गीता प्रेस, गोरखपुर >> अमृत के घूँट अमृत के घूँटरामचरण महेन्द्र
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प्रस्तुत है पुस्तक अमृत के घूँट.....
स्मरण रखिये, व्यस्त रहना मानसिक स्वास्थके लिये बड़ा उत्तम है। यदि आप व्यस्त रहें, कोई उन्नत कार्य करते रहें तो आप जीवनका सूनापन कदापि अनुभव न करेंगे।
खेल और मनोरंजनके अनेक कार्य मित्रता उत्पन्न करनेके नये स्थल है। टेनिस एक अच्छा खेल है। साइकिल द्वारा यात्राएँ बड़ी मजेदार होती है। आप इनके द्वारा प्रकृति का साहचर्य भी प्राप्त कर सकते है।
नये व्यक्तियों से मत शरमाइये, उनसे बातें करते हुए हकलाने मत लगिये, वरं निधड़क होकर अपना दृष्टिकोण अभिव्यक्त कीजिये। एकाकीपन और दूसरोंसे अलग-अलग रहनेकी कमजोरी स्वयं आपकी एक मानसिक कमजोरी है। दूसरोंके सामाजिक जीवनपर लुब्धदृष्टिसे देखनेके स्थानपर स्वयं आप भी मिलनसार बननेका प्रयत्न कीजिये। बच्चों-जैसी अनुचित लज्जा या अपनी हीनताका दुर्भाव आपको पस्त न करे, यह ध्यान रखिये। शारीरिक कुरूपता या दुर्बलता ऐसे कारण नहीं है, जो कि आपको दूसरोंसे पीछे रखें। सच मानिये, आपमें दूसरोंके सहयोगकी अपूर्व शक्तियाँ छिपी पड़ी हैं।
सूनापन और अकेलापनका कारण दूसरोंसे-जनता, पड़ोसी-मित्र, सांसारिक वस्तुएँ मनोरंजनके कार्य इत्यादिसे सम्पर्कोंका अभाव है। यदि आप इन सम्पर्कोंकी वृद्धि करते चलें और उन्हें अक्षुण्ण बनाये रहें, टूटने न दें तो यह अकेलापन दूर हो सकता है। जो जितने अधिक सम्पर्क रखता है, वह उतना ही प्रसन्न रहता है। ये सम्पर्क एक प्रकारकी ऐसी खिड़कियों है, जिनमें होकर आप मानवके नये-नये रूप देखकर आन्तरिक भ्रान्ति और सन्तुलनका अनुभव कर सकते है। मनुष्य अपने बनधु-बान्धवोंसे हिल-मिलकर ही प्रसन्नतासे जी सकता है, यह मत भूलिये।
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- निवेदन
- आपकी विचारधारा की सही दिशा यह है
- हित-प्रेरक संकल्प
- सुख और स्वास्थ के लिये धन अनिवार्य नहीं है
- रुपये से क्या मिलता है और क्या नहीं
- चिन्ता एक मूर्खतापूर्वक आदत
- जीवन का यह सूनापन!
- नये ढंग से जीवन व्यतीत कीजिये
- अवकाश-प्राप्त जीवन भी दिलचस्प बन सकता है
- जीवन मृदु कैसे बने?
- मानव-हृदय में सत्-असत् का यह अनवरत युद्ध
- अपने विवेकको जागरूक रखिये
- कौन-सा मार्ग ग्रहण करें?
- बेईमानी एक मूर्खता है
- डायरी लिखने से दोष दूर होते हैं
- भगवदर्पण करें
- प्रायश्चित्त कैसे करें?
- हिंदू गृहस्थ के लिये पाँच महायज्ञ
- मनुष्यत्व को जीवित रखनेका उपाय-अर्थशौच
- पाठ का दैवी प्रभाव
- भूल को स्वीकार करने से पाप-नाश
- दूसरों की भूलें देखने की प्रवृत्ति
- एक मानसिक व्यथा-निराकरण के उपाय
- सुख किसमें है?
- कामभाव का कल्याणकारी प्रकाश
- समस्त उलझनों का एक हल
- असीम शक्तियोंकी प्रतीक हमारी ये देवमूर्तियाँ
- हिंदू-देवताओंके विचित्र वाहन, देश और चरित्र
- भोजनकी सात्त्विकता से मनकी पवित्रता आती है!
- भोजन का आध्यात्मिक उद्देश्य
- सात्त्विक आहार क्या है?
- मन को विकृत करनेवाला राजसी आहार क्या है?
- तामसी आहार क्या है?
- स्थायी सुख की प्राप्ति
- मध्यवर्ग सुख से दूर
- इन वस्तुओं में केवल सुखाभास है
- जीवन का स्थायी सुख
- आन्तरिक सुख
- सन्तोषामृत पिया करें
- प्राप्त का आदर करना सीखिये
- ज्ञान के नेत्र
- शान्ति की गोद में
- शान्ति आन्तरिक है
- सबसे बड़ा पुण्य-परमार्थ
- आत्मनिर्माण कैसे हो?
- परमार्थ के पथपर
- सदुपदेशों को ध्यानपूर्वक सुनिये
- गुप्त सामर्थ्य
- आनन्द प्राप्त करनेके अचूक उपाय
- अपने दिव्य सामर्थ्यों को विकसित कीजिये
- पाप से छूटने के उपाय
- पापसे कैसे बचें?
- पापों के प्रतीकार के लिये झींके नहीं, सत्कर्म करे!
- जीवन का सर्वोपरि लाभ
- वैराग्यपूर्ण स्थिति
- अपने-आपको आत्मा मानिये
- ईश्वरत्व बोलता है
- सुखद भविष्य में विश्वास करें
- मृत्यु का सौन्दर्य