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गीता प्रेस, गोरखपुर >> अमृत के घूँट

अमृत के घूँट

रामचरण महेन्द्र

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2007
पृष्ठ :185
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 5984
आईएसबीएन :81-293-0130-X

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प्रस्तुत है पुस्तक अमृत के घूँट.....

हानिकर रूढ़ियाँ दूर कीजिये

मानवता की रक्षा का एकमात्र उपाय यह है कि मानव के सर्वांगीण विकास में जो सामाजिक, धार्मिक, आर्थिक, राजनीतिक या अन्य बाधाएँ है, उनको दूर कर दिया जाय। प्रत्येक मानव यह कार्य करे। अत्याचार, अविचार और अनाचार का निर्भीकता से डटकर सामना किया जाय। यदि हमें अन्य राष्ट्रोंकी प्रतियोगिता में जीवित रहना है तो समाज के प्रत्येक व्यक्ति को जागृत करना होगा, उसे शिक्षित कर आचार-विचार, कर्तव्य-अकर्तव्य, पाप-पुण्य का विवेक सिखाना होगा, सबकी जिम्मेदारी स्वयं अपनी जिम्मेदारी समझनी होगी। इस प्रकार सबको समुन्नत-संगठित कर आगे बढ़ाना होना। हम भावी मानवके लिये निष्कण्टक, आलस्यहीन, प्रमादरहित, आडम्बरविहीन, सरल-सादा, उच्च विचारोंवाला जीवन चाहते है। पाश्चात्त्य सभ्यता एवं विदेशी संस्कृतिसे हमें आँखें मूँद कर प्रभावित नहीं होना है। हमें भारतीय संस्कृति की पृष्ठभूमि पर मनुष्यत्वका विकास करना है। हमारा अन्तिम ध्येय तो वह सांस्कृतिक स्वराज्य है, जिसमें सब सुखी हों, सब सम्पन्न, शिक्षित प्रकाशमान हों, हमारी जरूरी माँगें पूर्ण हों, साहित्य-कला, ज्ञान-विज्ञानकी वृद्धि हो और स्वास्थसुख एवं शान्तिके सब साधन मानवमात्रके लिये सुलभ हों।

संवेदनशील हृदयकी आवश्यकता

मानवताकी वृद्धि एवं विकासकी एक बड़ी आवश्यकता है-संवेदनशील हृदय (दर्द-दिल), दृढ़ प्रतिज्ञता और सद्भावना। संवेदनशील जो मानवमात्रकी कसक, पीड़ा-उल्लास, हर्ष, सिसक, रोदनको अपने दिलमें महसूस करता है। जब दीन-गरीब मानवपर अत्याचार होता है, तब संवेदनशील मानवके हृदयमें टीस उठती है; जब विधवाके ऊपर लात-घूँसोंका प्रहार होता है, तब उसकी चोट उसके मनपर आघात करती है; जब लूटमार, डाकेजनी, कालाबाजार, रिश्वतसे मानवता कलंकित होती है, तब वह मन-ही-मन रोया करता है। वह शोषित-पीड़ित मानवताके प्रति सदा सद्भावना रखता है। जबतक दूसरोंपर होते हुए अत्याचार हमें तिलमिला नहीं देते, जबतक हम अपने संकुचित स्वार्थों के दायरेमें बन्द हैं, तबतक हम मानवतासे दूर हैं। अतः हमें यह स्मरण रखना चाहिये-
दर्दे दिल, पासे वफा जजबए ईमाँ होना।
आदमीयत है, यही और यही इन्सा होना।।

यम-नियम

हमारे शास्त्रोंमें मानवताकी वृद्धिके लिये यम-नियमोंका विधान रखा गया है। (१) अहिंसा, (२) सत्य, (३) अस्तेय, (४) ब्रह्मचर्य और  (५) अपरिग्रह। ये दूसरों से व्यवहार करनेके लिये हैं। आत्मसुधारके लिये इसी प्रकार (१) शौच, (२) सन्तोष, (३) तप, (४) स्वाध्याय और (५) ईश्वर-भक्ति आदि साधन माने गये। कहनेको ये छोटे-छोटे शब्द हैं, किन्तु इनका पालन कठिन है। 'कठिन' कहकर दूर हट जाना कायरता है। हमें यथाशक्ति इनकी साधना करनी चाहिये। आत्मचिन्तन द्वारा हममेंसे प्रत्येक अपनी त्रुटियोंको जाने और दृढ़तासे उन्हें दूर करनेका प्रयत्न करे।

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    अनुक्रम

  1. निवेदन
  2. आपकी विचारधारा की सही दिशा यह है
  3. हित-प्रेरक संकल्प
  4. सुख और स्वास्थ के लिये धन अनिवार्य नहीं है
  5. रुपये से क्या मिलता है और क्या नहीं
  6. चिन्ता एक मूर्खतापूर्वक आदत
  7. जीवन का यह सूनापन!
  8. नये ढंग से जीवन व्यतीत कीजिये
  9. अवकाश-प्राप्त जीवन भी दिलचस्प बन सकता है
  10. जीवन मृदु कैसे बने?
  11. मानव-हृदय में सत्-असत् का यह अनवरत युद्ध
  12. अपने विवेकको जागरूक रखिये
  13. कौन-सा मार्ग ग्रहण करें?
  14. बेईमानी एक मूर्खता है
  15. डायरी लिखने से दोष दूर होते हैं
  16. भगवदर्पण करें
  17. प्रायश्चित्त कैसे करें?
  18. हिंदू गृहस्थ के लिये पाँच महायज्ञ
  19. मनुष्यत्व को जीवित रखनेका उपाय-अर्थशौच
  20. पाठ का दैवी प्रभाव
  21. भूल को स्वीकार करने से पाप-नाश
  22. दूसरों की भूलें देखने की प्रवृत्ति
  23. एक मानसिक व्यथा-निराकरण के उपाय
  24. सुख किसमें है?
  25. कामभाव का कल्याणकारी प्रकाश
  26. समस्त उलझनों का एक हल
  27. असीम शक्तियोंकी प्रतीक हमारी ये देवमूर्तियाँ
  28. हिंदू-देवताओंके विचित्र वाहन, देश और चरित्र
  29. भोजनकी सात्त्विकता से मनकी पवित्रता आती है!
  30. भोजन का आध्यात्मिक उद्देश्य
  31. सात्त्विक आहार क्या है?
  32. मन को विकृत करनेवाला राजसी आहार क्या है?
  33. तामसी आहार क्या है?
  34. स्थायी सुख की प्राप्ति
  35. मध्यवर्ग सुख से दूर
  36. इन वस्तुओं में केवल सुखाभास है
  37. जीवन का स्थायी सुख
  38. आन्तरिक सुख
  39. सन्तोषामृत पिया करें
  40. प्राप्त का आदर करना सीखिये
  41. ज्ञान के नेत्र
  42. शान्ति की गोद में
  43. शान्ति आन्तरिक है
  44. सबसे बड़ा पुण्य-परमार्थ
  45. आत्मनिर्माण कैसे हो?
  46. परमार्थ के पथपर
  47. सदुपदेशों को ध्यानपूर्वक सुनिये
  48. गुप्त सामर्थ्य
  49. आनन्द प्राप्त करनेके अचूक उपाय
  50. अपने दिव्य सामर्थ्यों को विकसित कीजिये
  51. पाप से छूटने के उपाय
  52. पापसे कैसे बचें?
  53. पापों के प्रतीकार के लिये झींके नहीं, सत्कर्म करे!
  54. जीवन का सर्वोपरि लाभ
  55. वैराग्यपूर्ण स्थिति
  56. अपने-आपको आत्मा मानिये
  57. ईश्वरत्व बोलता है
  58. सुखद भविष्य में विश्वास करें
  59. मृत्यु का सौन्दर्य

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