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विवेकानन्द साहित्य >> ध्यान तथा इसकी पद्धतियाँ

ध्यान तथा इसकी पद्धतियाँ

स्वामी विवेकानन्द

प्रकाशक : रामकृष्ण मठ प्रकाशित वर्ष : 2019
पृष्ठ :80
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 5917
आईएसबीएन :9789383751914

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प्रस्तुत है पुस्तक ध्यान तथा इसकी पद्धतियाँ।

मनुष्य स्वयं अपना भाग्य-विधाता है

निर्बल व्यक्ति, जब सब गँवाकर अपने को कमजोर महसूस करते हैं, तब पैसे बनाने की बेसिर-पैर की तरकीबें अपनाते हैं और ज्योतिष एवं इन सब चीजों का सहारा लेते हैं। संस्कृत में कहावत है : 'जो कापुरुष और मूर्ख है, वह कहता है यह भाग्य है।' लेकिन बलवान पुरुष वह है, जो खड़ा हो जाता है और कहता है, 'मैं अपने भाग्य का निर्माण करूंगा।' (९.१५४-१५५)

किसी ज्योतिषी के बारे में एक प्राचीन कथा है कि एक राजा के यहाँ जाकर उसने कहा, "छः महीने में आपकी मृत्यु हो जायगी।" राजा डरकर हतबुद्धि हो गया और भयवश वहीं तत्काल प्रायः मरणासन्न हो गया। किन्तु उसका मन्त्री चतुर व्यक्ति था। उसने राजा से कहा कि ये ज्योतिषी मूर्ख होते हैं। उस पर राजा का विश्वास नहीं जमा। इससे मंत्री को इसके अतिरिक्त अन्य कोई उपाय न सूझा कि वह ज्योतिषी को राजप्रसाद में पुनः बुलाये और राजा को समझाये कि ये ज्योतिषी मूर्ख होते हैं। तब उसने उससे पूछा कि क्या तुम्हारी गणना सही है। ज्योतिषी ने कहा कि कोई गलती नहीं हो सकती। परन्तु मंत्री को संतुष्ट करने के लिए उसने पूरी गणना फिर से की और तब कहा कि वह बिल्कुल ठीक है। राजा का चेहरा फीका पड़ गया। मंत्री ने ज्योतिषी से पूछा, “और आपकी मृत्यु कब होगी, इसके बारे में आप क्या सोचते हैं?" जबाब मिला, “बारह वर्ष में"। मंत्री ने तलवार खींच ली और ज्योतिषी का सिर धड़ से अलग कर दिया और राजा से कहा, "इस मिथ्यावादी को तो आप देख रहे हैं? यह इसी क्षण मर गया।" (९.१५६)

 

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