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गीता प्रेस, गोरखपुर >> अमृत के घूँट

अमृत के घूँट

रामचरण महेन्द्र

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2007
पृष्ठ :185
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 5984
आईएसबीएन :81-293-0130-X

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प्रस्तुत है पुस्तक अमृत के घूँट.....


एक कवि ने लिखा है-
एकाकीपनका अन्धकार,
दुःसह है इसका मूक भार,
इसके विषादका रे न पार।

हमीं पूछते है, आखिर इस एकाकीपनका कौन जिम्मेदार है? इसे कौन उत्पन्न करता है? आपके जीवनमें जो कुछ अच्छा-बुरा है, स्वयं आपके द्वारा उत्पन्न किया हुआ है। एकाकीपन खुद आप पैदा करते है, तो उसे निकाल भी सकते है। इसका दुःसह भार आप स्वयं ही हलका कर सकते है। यदि जीवनके चतुर्दिक् आपको अगणित चीत्कारें प्रतीत होती है, क्षण-क्षण हृदय निःसंग, व्यर्थ, विफल प्रतीत होता है, प्राण विकल है तो इस दयनीय मनःस्थितिसे मुक्त होनेकी तत्पर हो जाइये।

जो व्यक्ति किसी प्रकार भी आपसे दिलचस्पी रखता है अथवा जिसमें आपकी रुचि है, उससे सम्पर्क स्थापित कीजिये, रिश्ता बनाये रखिये और छोटे-छोटे प्रयत्नों से निरन्तर उसे जोड़ते चलिये। आपमें आत्म-विश्वासकी कमी है। इसी कारण आप दूसरोंसे बच-बचकर रहते है। उनमें घुल-मिल नहीं पाते।

आप क्यों आत्मविश्वासकी न्यूनताका अनुभव कर रहे है? यह आपकी गलतफहमी के अतिरिक्त कुछ नहीं है। सच मानिये, यह समझकर कि आपमें मौलिकता नहीं है, आप अपने साथ बड़ा भारी अत्याचार कर रहे है। आप अपने अन्दर विश्वास रखकर दूसरोंसे मिलें, बरतें, उनके जीवनमंम प्रविष्ट हों, 

स्वयं अपने विश्वासों और विचारोंमें पूरी-पूरी आस्था रखें। जो कुछ सोचें आत्मविश्वासके साथ सोचें। ऐसी आदत पड़नेपर आप दूसरोंके समक्ष जाते हुए दृढ़ताका अनुभव करेंगे और एकाकीपनसे मुक्त होंगे।

मन्दिरों, साहित्यिक संस्थाओं, समाजमें रहनेवाली अनेक संस्थाओंका एक व्यावहारिक पक्ष होता है। प्रत्येक नगरमें आपको ऐसी साहित्यिक संस्थाएँ मिल जायँगी, जिनमें आप नये-नये मित्र पाकर एकाकीपन दूर कर सकते है।

सायंकाल स्कूल-कालेजों या प्राइवेट संस्थाओंमें शिक्षाका प्रबन्ध रहता है। इनमें थोड़ा-थोड़ा बचा हुआ समय व्यतीत करनेसे आप अकेलेपनको एक उन्नत कार्यमें व्ययकर प्रसन्नता प्राप्त कर सकते हैं।

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    अनुक्रम

  1. निवेदन
  2. आपकी विचारधारा की सही दिशा यह है
  3. हित-प्रेरक संकल्प
  4. सुख और स्वास्थ के लिये धन अनिवार्य नहीं है
  5. रुपये से क्या मिलता है और क्या नहीं
  6. चिन्ता एक मूर्खतापूर्वक आदत
  7. जीवन का यह सूनापन!
  8. नये ढंग से जीवन व्यतीत कीजिये
  9. अवकाश-प्राप्त जीवन भी दिलचस्प बन सकता है
  10. जीवन मृदु कैसे बने?
  11. मानव-हृदय में सत्-असत् का यह अनवरत युद्ध
  12. अपने विवेकको जागरूक रखिये
  13. कौन-सा मार्ग ग्रहण करें?
  14. बेईमानी एक मूर्खता है
  15. डायरी लिखने से दोष दूर होते हैं
  16. भगवदर्पण करें
  17. प्रायश्चित्त कैसे करें?
  18. हिंदू गृहस्थ के लिये पाँच महायज्ञ
  19. मनुष्यत्व को जीवित रखनेका उपाय-अर्थशौच
  20. पाठ का दैवी प्रभाव
  21. भूल को स्वीकार करने से पाप-नाश
  22. दूसरों की भूलें देखने की प्रवृत्ति
  23. एक मानसिक व्यथा-निराकरण के उपाय
  24. सुख किसमें है?
  25. कामभाव का कल्याणकारी प्रकाश
  26. समस्त उलझनों का एक हल
  27. असीम शक्तियोंकी प्रतीक हमारी ये देवमूर्तियाँ
  28. हिंदू-देवताओंके विचित्र वाहन, देश और चरित्र
  29. भोजनकी सात्त्विकता से मनकी पवित्रता आती है!
  30. भोजन का आध्यात्मिक उद्देश्य
  31. सात्त्विक आहार क्या है?
  32. मन को विकृत करनेवाला राजसी आहार क्या है?
  33. तामसी आहार क्या है?
  34. स्थायी सुख की प्राप्ति
  35. मध्यवर्ग सुख से दूर
  36. इन वस्तुओं में केवल सुखाभास है
  37. जीवन का स्थायी सुख
  38. आन्तरिक सुख
  39. सन्तोषामृत पिया करें
  40. प्राप्त का आदर करना सीखिये
  41. ज्ञान के नेत्र
  42. शान्ति की गोद में
  43. शान्ति आन्तरिक है
  44. सबसे बड़ा पुण्य-परमार्थ
  45. आत्मनिर्माण कैसे हो?
  46. परमार्थ के पथपर
  47. सदुपदेशों को ध्यानपूर्वक सुनिये
  48. गुप्त सामर्थ्य
  49. आनन्द प्राप्त करनेके अचूक उपाय
  50. अपने दिव्य सामर्थ्यों को विकसित कीजिये
  51. पाप से छूटने के उपाय
  52. पापसे कैसे बचें?
  53. पापों के प्रतीकार के लिये झींके नहीं, सत्कर्म करे!
  54. जीवन का सर्वोपरि लाभ
  55. वैराग्यपूर्ण स्थिति
  56. अपने-आपको आत्मा मानिये
  57. ईश्वरत्व बोलता है
  58. सुखद भविष्य में विश्वास करें
  59. मृत्यु का सौन्दर्य

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