गीता प्रेस, गोरखपुर >> अमृत के घूँट अमृत के घूँटरामचरण महेन्द्र
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प्रस्तुत है पुस्तक अमृत के घूँट.....
नये ढंग से जीवन व्यतीत कीजिये
चार्ल्स डिकेन्सने 'इटलीके चित्र' नामक पुस्तकमें तीन ऐसी स्त्रियोंकी चर्चा की है, जो इटली छोड़कर किसी नये देशमें जाकर रहने और जीवनको नये ढंगसे ढालनेके लिये इच्छुक थीं। वे किसी गर्म प्रदेशमें जाना चाहती थीं; किन्तु वे धार्मिक पुस्तकों, पुराने रूढ़िवादी विचारों और अतीतके संस्कारोंके कारण एक बन्दी-जैसा जीवन व्यतीत कर रही थीं। वे सदा बाहर जानेकी सोचती ही रहीं, किन्तु जा न सकीं। एक स्थानपर टिके रहनेका मोह सदा उन्हें जकड़े रहा।
क्या आप भी अतीतके मोह या स्थानके बन्धनका अनुभव करते है? क्या अपने अन्दर कुछ ऐसी जंजीरोंका अनुभव करते है, जो आपको पुरानी चीजों, स्थानों, विचारोंसे जकड़े हुए है? क्या आप अबाध और सृजनात्मक जीवन नहीं व्यतीत कर रहे है? क्या आप पुराने जीवनमें प्राप्त सामग्री, कार्य, वस्तु या ज्ञानसे संतुष्ट हौकर निश्चेष्ट जडवत् हो गये है?
शाब्दिक दृष्टिसे हम अपने अनुभवका कुछ भी नहीं विस्मृत करते, वह हमारे गुप्त मनमें, किसी-न-किसी रन्ध्रमें निवास करता है। हमारा यह अनुभव दैनिक जीवनके किसी-न-किसी कार्यको अपने ढंगसे प्रभावित करता रहता है। उपयुक्त वातावणामें स्वप्नों या हिप्नोटिक निद्रामें-हमारी ये अतीतकालीन स्मृतियाँ जाग्रत् होकर चेतनाकी सतहपर आ जाती है। हम अपने पुराने जीवन तथा अनुभवोंसे मुक्त नहीं हो पाते। हमारे मस्तिष्कका ऐसा ही आश्चर्यमय विधान है।
किन्तु निरन्तर अतीतके कटु-मृदु अनुभवोंमें निवास करना अपने मौजूदा जीवनको भी उसीसे परिचालित होते रहने देना मानसिक तथा नैतिक स्वास्थकी दृष्टिसे उचित नहीं है। विकास एवं परिपक्वता तथा मानसिक संतुलन तभी स्थिर रह सकता है, जब आप पुरानी बातोंको, पुराने कष्ट, दुःख, गलतियों तथा अविवेकपूर्ण कृत्योंको विस्मृत करके आगे बढ़े। अतीतको पीछे छोड़ दें। हमें आवश्यकता इस बातकी है कि हम पुरानी असफलताओं तथा गलतियों या अपनी दुर्बलताओंको भूलकर या उनकी अवहेलना कर नये ढंगसे जीवन व्यतीत करें।
जॉर्ज बेनफील्ड अतीतको भूलने तथा नये सिरेसे जीवन व्यतीत करनेकी सलाह देते हैं। आपने कुछ बड़े सुन्दर उदाहरण इस प्रकार दिये हैं-
'हाँ मैं जानती हूँ, प्रिय-एक नवयुवती पत्नी ने अपने युद्धसे लौटे हुए सैनिक पतिसे कहा, 'उस रेगिस्तान तथा युद्ध-स्थलमें आपकी सेनाकी टुकड़ी सर्वश्रेष्ठ रही होगी। आप तथा आपके संगी-साथी वीर रहे होंगे। किंतु अब तो आप एक शान्त नागरिकका जीवन व्यतीत कर रहे है। आपको युद्धकी पीड़ा, हाहाकार, कठिनाइयाँ अभाव तथा पीड़ा भूल जाना चाहिये। जो बीता सो गया, सदाके लिये मर गया। जो मर गया, उस जीवनसे अनुचित मोह किस अर्थका है?'
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- परमार्थ के पथपर
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