गीता प्रेस, गोरखपुर >> अमृत के घूँट अमृत के घूँटरामचरण महेन्द्र
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प्रस्तुत है पुस्तक अमृत के घूँट.....
संसारकी किसी भी वस्तुसे मनुष्यका सम्बन्ध नहीं है। समय समाप्त होते ही चट यहाँसे चल देना है। एक दिन सब वस्तुओंको ज्यों-का-त्यों छोड़कर जाना पड़ेगा। सब-की-सब वस्तुएँ यहीं पड़ी रह जायँगी। यह शरीर भी यहीं रह जायगा। इसलिये जबतक संसारमें रहना है, तबतक निष्कामभावसे दूसरोंकी सेवा करनी है। जब जायँगे, तब साथ कुछ ले नहीं जायँगे। बिलकुल कार्यालयके समान संसारमें काम (सेवा) करनेके लिये आये है।
- साधकोंके प्रति नामक पुस्तकसे
सज्जनो! आप विचार करें तो यह बात प्रत्यक्ष दीखेगी कि जिन देशोंमें सन्त-महात्मा घूमते हैं, जिन गाँवोंमें, जिन प्रान्तोंमें सन्त रहते हैं और जिन गाँवोंमें सन्तोंने भगवान्के नामका प्रचार किया है, वे गाँव आज विलक्षण है दूसरे गाँवोंसे। जिन गाँवोंमें सौ-दो-सौ वर्षोंसे कोई सन्त नहीं गया है, वे गाँव ऐसे ही पड़े हैं अर्थात् वहाँके लोगोंकी भूत-प्रेत-जैसी दशा है। भगवान्का नाम लेनेवाले पुरुष जहाँ घूमे हैं, पवित्रता आ गयी, विलक्षणता आ गयी, अलौकिकता आ गयी। वे गाँव सुधर गये, घर सुधर गये वहाँके व्यक्ति सुधर गये, उनको होश आ गया। वे स्वयं भी कहते हैं, हम मामूली थे पर भगवान्का नाम मिला, सन्त मिल गये तो हम मालामाल हो गये।
- भगवन्नाम नामक पुस्तकसे
भजन उसीको कहते हैं, जिसमें भगवान्का सेवन हो तथा सेवन भी वही श्रेष्ठ है, जो प्रेमपूर्वक मनसे किया जाय। मनसे प्रभुका सेवन तभी समुचितरूपसे प्रेमपूर्वक होना सम्भव है, जब हमारा उनके साथ घनिष्ठ अपनापन हो और प्रभुसे हमारा अपनापन तभी हो सकता है, जब संसारके अन्य पदार्थोंसे हमारा सम्बन्ध और अपनापन न हो।
- एकै साधे सब सधे नामक पुस्तकसे
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- निवेदन
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- हित-प्रेरक संकल्प
- सुख और स्वास्थ के लिये धन अनिवार्य नहीं है
- रुपये से क्या मिलता है और क्या नहीं
- चिन्ता एक मूर्खतापूर्वक आदत
- जीवन का यह सूनापन!
- नये ढंग से जीवन व्यतीत कीजिये
- अवकाश-प्राप्त जीवन भी दिलचस्प बन सकता है
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- मानव-हृदय में सत्-असत् का यह अनवरत युद्ध
- अपने विवेकको जागरूक रखिये
- कौन-सा मार्ग ग्रहण करें?
- बेईमानी एक मूर्खता है
- डायरी लिखने से दोष दूर होते हैं
- भगवदर्पण करें
- प्रायश्चित्त कैसे करें?
- हिंदू गृहस्थ के लिये पाँच महायज्ञ
- मनुष्यत्व को जीवित रखनेका उपाय-अर्थशौच
- पाठ का दैवी प्रभाव
- भूल को स्वीकार करने से पाप-नाश
- दूसरों की भूलें देखने की प्रवृत्ति
- एक मानसिक व्यथा-निराकरण के उपाय
- सुख किसमें है?
- कामभाव का कल्याणकारी प्रकाश
- समस्त उलझनों का एक हल
- असीम शक्तियोंकी प्रतीक हमारी ये देवमूर्तियाँ
- हिंदू-देवताओंके विचित्र वाहन, देश और चरित्र
- भोजनकी सात्त्विकता से मनकी पवित्रता आती है!
- भोजन का आध्यात्मिक उद्देश्य
- सात्त्विक आहार क्या है?
- मन को विकृत करनेवाला राजसी आहार क्या है?
- तामसी आहार क्या है?
- स्थायी सुख की प्राप्ति
- मध्यवर्ग सुख से दूर
- इन वस्तुओं में केवल सुखाभास है
- जीवन का स्थायी सुख
- आन्तरिक सुख
- सन्तोषामृत पिया करें
- प्राप्त का आदर करना सीखिये
- ज्ञान के नेत्र
- शान्ति की गोद में
- शान्ति आन्तरिक है
- सबसे बड़ा पुण्य-परमार्थ
- आत्मनिर्माण कैसे हो?
- परमार्थ के पथपर
- सदुपदेशों को ध्यानपूर्वक सुनिये
- गुप्त सामर्थ्य
- आनन्द प्राप्त करनेके अचूक उपाय
- अपने दिव्य सामर्थ्यों को विकसित कीजिये
- पाप से छूटने के उपाय
- पापसे कैसे बचें?
- पापों के प्रतीकार के लिये झींके नहीं, सत्कर्म करे!
- जीवन का सर्वोपरि लाभ
- वैराग्यपूर्ण स्थिति
- अपने-आपको आत्मा मानिये
- ईश्वरत्व बोलता है
- सुखद भविष्य में विश्वास करें
- मृत्यु का सौन्दर्य