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गीता प्रेस, गोरखपुर >> अमृत के घूँट

अमृत के घूँट

रामचरण महेन्द्र

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2007
पृष्ठ :185
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 5984
आईएसबीएन :81-293-0130-X

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प्रस्तुत है पुस्तक अमृत के घूँट.....

आनन्द एक प्रकारकी आभा है; जो निरन्तर कार्य करनेवालेकी मुस्कान से प्रकट होती है। ऐरोन बर नामक एक लेखकने कहा है-'मैंने अपने जीवनका ऐसा क्रम बनाया है कि मैं अपने व्यापारमें आनन्द ढूँढ़ूँ और हर आनन्दको व्यापार बना लूँ। वस्तुतः मैं जो भी छोटा-बड़ा काम हाथमें लेता हूँ ऐसे जी लगाकर करता हूँ कि उसीमें मुझे आनन्द आने लगता है; कभी आनन्दके क्षणोंमें बहुमूल्य कार्य भी कर डालता हूँ। मैंने आनन्द और कार्यमें समझौता कर लिया है।'

टी० वास्टन कहते है-'चीनसे पीरुतक यदि आपलोगोंके आनन्दका विश्लेषण करें तो आपको विदित होगा कि वे कलात्मक कार्यों द्वारा तृप्ति प्राप्त करते है। डायडन कहते है, 'Sweet is pleasure after pain' पहले मेहनत करके शरीरको कष्ट दो, जी तोड़कर श्रम करो, जिसके फलस्वरूप प्रकृति आपको अच्छी भूख, मजबूत स्वास्थ्य और गहरी निद्रा प्रदान करेगी। क्या ये तीनों आनन्ददायी नहीं हैं?

रुचिपूर्ण कार्यमें आनन्द है। वह व्यक्ति वास्तवमें धन्य है, जिसे अपने रुचिका कार्य प्राप्त हो गया है। प्रकृतिको देखिये, हर जीव निर्दिष्ट कार्य कर आनन्द प्राप्त करता है। फुदकती हुई चिड़ियों हरिण, बन्दर, गाय, बकरी आदि सब प्रातःसे सायंकालतक कुछ-न-कुछ परिश्रम आयुपर्यन्त करते रहते हैं। इनकी समस्त शक्तियों कार्यमें संलग्न रहनेके कारण आनन्दोपलब्धिके लिये जागरूक रहती हैं। सतत कार्यशीलता उनके समस्त दुःखोंको दग्ध कर देती है।

दुःख और निराशा आपपर तभी आक्रमण करते हैं, जब आप शरीर और मनसे खाली आलसी या निश्चेष्ट रहते हैं। खाली स्थानमें कुछ-न-कुछ तो आयेगा ही। आप चाहे उसमें आसुरी सम्पत्ति-चिन्ता, निराशा, पाप, वेदना और उदासी भर लें अथवा दैवी सम्पदाएँ-उल्लास, सद्भाव और कार्यशीलता। कार्यमें संलग्न व्यक्ति अपने मन और शरीरकी समस्त शक्तियोंको काममें इतना एकाग्र कर देता है कि उसे चिन्तित और दुःखी होनेका अवकाश ही प्राप्त नहीं होता।

टामस हुडकी ये पंक्तियों गहरे सत्यसे परिपूर्ण हैं-

कार्य कीजिये, कार्य कीजिये, कार्य कीजिये
यहाँ तक कि आपका मस्तिक चकरा उठे।

जहाँतक आपके नेत्र थकान और नींदसे मूँद जायँ। यही थकान आनन्द है।

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    अनुक्रम

  1. निवेदन
  2. आपकी विचारधारा की सही दिशा यह है
  3. हित-प्रेरक संकल्प
  4. सुख और स्वास्थ के लिये धन अनिवार्य नहीं है
  5. रुपये से क्या मिलता है और क्या नहीं
  6. चिन्ता एक मूर्खतापूर्वक आदत
  7. जीवन का यह सूनापन!
  8. नये ढंग से जीवन व्यतीत कीजिये
  9. अवकाश-प्राप्त जीवन भी दिलचस्प बन सकता है
  10. जीवन मृदु कैसे बने?
  11. मानव-हृदय में सत्-असत् का यह अनवरत युद्ध
  12. अपने विवेकको जागरूक रखिये
  13. कौन-सा मार्ग ग्रहण करें?
  14. बेईमानी एक मूर्खता है
  15. डायरी लिखने से दोष दूर होते हैं
  16. भगवदर्पण करें
  17. प्रायश्चित्त कैसे करें?
  18. हिंदू गृहस्थ के लिये पाँच महायज्ञ
  19. मनुष्यत्व को जीवित रखनेका उपाय-अर्थशौच
  20. पाठ का दैवी प्रभाव
  21. भूल को स्वीकार करने से पाप-नाश
  22. दूसरों की भूलें देखने की प्रवृत्ति
  23. एक मानसिक व्यथा-निराकरण के उपाय
  24. सुख किसमें है?
  25. कामभाव का कल्याणकारी प्रकाश
  26. समस्त उलझनों का एक हल
  27. असीम शक्तियोंकी प्रतीक हमारी ये देवमूर्तियाँ
  28. हिंदू-देवताओंके विचित्र वाहन, देश और चरित्र
  29. भोजनकी सात्त्विकता से मनकी पवित्रता आती है!
  30. भोजन का आध्यात्मिक उद्देश्य
  31. सात्त्विक आहार क्या है?
  32. मन को विकृत करनेवाला राजसी आहार क्या है?
  33. तामसी आहार क्या है?
  34. स्थायी सुख की प्राप्ति
  35. मध्यवर्ग सुख से दूर
  36. इन वस्तुओं में केवल सुखाभास है
  37. जीवन का स्थायी सुख
  38. आन्तरिक सुख
  39. सन्तोषामृत पिया करें
  40. प्राप्त का आदर करना सीखिये
  41. ज्ञान के नेत्र
  42. शान्ति की गोद में
  43. शान्ति आन्तरिक है
  44. सबसे बड़ा पुण्य-परमार्थ
  45. आत्मनिर्माण कैसे हो?
  46. परमार्थ के पथपर
  47. सदुपदेशों को ध्यानपूर्वक सुनिये
  48. गुप्त सामर्थ्य
  49. आनन्द प्राप्त करनेके अचूक उपाय
  50. अपने दिव्य सामर्थ्यों को विकसित कीजिये
  51. पाप से छूटने के उपाय
  52. पापसे कैसे बचें?
  53. पापों के प्रतीकार के लिये झींके नहीं, सत्कर्म करे!
  54. जीवन का सर्वोपरि लाभ
  55. वैराग्यपूर्ण स्थिति
  56. अपने-आपको आत्मा मानिये
  57. ईश्वरत्व बोलता है
  58. सुखद भविष्य में विश्वास करें
  59. मृत्यु का सौन्दर्य

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