गीता प्रेस, गोरखपुर >> अमृत के घूँट अमृत के घूँटरामचरण महेन्द्र
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प्रस्तुत है पुस्तक अमृत के घूँट.....
अपने दिव्य सामर्थ्यों को विकसित कीजिये
आजके युगमें मानवताका कैसा भीषण हास्य हुआ है तथा निरन्तर होता जा रहा है, यह सर्वविदित है। सत्य, प्रेम, न्याय, सहानुभूति, सौहार्दकी भावनाएँ विलुप्त हो चुकी हैं तथा मानवकी बर्बर चेतना जैसे जाग उठी है!
हममेंसे प्रत्येकका यह पवित्र कर्तव्य है कि मनुष्यत्वके विकासके हेतु निरन्तर प्रयत्नशील हो। मनुष्यकी महानता इसी बातमें है कि वह स्वयं अपने अन्दर तथा दूसरोंमें उन सद्गुणों, शुभ भावनाओं एवं उत्तम आचरणोंका विकास करनेमें प्रयत्नशील हो, जिनका सम्मिलित नाम 'मानवता' है। हममेंसे प्रत्येकको उन शुभ सात्त्विक सामर्थ्योंको विकसित करनेका प्रयत्न करना चाहिये, जो हमें पशुत्व तथा असुरत्वसे ऊँचा उठाते हैं। मानवताकी पूर्णता देवत्वकी प्राप्तिका प्रथम सोपान है।
समाज तथा हमारे परिवारोंमें जो मलिन विश्वास, अविश्वास, घृणा एवं स्वार्थ संचित हो गया है, उसे निकाल देना चाहिये। प्रत्येक मुहल्लेमें सेवा-सभाएँ मानव-गोष्ठियाँ समितियाँ आदि बनें, जो मिथ्या भेद-भाव त्यागकर मानवमात्रके कल्याणका प्रयत्न करें। भ्रातृभाव, प्रेम, सौहार्द, समता, सहकारिता, सहानुभूतिका वातावरण उत्पन्न करें। खेदका विषय है, हमारे समाजमें अब भी ऐसी जातियाँ है, जिनसे प्रेम और समताका व्यवहार नहीं होता है। हमें इसमें पर्याप्त सुधार करना पड़ेगा और मानवताके नाते घृणा तथा द्वेषको सर्वथा निकालकर सबमें आत्मवत्प्रेम-भावकी प्रतिष्ठा करनी पड़ेगी।
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- निवेदन
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- हिंदू-देवताओंके विचित्र वाहन, देश और चरित्र
- भोजनकी सात्त्विकता से मनकी पवित्रता आती है!
- भोजन का आध्यात्मिक उद्देश्य
- सात्त्विक आहार क्या है?
- मन को विकृत करनेवाला राजसी आहार क्या है?
- तामसी आहार क्या है?
- स्थायी सुख की प्राप्ति
- मध्यवर्ग सुख से दूर
- इन वस्तुओं में केवल सुखाभास है
- जीवन का स्थायी सुख
- आन्तरिक सुख
- सन्तोषामृत पिया करें
- प्राप्त का आदर करना सीखिये
- ज्ञान के नेत्र
- शान्ति की गोद में
- शान्ति आन्तरिक है
- सबसे बड़ा पुण्य-परमार्थ
- आत्मनिर्माण कैसे हो?
- परमार्थ के पथपर
- सदुपदेशों को ध्यानपूर्वक सुनिये
- गुप्त सामर्थ्य
- आनन्द प्राप्त करनेके अचूक उपाय
- अपने दिव्य सामर्थ्यों को विकसित कीजिये
- पाप से छूटने के उपाय
- पापसे कैसे बचें?
- पापों के प्रतीकार के लिये झींके नहीं, सत्कर्म करे!
- जीवन का सर्वोपरि लाभ
- वैराग्यपूर्ण स्थिति
- अपने-आपको आत्मा मानिये
- ईश्वरत्व बोलता है
- सुखद भविष्य में विश्वास करें
- मृत्यु का सौन्दर्य