हो जाता है तथा शक्ति लुप्त हो जाती है, किन्तु प्रभु चिरकाल विद्यमान रहते हैं, प्रेम निरन्तर बना रहता है।
ईश्वरासक्त हो जाओ। देह का या कुछ और का क्या हो उसकी क्या परवाह? पाप की विभीषिका में यही कहो कि हे मेरे भगवन्! हे मेरे प्रिय ! मृत्युकालीन यातना में भी यही कहो कि हे मेरे भगवन्! हे मेरे प्रिय! संसार के सभी पापों में भी यही कहते रहो कि हे मेरे भगवन्! हे मेरे प्रिय! (२.३८९)
यह जीवन एक महान् सुयोग है - क्या तुम इसकी अवहेलना कर सांसारिक सुख में फँसना चाहते हो? वे निखिल आनन्द के मूल स्रोतस्वरूप है, उस परम श्रेयस् का अनुसन्धान करो, उस परम श्रेयस् को ही अपने जीवन का लक्ष्य बनाओ और तुम परम श्रेयस् को प्राप्त हो जाओगे। (२.३८९-३९०)
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