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गीता प्रेस, गोरखपुर >> अमृत के घूँट

अमृत के घूँट

रामचरण महेन्द्र

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2007
पृष्ठ :185
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 5984
आईएसबीएन :81-293-0130-X

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प्रस्तुत है पुस्तक अमृत के घूँट.....

आनन्द प्राप्त करनेके अचूक उपाय

आनन्द कोई ऐसा तत्त्व नहीं, जिसे आप धन देकर बाजार से खरीद सकें, अथवा बाग के किसी हरित-पुष्पित खेतसे काट सकें। यह वातावरण में नहीं उड़ता, न वृक्षोंकी झूमती हुई लतिकाओं पर ही लगता है। किसी अदृश्य शक्ति के आह्वान द्वारा हम इसे प्राप्त नहीं कर सकते, न देश-विदेशमें खोज करनेसे इसे पाया जा सकता है।

आनन्दका सम्बन्ध हमारे उस कार्यसमूह से है जो हमें आनन्दानुभूति प्रदान करता है। यह हमारा शरीर और शरीरमें भी विशेषतः मस्तिष्क है। मस्तिष्क एक थर्मामीटर है, जो हमें सूचित करता है कि हम कितने किस अनुपातमें आनन्दित है।

आनन्द मनुष्यकी शारीरिक तथा मानसिक क्रियाओंका एक फल है या यों समझिये कि जिस प्रकार पत्थर और लोहेके पारस्परिक संघर्षसे अग्रि उत्पन्न होती है, उसी प्रकार हमारे समाज तथा परिवारके इस सांसारिक संग्रामसे उत्पन्न नवनीतका नाम आनन्द है। थकान क्या है? उदासी किसे कहते है? अरुचिका क्या तात्पर्य है? यदि एक शब्दमें इन प्रश्रोंका उत्तर चाहें तो कहना होगा कि ये मनुष्यके काम न करने और यों ही आलस्यमें पड़े रहनेके दुष्परिणाम है। वे ही व्यक्ति उदासीका अनुभव करते है, जो खुद हाथ-पाँव नहीं हिलाना चाहते। प्रायः देखा जाता है कि अमीर-धनीवर्ग जीवनमें थकान और उदासीके शिकार रहते हैं। उनके पास हर प्रकारके आराम हैं। चलनेके लिये मोटरगाड़ी, आलीशान कोठियाँ सुन्दर वस्त्र और सुस्वादु भोजन। एक आवाज पर अनेक नौकर उपस्थित हो जाते हैं। खुद कुछ करनेको है ही नहीं, फिर आनन्द कैसे प्राप्त हो सकता है?

सच मानिये, काम न करनेसे भी एक प्रकारकी थकान उत्पन्न होती है, जो मनुष्यकी सृजनात्मक शक्तियोंको पंगु बनाकर एक प्रकारकी उदासीसे भर देती है। आलस्य आदतका अंग बनता ही जाता है फिर तो चाहे कितना ही प्रयत्न कीजिये, आप आलस्यके कीचड़ में गिर ही जाते हैं। कार्य न करनेसे शरीरको पूरी कसरत नहीं मिलती और रात्रिमें पूरी और गहरी निद्रा नहीं आती। काम न करनेवालोंको प्रकृतिकी ओरसे सजा है-अनिद्रा, अपच, सिरदर्द, कार्यमें अरुचि और अन्धकारमय उदासी।

'मन नहीं लग रहा है यह उक्ति उन व्यक्तियोंकी है, जिन्हें करनेके लिये कोई कार्य नहीं है, जो निठल्ले और बेकार है, न काम करनेके पापके भागी है, जिनका जीवन जंग लगी हुई कुल्हाड़ी की तरह बेकार और कुण्ठित हो गया है।

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    अनुक्रम

  1. निवेदन
  2. आपकी विचारधारा की सही दिशा यह है
  3. हित-प्रेरक संकल्प
  4. सुख और स्वास्थ के लिये धन अनिवार्य नहीं है
  5. रुपये से क्या मिलता है और क्या नहीं
  6. चिन्ता एक मूर्खतापूर्वक आदत
  7. जीवन का यह सूनापन!
  8. नये ढंग से जीवन व्यतीत कीजिये
  9. अवकाश-प्राप्त जीवन भी दिलचस्प बन सकता है
  10. जीवन मृदु कैसे बने?
  11. मानव-हृदय में सत्-असत् का यह अनवरत युद्ध
  12. अपने विवेकको जागरूक रखिये
  13. कौन-सा मार्ग ग्रहण करें?
  14. बेईमानी एक मूर्खता है
  15. डायरी लिखने से दोष दूर होते हैं
  16. भगवदर्पण करें
  17. प्रायश्चित्त कैसे करें?
  18. हिंदू गृहस्थ के लिये पाँच महायज्ञ
  19. मनुष्यत्व को जीवित रखनेका उपाय-अर्थशौच
  20. पाठ का दैवी प्रभाव
  21. भूल को स्वीकार करने से पाप-नाश
  22. दूसरों की भूलें देखने की प्रवृत्ति
  23. एक मानसिक व्यथा-निराकरण के उपाय
  24. सुख किसमें है?
  25. कामभाव का कल्याणकारी प्रकाश
  26. समस्त उलझनों का एक हल
  27. असीम शक्तियोंकी प्रतीक हमारी ये देवमूर्तियाँ
  28. हिंदू-देवताओंके विचित्र वाहन, देश और चरित्र
  29. भोजनकी सात्त्विकता से मनकी पवित्रता आती है!
  30. भोजन का आध्यात्मिक उद्देश्य
  31. सात्त्विक आहार क्या है?
  32. मन को विकृत करनेवाला राजसी आहार क्या है?
  33. तामसी आहार क्या है?
  34. स्थायी सुख की प्राप्ति
  35. मध्यवर्ग सुख से दूर
  36. इन वस्तुओं में केवल सुखाभास है
  37. जीवन का स्थायी सुख
  38. आन्तरिक सुख
  39. सन्तोषामृत पिया करें
  40. प्राप्त का आदर करना सीखिये
  41. ज्ञान के नेत्र
  42. शान्ति की गोद में
  43. शान्ति आन्तरिक है
  44. सबसे बड़ा पुण्य-परमार्थ
  45. आत्मनिर्माण कैसे हो?
  46. परमार्थ के पथपर
  47. सदुपदेशों को ध्यानपूर्वक सुनिये
  48. गुप्त सामर्थ्य
  49. आनन्द प्राप्त करनेके अचूक उपाय
  50. अपने दिव्य सामर्थ्यों को विकसित कीजिये
  51. पाप से छूटने के उपाय
  52. पापसे कैसे बचें?
  53. पापों के प्रतीकार के लिये झींके नहीं, सत्कर्म करे!
  54. जीवन का सर्वोपरि लाभ
  55. वैराग्यपूर्ण स्थिति
  56. अपने-आपको आत्मा मानिये
  57. ईश्वरत्व बोलता है
  58. सुखद भविष्य में विश्वास करें
  59. मृत्यु का सौन्दर्य

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