गीता प्रेस, गोरखपुर >> अमृत के घूँट अमृत के घूँटरामचरण महेन्द्र
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प्रस्तुत है पुस्तक अमृत के घूँट.....
जिन गलतियोंके लिये आप वास्तवमें दुःखी है, उन्हें भविष्यमें कभी न दुहरानेका संकल्प कर नये सिरेसे जीवनको ढालिये।
क्या आपको ईसा महान् का वह वाक्य स्मरण है जो उन्होंने प्रायश्चित्त करनेवाले एक पापीको मूलमन्त्रके रूपमें दिया था। उन्होंन कहा था-'शान्तिमें प्रविष्ट होइये और भविष्यमें कभी ऐसा पाप न करनेका दृढ़ संकल्प कीजिये।' वास्तवमें अतीतको, उसके दुःख-कष्टोंको, पीड़ा-हाहाकार-असफलताओंको दफना दीजिये और नये सिरेसे उत्साह एवं नयी उमंगसे जीवन व्यतीत कीजिये।
नया जीवन व्यतीत करना कठिन नहीं है। नये सिरेसे अपना कमरा सजाइये। नया प्रोग्राम, हो सके तो नये वस्त्र, नयी पुस्तकें, नया वातावरण चुन लीजिये। जिन वस्त्रोंको अभीतक व्यवहार करते है, उन्हें छोड़कर नये कपड़े प्रयुक्त कीजिये। नये प्रकारका भोजन करना प्रारम्भ कीजिये। जीवनमें नया प्रोग्राम बनाकर वैचित्र उत्पन्न करना, विविधता लाना और पुरानी लीक छोड़कर नयी दिशामें चलना सरसता उत्पन्न करता है।
प्रत्येक दिन आपको पूर्णता, आशा और उत्साहकी ओर ले जा रहा है। सर्वत्र आपके लिये प्रसन्नता, आनन्द और सुख आ रहा है, फिर अतीतके शूल और कण्टकोंसे आपका क्या सरोकार?
जीवनको एक यात्रा समझिये। इसमें कटिदार झाड़-झंखाड़ और कंकरीले-पथरीले स्थान भी है, तो मधुर पवनसे स्निग्ध हरित-पुष्पित उद्यान, कल-कल निनादित सरिताएँ और संगीतमय स्थल भी है। आनन्द अधिक है, प्रकाश और संगीत, यश, प्रतिष्ठा और समृद्धि अधिक है। उन्हींसे आपका निकट-सम्बन्ध है। अनन्त सुख-सौन्दर्यकी ओर आप प्रतिदिन आगे चल रहे है, फिर जीवनयात्रामें पीछे छूटे हुए कँटीलें-पथरीले स्थलोंकी स्मृति रखनेकी क्या आवश्यकता है? जो अवसर हाथसे निकल गये उनके लिये हाथ मल-मलकर पछताना नये अवसरोंको भी हाथसे निकालना है।
कटु अतीतसे नाता तोड़कर नये ढंगसे, नये उत्साह और यौवनसे मधुर उल्लसित जीवन व्यतीत कीजिये।
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- निवेदन
- आपकी विचारधारा की सही दिशा यह है
- हित-प्रेरक संकल्प
- सुख और स्वास्थ के लिये धन अनिवार्य नहीं है
- रुपये से क्या मिलता है और क्या नहीं
- चिन्ता एक मूर्खतापूर्वक आदत
- जीवन का यह सूनापन!
- नये ढंग से जीवन व्यतीत कीजिये
- अवकाश-प्राप्त जीवन भी दिलचस्प बन सकता है
- जीवन मृदु कैसे बने?
- मानव-हृदय में सत्-असत् का यह अनवरत युद्ध
- अपने विवेकको जागरूक रखिये
- कौन-सा मार्ग ग्रहण करें?
- बेईमानी एक मूर्खता है
- डायरी लिखने से दोष दूर होते हैं
- भगवदर्पण करें
- प्रायश्चित्त कैसे करें?
- हिंदू गृहस्थ के लिये पाँच महायज्ञ
- मनुष्यत्व को जीवित रखनेका उपाय-अर्थशौच
- पाठ का दैवी प्रभाव
- भूल को स्वीकार करने से पाप-नाश
- दूसरों की भूलें देखने की प्रवृत्ति
- एक मानसिक व्यथा-निराकरण के उपाय
- सुख किसमें है?
- कामभाव का कल्याणकारी प्रकाश
- समस्त उलझनों का एक हल
- असीम शक्तियोंकी प्रतीक हमारी ये देवमूर्तियाँ
- हिंदू-देवताओंके विचित्र वाहन, देश और चरित्र
- भोजनकी सात्त्विकता से मनकी पवित्रता आती है!
- भोजन का आध्यात्मिक उद्देश्य
- सात्त्विक आहार क्या है?
- मन को विकृत करनेवाला राजसी आहार क्या है?
- तामसी आहार क्या है?
- स्थायी सुख की प्राप्ति
- मध्यवर्ग सुख से दूर
- इन वस्तुओं में केवल सुखाभास है
- जीवन का स्थायी सुख
- आन्तरिक सुख
- सन्तोषामृत पिया करें
- प्राप्त का आदर करना सीखिये
- ज्ञान के नेत्र
- शान्ति की गोद में
- शान्ति आन्तरिक है
- सबसे बड़ा पुण्य-परमार्थ
- आत्मनिर्माण कैसे हो?
- परमार्थ के पथपर
- सदुपदेशों को ध्यानपूर्वक सुनिये
- गुप्त सामर्थ्य
- आनन्द प्राप्त करनेके अचूक उपाय
- अपने दिव्य सामर्थ्यों को विकसित कीजिये
- पाप से छूटने के उपाय
- पापसे कैसे बचें?
- पापों के प्रतीकार के लिये झींके नहीं, सत्कर्म करे!
- जीवन का सर्वोपरि लाभ
- वैराग्यपूर्ण स्थिति
- अपने-आपको आत्मा मानिये
- ईश्वरत्व बोलता है
- सुखद भविष्य में विश्वास करें
- मृत्यु का सौन्दर्य