लोगों की राय

गीता प्रेस, गोरखपुर >> अमृत के घूँट

अमृत के घूँट

रामचरण महेन्द्र

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2007
पृष्ठ :185
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 5984
आईएसबीएन :81-293-0130-X

Like this Hindi book 7 पाठकों को प्रिय

341 पाठक हैं

प्रस्तुत है पुस्तक अमृत के घूँट.....

अवकाश-प्राप्त जीवन भी दिलचस्प बन सकता है

तीस वर्षकी नौकरी करनेके पश्चात् रिटायर होनेवाला व्यक्ति प्रायः सोचता है कि हम विश्राम करेंगे, कुछ कार्यभार न होगा, जिम्मेदारियाँ न होंगी, मनपर बोझ न रहेगा, अतएव हमारा जीवन सुख-शान्तिमय रहेगा। दूर-दूरसे अवकाश-प्राप्त जीवन अपना एक अजीब आकर्षण लिये हुए होता है। सम्पूर्ण जीवनका माधुर्य जैसे उसमें संचित हो उठी हो!

किंतु ये कल्पनाएँ शीघ्र ही नष्ट होने लगती है। अवकाश-प्राप्त व्यक्तिका जीवन शीघ्र ही आलस्य से भर जाता है। जो व्यक्ति तीस वर्षोंतक निरन्तर कार्यमें जुटा रहा है, उसके मनमें यह भावना आने लगती है, जैसे वह समाजका एक बेकार, आलसी, निकम्मा जीवन व्यतीत करनेवाला व्यक्ति है। जैसे उसके लिये, करनेके लिये कुछ भी शेष नहीं रहा है, उसका कार्य समाप्त हो गया है। लोग उससे मिलना-जुलना छोड़ देते है। अफसरोंको जो बड़प्पनकी भावना दूसरेके ऊपर शासन देती थी, वह शून्यमें विलीन हो जाती है। कोई भी उनकी मातहतीमें खड़ा नहीं होता; नौकरोंकी संख्या कम हो जाती है। दूसरोंपर शासनकी भावना मनुष्यके गर्व तथा 'अहम्' को फुलाये रखती है। वह उसके नशेमें छोटी-मोटी तकलीफों और असुविधाओंकी परवा नहीं करता। पेंशन पाते ही उसका शासन-विधान एक प्रकारसे समाप्त हो जाता है और वह भी एक साधारण व्यक्ति बन जाता है। गर्व चूर्ण होनेसे पेंशन पानेवालेको अपनी निर्बलता और दयनीयताका भास होने लगता है।

दूसरी भावना बेकारीकी है। मनुष्य केवल रोटीसे ही जीवित नहीं रहता, कार्यसे भी जीवित रहता है। उसके लिये कार्य उतना ही आवश्यक है, जितना कि भोजन, वस्त्र या मकान। चूँकि पेंशनरको अपना कार्य समाप्त हुआ दीखता है, उसमें अशक्तताकी भावना घर कर लेती है। निष्क्रियता, आलस्य, बेबसी तथा वृद्धावस्थाकी भावनाएँ उसके मानसिक संस्थानको निर्बलता और नैराश्यकी ओर खींचती हैं, फलतः उसकी मृत्यु निकट आ जाती है।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

    अनुक्रम

  1. निवेदन
  2. आपकी विचारधारा की सही दिशा यह है
  3. हित-प्रेरक संकल्प
  4. सुख और स्वास्थ के लिये धन अनिवार्य नहीं है
  5. रुपये से क्या मिलता है और क्या नहीं
  6. चिन्ता एक मूर्खतापूर्वक आदत
  7. जीवन का यह सूनापन!
  8. नये ढंग से जीवन व्यतीत कीजिये
  9. अवकाश-प्राप्त जीवन भी दिलचस्प बन सकता है
  10. जीवन मृदु कैसे बने?
  11. मानव-हृदय में सत्-असत् का यह अनवरत युद्ध
  12. अपने विवेकको जागरूक रखिये
  13. कौन-सा मार्ग ग्रहण करें?
  14. बेईमानी एक मूर्खता है
  15. डायरी लिखने से दोष दूर होते हैं
  16. भगवदर्पण करें
  17. प्रायश्चित्त कैसे करें?
  18. हिंदू गृहस्थ के लिये पाँच महायज्ञ
  19. मनुष्यत्व को जीवित रखनेका उपाय-अर्थशौच
  20. पाठ का दैवी प्रभाव
  21. भूल को स्वीकार करने से पाप-नाश
  22. दूसरों की भूलें देखने की प्रवृत्ति
  23. एक मानसिक व्यथा-निराकरण के उपाय
  24. सुख किसमें है?
  25. कामभाव का कल्याणकारी प्रकाश
  26. समस्त उलझनों का एक हल
  27. असीम शक्तियोंकी प्रतीक हमारी ये देवमूर्तियाँ
  28. हिंदू-देवताओंके विचित्र वाहन, देश और चरित्र
  29. भोजनकी सात्त्विकता से मनकी पवित्रता आती है!
  30. भोजन का आध्यात्मिक उद्देश्य
  31. सात्त्विक आहार क्या है?
  32. मन को विकृत करनेवाला राजसी आहार क्या है?
  33. तामसी आहार क्या है?
  34. स्थायी सुख की प्राप्ति
  35. मध्यवर्ग सुख से दूर
  36. इन वस्तुओं में केवल सुखाभास है
  37. जीवन का स्थायी सुख
  38. आन्तरिक सुख
  39. सन्तोषामृत पिया करें
  40. प्राप्त का आदर करना सीखिये
  41. ज्ञान के नेत्र
  42. शान्ति की गोद में
  43. शान्ति आन्तरिक है
  44. सबसे बड़ा पुण्य-परमार्थ
  45. आत्मनिर्माण कैसे हो?
  46. परमार्थ के पथपर
  47. सदुपदेशों को ध्यानपूर्वक सुनिये
  48. गुप्त सामर्थ्य
  49. आनन्द प्राप्त करनेके अचूक उपाय
  50. अपने दिव्य सामर्थ्यों को विकसित कीजिये
  51. पाप से छूटने के उपाय
  52. पापसे कैसे बचें?
  53. पापों के प्रतीकार के लिये झींके नहीं, सत्कर्म करे!
  54. जीवन का सर्वोपरि लाभ
  55. वैराग्यपूर्ण स्थिति
  56. अपने-आपको आत्मा मानिये
  57. ईश्वरत्व बोलता है
  58. सुखद भविष्य में विश्वास करें
  59. मृत्यु का सौन्दर्य

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book