लोगों की राय

गीता प्रेस, गोरखपुर >> अमृत के घूँट

अमृत के घूँट

रामचरण महेन्द्र

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2007
पृष्ठ :185
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 5984
आईएसबीएन :81-293-0130-X

Like this Hindi book 7 पाठकों को प्रिय

341 पाठक हैं

प्रस्तुत है पुस्तक अमृत के घूँट.....

यह सुनकर मानसिक तनाव तथा थकानसे चकनाचूर पति खिन्न होकर पत्नीपर बरस पड़ा। किन्तु पत्नीने अतीतको भूलकर जो नये सिरेसे नये प्रकार, नयी भावनाओं, सम्पर्कों, नयी उमंगोंवाला नागरिक जीवन बितानेका सुझाव पतिको दिया था, वह उचित मनोवैज्ञानिक सलाह थी।

युद्धकालमें युद्ध-भूमिपर लड़े थे या देशके शरणार्थी, जिन्होंने देशके विभाजनके युगमें असंख्य कठिनाइयाँ अभाव और अत्याचार सहे है, उन्हें अतीतसे नाता तोड़कर नये सिरेसे जीवन व्यतीत करनेकी अतीव आवश्यकता है। नये जीवनके लिये पुरानी असफलताओंके विचारोंको छोड़ देना चाहिये। अतीतके मधुर सुखमय स्थलों, अनुभवों या क्षणोंकी याद करना अपने मौजूदा जीवनके, आजके जीवनके सुखों, आनन्दोंको किरकिरा कर देना है।

जो अब है, जीवनके जो बहुमूल्य क्षण अब हमारे पास है, क्यों न हम उनकी उपयोगिता समझें और उनका आनन्दमय सदुपयोग करें? उन तीरोंके लिये क्यों कलपते-कराहते रहें जो सदाके लिये हमारे हाथसे छूट चुके है।

एक प्रौढ़ विवाहित दम्पति उन प्रारम्भिक जीवनके मादक-मोहक सपनोंकी स्मृतिमें डूबकर दुःखी रह सकता है, जो उन्होंने जीवनके सुनहरे प्रभातमें एक-दूसरेके सम्पर्कमें व्यतीत किये थे। हम जानते है कि वे दिन वास्तवमें बड़े अच्छे रहे होंगे, किन्तु उनकी यादकी कसक वर्तमान जीवनको शूलमय क्यों बनाये? यदि यह दम्पति अपनी आजकी परिपक्व मित्रता, प्रेमकी गहनता, सुख-दुःखमें सहवास द्वारा प्राप्त आत्मसंतोषको महत्त्व प्रदान करे तो मौजूदा जीवन सुखी-संतुष्ट हो सकता है। उन्हें आनन्द के उन अवसरों से लाभ उठाना चाहिये जो आजका परिपक्व जीवन इन्हें प्रदान करता है।

पुरानी असफलताओंसे नाता तोड़ स्थ्यो ही हमारे मानसिक स्वास्थके लिये उत्तम है, अन्यथा उनसे उत्पन्न आत्महीनता और आत्मग्लानि हमें खायविक दुर्बलताका शिकार बना सकती है। जिन व्यक्तियोके प्रति आपकी नाराजगी है, जिनके प्रति आप ईर्ष्या क्यते है, जिन्हानँ जीवनमें आपका कभी अनिष्ट किया है, उनके प्रति मनमें जो वैरभाव है, उन्हें तुरन्त निकाल दीजिये। नये सिरेसे उनसे सम्पर्क स्थापित कीजिये। यदि आप सद्भावना से उनकी ओर आकृष्ट होंगे तो निश्चय जानिये, आपके नये सम्बन्ध मधुर बनेंगे।

आपसे पुराने जीवनमें जानकर अथवा अनजानमें जो गलती हो गयी थी, भला अबतक, आजतक उनके लिये चिन्तित रहनेसे क्या लाभ है? इससे मस्तिष्ककी उर्वरा कल्पनाशक्ति और उत्पादक विचारधारा पंगु हो जाती है।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

    अनुक्रम

  1. निवेदन
  2. आपकी विचारधारा की सही दिशा यह है
  3. हित-प्रेरक संकल्प
  4. सुख और स्वास्थ के लिये धन अनिवार्य नहीं है
  5. रुपये से क्या मिलता है और क्या नहीं
  6. चिन्ता एक मूर्खतापूर्वक आदत
  7. जीवन का यह सूनापन!
  8. नये ढंग से जीवन व्यतीत कीजिये
  9. अवकाश-प्राप्त जीवन भी दिलचस्प बन सकता है
  10. जीवन मृदु कैसे बने?
  11. मानव-हृदय में सत्-असत् का यह अनवरत युद्ध
  12. अपने विवेकको जागरूक रखिये
  13. कौन-सा मार्ग ग्रहण करें?
  14. बेईमानी एक मूर्खता है
  15. डायरी लिखने से दोष दूर होते हैं
  16. भगवदर्पण करें
  17. प्रायश्चित्त कैसे करें?
  18. हिंदू गृहस्थ के लिये पाँच महायज्ञ
  19. मनुष्यत्व को जीवित रखनेका उपाय-अर्थशौच
  20. पाठ का दैवी प्रभाव
  21. भूल को स्वीकार करने से पाप-नाश
  22. दूसरों की भूलें देखने की प्रवृत्ति
  23. एक मानसिक व्यथा-निराकरण के उपाय
  24. सुख किसमें है?
  25. कामभाव का कल्याणकारी प्रकाश
  26. समस्त उलझनों का एक हल
  27. असीम शक्तियोंकी प्रतीक हमारी ये देवमूर्तियाँ
  28. हिंदू-देवताओंके विचित्र वाहन, देश और चरित्र
  29. भोजनकी सात्त्विकता से मनकी पवित्रता आती है!
  30. भोजन का आध्यात्मिक उद्देश्य
  31. सात्त्विक आहार क्या है?
  32. मन को विकृत करनेवाला राजसी आहार क्या है?
  33. तामसी आहार क्या है?
  34. स्थायी सुख की प्राप्ति
  35. मध्यवर्ग सुख से दूर
  36. इन वस्तुओं में केवल सुखाभास है
  37. जीवन का स्थायी सुख
  38. आन्तरिक सुख
  39. सन्तोषामृत पिया करें
  40. प्राप्त का आदर करना सीखिये
  41. ज्ञान के नेत्र
  42. शान्ति की गोद में
  43. शान्ति आन्तरिक है
  44. सबसे बड़ा पुण्य-परमार्थ
  45. आत्मनिर्माण कैसे हो?
  46. परमार्थ के पथपर
  47. सदुपदेशों को ध्यानपूर्वक सुनिये
  48. गुप्त सामर्थ्य
  49. आनन्द प्राप्त करनेके अचूक उपाय
  50. अपने दिव्य सामर्थ्यों को विकसित कीजिये
  51. पाप से छूटने के उपाय
  52. पापसे कैसे बचें?
  53. पापों के प्रतीकार के लिये झींके नहीं, सत्कर्म करे!
  54. जीवन का सर्वोपरि लाभ
  55. वैराग्यपूर्ण स्थिति
  56. अपने-आपको आत्मा मानिये
  57. ईश्वरत्व बोलता है
  58. सुखद भविष्य में विश्वास करें
  59. मृत्यु का सौन्दर्य

विनामूल्य पूर्वावलोकन

Prev
Next
Prev
Next

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book