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गीता प्रेस, गोरखपुर >> अमृत के घूँट

अमृत के घूँट

रामचरण महेन्द्र

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2007
पृष्ठ :185
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 5984
आईएसबीएन :81-293-0130-X

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प्रस्तुत है पुस्तक अमृत के घूँट.....

जीवन मृदु कैसे बने?

रिटायर्ड व्यक्तियोंको जीवनमें उलझाये रखनेके लिये कुछ कार्य चाहिये। जबतक यह कार्य आपके पास है, तबतक जीवनमें आलस्यका अनुभव न होगा। जीवनको भिन्न-भिन्न प्रकारके कार्योंसे परिपूर्ण रखना चाहिये। खाली बेकार बैठना जीवनको कम करना है।

अहंभाव मनुष्यका एक महत्त्वपूर्ण भाव है। इस भावकी तुष्टिके लिये रिटायर्ड व्यक्तिको कोई ऐसा कार्य चुन लेना चाहिये, जिसमें वह महत्त्वपूर्ण पद प्राप्त कर सके। उदाहरणस्वरूप जनताकी सेवा, उपदेश, नेतृत्व, वक्तृता, म्यूनिस्पैलिटीके कमिश्ररका कार्य, निःशुल्क अध्यापन या लेखकका कार्य। ग्रामोंमें समाज-सेवाके अनेक क्षेत्र है। पंचायतोंका निर्माण, उनका उचित संचालन, देखभाल, नेतृत्व, प्रौढ़-शिक्षण-योजना, जन-स्वास्थ्य, पशुसुधार, राजनीतिक ज्ञान आदि प्रदान करनेमें रिटायर्ड व्यक्तिका अहंभाव संतुष्ट हो सकता है।

जिस कार्यको जीवनभर करते रहे है, उसीको छोटे पैमानेपर किया जा सकता है, किसी मामूली नौकरीको कर लेनेसे भी कार्य आगे चलता है। रिटायर्ड व्यक्तिको मनोरंजनका विशेष ध्यान रखना चाहिये। छोटे-छोटे जानवरों-(जैसे तोता, मैंना, कबूतर, बिल्ली, कुत्ता, गाय, भैस, बकरी इत्यादि) का पालना अच्छा शौक है। बागवानीका कार्य, फूल-फल-तरकारियाँ उगाना, अपने बगीचेमें साधारण श्रम करना, पौधोंको जल देना स्वास्थ्यप्रद है। पाश्चात्त्य देशोंमें अनेक रिटायर्ड व्यक्ति' फूल उगाकर अपने अहंभावकी परितुष्टि करते है। इन वस्तुओंमें उनकी बड़प्पनकी भावना पूर्ण होती है।

मामूली खेल जैसे बैडमिण्टन, टेबिल टैनिस इत्यादि बड़े महत्त्वके है। रिटायर्ड व्यक्तियोंको टहलनेका आनन्द प्राप्त करना चाहिये। प्रातः तथा सायंकाल टहलनेका कार्यक्रम स्वास्थ्यप्रद है। सामूहिक यात्राएँ पहाड़ियोंकी सैर, धार्मिक स्थानोंका घूमना-फिरना उत्तम साधन है।

हमारे पूर्व-पुरुषोंने जीवनके संध्याकालमें धार्मिक स्थानोंपर यात्राओंको बहुत महत्त्व दिया है। इसका मनोवैज्ञानिक लाभ यह होता है कि मनुष्यकी विचारधारा और परिस्थितियोंमें परिवर्तन हो जाता है। परिवर्तन जीवनके निमित्त एक आवश्यक अंग है, जो अच्छे शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थके लिये अतीव आवश्यक है। नये-नये स्थान, पर्वतोंके स्वच्छ निर्मल समीर, नये प्रकारके लोगोंसे सम्पर्क, बातचीत, स्थान, मकान, जलवायु और परिस्थितियों का बदलना-ये स्वर-समता और एकरसता को दूर कर ताजगी देते है। इर्द-गिर्द एक-सी परिस्थितियों से थका हुआ मस्तिष्क नये काम, स्थान परिस्थिति से पुनः तरोताजा हो उठता है।

अवकाशप्राप्त जीवन आनन्द तथा स्वास्थ के लिये बना है। निरन्तर कार्य करते-करते जिस पुरुष अथवा स्त्रीका शरीर और मन थककर मुर्झा गया है, उसे संगीतमें रुचि बढ़ानी चाहिये। संगीतका जादू-जैसा प्रभाव होता है।

शरीर तथा मन दोनोंको अपनी शक्तियोंके हासकी पूर्ति करनेकी आवश्यकता होती है। यह कार्य शास्त्रीय ढंगसे विश्राम करनेपर ही हो सकता है। विश्रामका यह अर्थ नहीं कि आप निष्क्रिय हो जायँ और निराश होकर पड़ जायें। शारीरिक थकानको दूर करनेके लिये लेटना, आराम करना, मालिश करना, गर्म पानीसे पाँव धोना, जलपान करना, मुँह धो डालना आवश्यक है। मानसिक थकानके लिये पुरानी परिस्थितियोंसे हटकर कोई नया मनोरंजक कार्य करना चाहिये। अपनी दैनिक परिस्थितियोंसे हट जाना चाहिये; क्योंकि ये परिस्थितियाँ उन चिन्ताओं तथा मानसिक व्यथाओंसे सम्बन्धित रहती है, जो उन्हें धुलाये डालती है।

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    अनुक्रम

  1. निवेदन
  2. आपकी विचारधारा की सही दिशा यह है
  3. हित-प्रेरक संकल्प
  4. सुख और स्वास्थ के लिये धन अनिवार्य नहीं है
  5. रुपये से क्या मिलता है और क्या नहीं
  6. चिन्ता एक मूर्खतापूर्वक आदत
  7. जीवन का यह सूनापन!
  8. नये ढंग से जीवन व्यतीत कीजिये
  9. अवकाश-प्राप्त जीवन भी दिलचस्प बन सकता है
  10. जीवन मृदु कैसे बने?
  11. मानव-हृदय में सत्-असत् का यह अनवरत युद्ध
  12. अपने विवेकको जागरूक रखिये
  13. कौन-सा मार्ग ग्रहण करें?
  14. बेईमानी एक मूर्खता है
  15. डायरी लिखने से दोष दूर होते हैं
  16. भगवदर्पण करें
  17. प्रायश्चित्त कैसे करें?
  18. हिंदू गृहस्थ के लिये पाँच महायज्ञ
  19. मनुष्यत्व को जीवित रखनेका उपाय-अर्थशौच
  20. पाठ का दैवी प्रभाव
  21. भूल को स्वीकार करने से पाप-नाश
  22. दूसरों की भूलें देखने की प्रवृत्ति
  23. एक मानसिक व्यथा-निराकरण के उपाय
  24. सुख किसमें है?
  25. कामभाव का कल्याणकारी प्रकाश
  26. समस्त उलझनों का एक हल
  27. असीम शक्तियोंकी प्रतीक हमारी ये देवमूर्तियाँ
  28. हिंदू-देवताओंके विचित्र वाहन, देश और चरित्र
  29. भोजनकी सात्त्विकता से मनकी पवित्रता आती है!
  30. भोजन का आध्यात्मिक उद्देश्य
  31. सात्त्विक आहार क्या है?
  32. मन को विकृत करनेवाला राजसी आहार क्या है?
  33. तामसी आहार क्या है?
  34. स्थायी सुख की प्राप्ति
  35. मध्यवर्ग सुख से दूर
  36. इन वस्तुओं में केवल सुखाभास है
  37. जीवन का स्थायी सुख
  38. आन्तरिक सुख
  39. सन्तोषामृत पिया करें
  40. प्राप्त का आदर करना सीखिये
  41. ज्ञान के नेत्र
  42. शान्ति की गोद में
  43. शान्ति आन्तरिक है
  44. सबसे बड़ा पुण्य-परमार्थ
  45. आत्मनिर्माण कैसे हो?
  46. परमार्थ के पथपर
  47. सदुपदेशों को ध्यानपूर्वक सुनिये
  48. गुप्त सामर्थ्य
  49. आनन्द प्राप्त करनेके अचूक उपाय
  50. अपने दिव्य सामर्थ्यों को विकसित कीजिये
  51. पाप से छूटने के उपाय
  52. पापसे कैसे बचें?
  53. पापों के प्रतीकार के लिये झींके नहीं, सत्कर्म करे!
  54. जीवन का सर्वोपरि लाभ
  55. वैराग्यपूर्ण स्थिति
  56. अपने-आपको आत्मा मानिये
  57. ईश्वरत्व बोलता है
  58. सुखद भविष्य में विश्वास करें
  59. मृत्यु का सौन्दर्य

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