गीता प्रेस, गोरखपुर >> अमृत के घूँट अमृत के घूँटरामचरण महेन्द्र
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प्रस्तुत है पुस्तक अमृत के घूँट.....
जब इन वासनाओंपर संयम आना प्रारम्भ होता है और मानवताके उच्चतम गुण प्रेम, सहानुभूति, करुणा, दया, सहायता संगठन, सहयोग, समष्टिके लिये व्यक्तिका त्याग इत्यादि भावनाओंका उदय होता है, तब मनुष्य मनुष्यत्वके स्तरपर निवास करता है।
धीरे-धीरे उसका और भी विकास होता है और वह सांसारिक बन्धनोंसे छूटकर आत्मा-जैसे ईश्वरीय तत्त्वकी प्राप्तिमें अग्रसर होता है। उसे अब प्रतीत होने लगता है कि विश्वमें जो कुछ भी है, उसका स्वामी परमात्मा है, सबमें प्रभुका निवास है (तेन त्यक्तेन भुञ्जीथाः) इसलिये वह त्यागपूर्वक भोग करता है, जिसको यह दृष्टि प्राप्त हो गयी है, वह धन्य है। 'सबको भगवन्मय देखनेका शुभ परिणाम होता है-त्यागमय जीवन। परिग्रह अथवा संग्रहकी बुद्धि भगवद्भक्तमें नहीं हो सकती। त्यागको पीछे रखकर भोगमय जीवन आसुरी प्रवृत्ति है, जब कि भोगको गौण बनाकर त्यागको प्रमुखता देना दैवी-सम्पत्ति है। यही आत्मोन्नतिका अर्थ है।
भगवान् श्रीकृष्णने गीता (१६। २१) में कहा है, 'नरकके तीन द्वार है-काम, क्रोध और लोभ।' आत्म-कल्याणके इच्छुक को चाहिये कि वह इन तीनोंसे सावधान रहे, अन्यथा वह नरकमें पहुँचेगा।
'संसारमें पुरुषरूपमें जीवन बितानेवाले हे जीव! तू सदैव उन्नतिकी ओर बढ़। कोई ऐसा कार्य न कर जिससे तू नीचे गिरे तथा तुझे दुःख या संताप हो। अपने जीवनको मृत्युसे मुक्त करता हुआ अर्थात् दीर्घजीवनके लिये प्रयत्न करता और इस संसारमें अग्नि तथा सूर्यकी शक्तियोंका उपयोग करता हुआ जीवन-संग्राममें विजय प्राप्त कर।'
उपर्युक्त वेदमन्त्रमें भावात्मक तथा क्रियात्मक दोनों प्रकारके कार्योंका वर्णन किया गया है। मनुष्य-जीवनका लक्ष्य क्या हो, इसकी ओर भी संकेत किया गया है। अतः आप जहाँतक पहुँच चुके है, वहाँसे उठने और आगे बढ़नेके लिये पुरुषार्थ करना चाहिये।
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- निवेदन
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- एक मानसिक व्यथा-निराकरण के उपाय
- सुख किसमें है?
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- असीम शक्तियोंकी प्रतीक हमारी ये देवमूर्तियाँ
- हिंदू-देवताओंके विचित्र वाहन, देश और चरित्र
- भोजनकी सात्त्विकता से मनकी पवित्रता आती है!
- भोजन का आध्यात्मिक उद्देश्य
- सात्त्विक आहार क्या है?
- मन को विकृत करनेवाला राजसी आहार क्या है?
- तामसी आहार क्या है?
- स्थायी सुख की प्राप्ति
- मध्यवर्ग सुख से दूर
- इन वस्तुओं में केवल सुखाभास है
- जीवन का स्थायी सुख
- आन्तरिक सुख
- सन्तोषामृत पिया करें
- प्राप्त का आदर करना सीखिये
- ज्ञान के नेत्र
- शान्ति की गोद में
- शान्ति आन्तरिक है
- सबसे बड़ा पुण्य-परमार्थ
- आत्मनिर्माण कैसे हो?
- परमार्थ के पथपर
- सदुपदेशों को ध्यानपूर्वक सुनिये
- गुप्त सामर्थ्य
- आनन्द प्राप्त करनेके अचूक उपाय
- अपने दिव्य सामर्थ्यों को विकसित कीजिये
- पाप से छूटने के उपाय
- पापसे कैसे बचें?
- पापों के प्रतीकार के लिये झींके नहीं, सत्कर्म करे!
- जीवन का सर्वोपरि लाभ
- वैराग्यपूर्ण स्थिति
- अपने-आपको आत्मा मानिये
- ईश्वरत्व बोलता है
- सुखद भविष्य में विश्वास करें
- मृत्यु का सौन्दर्य