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गीता प्रेस, गोरखपुर >> अमृत के घूँट

अमृत के घूँट

रामचरण महेन्द्र

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2007
पृष्ठ :185
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 5984
आईएसबीएन :81-293-0130-X

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प्रस्तुत है पुस्तक अमृत के घूँट.....

यदि आपके पास बहुमूल्य कीमती वस्त्र, आभूषण, सुसज्जित मकान इत्यादि नहीं है, तो दुःखी होने की आवश्यकता नहीं है। जैसे वस्त्र है, उन्हींको स्वच्छ निर्मल रखकर सादगीसे आप अपनी विशेषताएँ प्रदर्शित कर सकते हैं। वस्त्रोंके विषयमें अपनी रुचि सरल बना लीजिये। इस बातके लिये व्यर्थ क्यों दुःखी होते हैं कि आप छैल-छबीलोंकी तरह सजे-बजे नहीं हैं? जो व्यक्ति अत्यधिक बनाव-श्रृंगार में निमग्र रहते है, वे प्रायः मिथ्याभिमानी, छिछोरे, अल्पबुद्धि है; कपड़ोंके मायाजालमें झूठा सौन्दर्य लानेकी चेष्टा करते है। केवल कुरूप व्यक्तियोंको ही यह विश्वास होता है कि वस्त्रों द्वारा उनकी कुरूपता छिप जायगी। बहुव्यय, कृत्रिमता और बनावटी बनाव-श्रृंगार की बातों के लिये अशान्त रहने की कोई आवश्यकता नहीं है। आपके पास जो जैसा अच्छा-बुरा है, उसी का सदुपयोग करना प्रारम्भ कर दीजिये। अपने साधारण वस्त्रों को अच्छी तरह स्वच्छ कीजिये; यदि मैले हो गये है तो साबुन मोल लेकर उन्हें धो डालिये, इस्तरी कर लीजिये। यदि बाल कटानेके लिये पैसे नहीं है तो उन्हींको धोकर ठीक तरह सँवार लीजिये। खद्दरके सस्ते, स्वच्छ और चलाऊ वस्त्रोंमें व्यक्ति बड़ा आकर्षक प्रतीत होता है। आवश्यकता है शऊर और शिष्टाचार की। स्त्रियाँ प्रायः दूकानोंपर नयी-नयी साड़ियाँ जम्पर के कपड़े, नयी डिजाइनों के आभूषण देखकर अतृप्त-अशान्त हो जाती हैं। घरमें कलह उत्पन्न हो जाती हैं। पतिके पास आर्थिक संकट होता है तो वह बेचारा इस गृह-कलहको दूर करनेके निमित्त ऋण लेनेको बाध्य होता है। यह बड़ी मूर्खता है। स्त्रियोंको यह देखना चाहिये कि उन्हें प्राप्त कितना है? कितने कपड़े उनके ट्रैकोंमें भरे पड़े हैं? फैशन कितनी दुतगतिसे परिवर्तित होते हैं? यदि हर वर्ष पुराने स्वर्ण-आभूषणोंको तुड़ाकर नवीन रूपसे उनका पुनर्निर्माण कराया जायगा तो असली सोना क्या खाक अवशेष बचेगा? यदि वे प्राप्तका समुचित आदर करना सीख जायँ और अपनी जो साधारण-सी वस्तुएँ हैं, उन्हींकी सहायतासे अपनी प्रतिभा, योग्यता और विशेषताएँ प्रदर्शित करना प्रारम्भ कर दें; तो सहज ही सुख-शान्तिमय जीवन व्यतीत कर सकती हैं।

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    अनुक्रम

  1. निवेदन
  2. आपकी विचारधारा की सही दिशा यह है
  3. हित-प्रेरक संकल्प
  4. सुख और स्वास्थ के लिये धन अनिवार्य नहीं है
  5. रुपये से क्या मिलता है और क्या नहीं
  6. चिन्ता एक मूर्खतापूर्वक आदत
  7. जीवन का यह सूनापन!
  8. नये ढंग से जीवन व्यतीत कीजिये
  9. अवकाश-प्राप्त जीवन भी दिलचस्प बन सकता है
  10. जीवन मृदु कैसे बने?
  11. मानव-हृदय में सत्-असत् का यह अनवरत युद्ध
  12. अपने विवेकको जागरूक रखिये
  13. कौन-सा मार्ग ग्रहण करें?
  14. बेईमानी एक मूर्खता है
  15. डायरी लिखने से दोष दूर होते हैं
  16. भगवदर्पण करें
  17. प्रायश्चित्त कैसे करें?
  18. हिंदू गृहस्थ के लिये पाँच महायज्ञ
  19. मनुष्यत्व को जीवित रखनेका उपाय-अर्थशौच
  20. पाठ का दैवी प्रभाव
  21. भूल को स्वीकार करने से पाप-नाश
  22. दूसरों की भूलें देखने की प्रवृत्ति
  23. एक मानसिक व्यथा-निराकरण के उपाय
  24. सुख किसमें है?
  25. कामभाव का कल्याणकारी प्रकाश
  26. समस्त उलझनों का एक हल
  27. असीम शक्तियोंकी प्रतीक हमारी ये देवमूर्तियाँ
  28. हिंदू-देवताओंके विचित्र वाहन, देश और चरित्र
  29. भोजनकी सात्त्विकता से मनकी पवित्रता आती है!
  30. भोजन का आध्यात्मिक उद्देश्य
  31. सात्त्विक आहार क्या है?
  32. मन को विकृत करनेवाला राजसी आहार क्या है?
  33. तामसी आहार क्या है?
  34. स्थायी सुख की प्राप्ति
  35. मध्यवर्ग सुख से दूर
  36. इन वस्तुओं में केवल सुखाभास है
  37. जीवन का स्थायी सुख
  38. आन्तरिक सुख
  39. सन्तोषामृत पिया करें
  40. प्राप्त का आदर करना सीखिये
  41. ज्ञान के नेत्र
  42. शान्ति की गोद में
  43. शान्ति आन्तरिक है
  44. सबसे बड़ा पुण्य-परमार्थ
  45. आत्मनिर्माण कैसे हो?
  46. परमार्थ के पथपर
  47. सदुपदेशों को ध्यानपूर्वक सुनिये
  48. गुप्त सामर्थ्य
  49. आनन्द प्राप्त करनेके अचूक उपाय
  50. अपने दिव्य सामर्थ्यों को विकसित कीजिये
  51. पाप से छूटने के उपाय
  52. पापसे कैसे बचें?
  53. पापों के प्रतीकार के लिये झींके नहीं, सत्कर्म करे!
  54. जीवन का सर्वोपरि लाभ
  55. वैराग्यपूर्ण स्थिति
  56. अपने-आपको आत्मा मानिये
  57. ईश्वरत्व बोलता है
  58. सुखद भविष्य में विश्वास करें
  59. मृत्यु का सौन्दर्य

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