लोगों की राय

गीता प्रेस, गोरखपुर >> अमृत के घूँट

अमृत के घूँट

रामचरण महेन्द्र

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2007
पृष्ठ :185
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 5984
आईएसबीएन :81-293-0130-X

Like this Hindi book 7 पाठकों को प्रिय

341 पाठक हैं

प्रस्तुत है पुस्तक अमृत के घूँट.....

देवता वह है, जो अपने दानवत्व को ठुकरा देता है। जो गिरकर भी अपनें-आपको उठाता है। प्रत्येक गिरने से कुछ नयी शिक्षा, कुछ नये अनुभव प्राप्त करता है।

मनको निर्बल मत बनने दीजिये। गिरते हैं तो फिर भी उठनेकी आशा बनाइये। गिरने पर निरन्तर उठने का प्रयास कीजिये। जो गिरता है, उसके उठनेके अनेक अवसर बार-बार आते है। ऐसे अवसरोंकी प्रतीक्षा करते रहिये। यदि आपका सत् अंश (या देवत्व) जाग्रत् रहा तो निश्चय जानिये आप उत्थानकी ओर बढ़ेंगे।

जैसे आप अपने-आपको सच्चे हृदयसे दिखानेकी चेष्टा करते है, वैसे ही आप वास्तवमें बनते जाते है। आप स्वयं अपने स्वामी है। यदि आप दृढ़ सात्त्विक विचार रखनेवाले है तो निश्चय ही संकल्पके अनुसार अपनी मानसिक, आध्यात्मिक और शारीरिक उन्नति कर सकते है।

सत् (अर्थात् सत्य, शुभ) को ही धारण कीजिये। यदि वाणी से सत्य बोलें और किसीको धोखा न दें तो वाणीका संयम हो जायगा। यदि कर्म सच्चे करें, इन्द्रियोंको रोकें तो कर्म-संयम हो जायगा। यदि मनसे व्यर्थ गंदे मोहजाल, वासना, दुष्ट इच्छाओं के विचारों को रोकें तो मनका संयम हो जायगा। तात्पर्य यह है कि सत्को हर प्रकार हर दिशामें धारण करनेसे उन्नति होगी। विचारधारा ही प्रत्येक कर्मकी जननी है एवं चित्तकी एकाग्रता या चित्तसंयम उसका स्वामी है, इसलिये प्रत्येक स्थान, काल और परिस्थितिमें अपने सत्-स्वरूपका सदैव ध्यान रखिये। शास्त्रोंमें कहा भी गया है-

यस्वानुभवपर्यन्ता बुद्धिस्तस्वे प्रवर्तते।
तछष्टिगोचराः सर्वे मुच्यन्ते सर्वकिल्विषैः।।

जिसकी बुद्धि अद्वितीय आत्मामें प्रवृत्त होती है, जो सर्वभूतोंमें आत्मा ही देखता है, ऐसा पुरुष जिसको कृपा करके देख लेता है, उसके सब पाप नष्ट हो जाते है।
 

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

    अनुक्रम

  1. निवेदन
  2. आपकी विचारधारा की सही दिशा यह है
  3. हित-प्रेरक संकल्प
  4. सुख और स्वास्थ के लिये धन अनिवार्य नहीं है
  5. रुपये से क्या मिलता है और क्या नहीं
  6. चिन्ता एक मूर्खतापूर्वक आदत
  7. जीवन का यह सूनापन!
  8. नये ढंग से जीवन व्यतीत कीजिये
  9. अवकाश-प्राप्त जीवन भी दिलचस्प बन सकता है
  10. जीवन मृदु कैसे बने?
  11. मानव-हृदय में सत्-असत् का यह अनवरत युद्ध
  12. अपने विवेकको जागरूक रखिये
  13. कौन-सा मार्ग ग्रहण करें?
  14. बेईमानी एक मूर्खता है
  15. डायरी लिखने से दोष दूर होते हैं
  16. भगवदर्पण करें
  17. प्रायश्चित्त कैसे करें?
  18. हिंदू गृहस्थ के लिये पाँच महायज्ञ
  19. मनुष्यत्व को जीवित रखनेका उपाय-अर्थशौच
  20. पाठ का दैवी प्रभाव
  21. भूल को स्वीकार करने से पाप-नाश
  22. दूसरों की भूलें देखने की प्रवृत्ति
  23. एक मानसिक व्यथा-निराकरण के उपाय
  24. सुख किसमें है?
  25. कामभाव का कल्याणकारी प्रकाश
  26. समस्त उलझनों का एक हल
  27. असीम शक्तियोंकी प्रतीक हमारी ये देवमूर्तियाँ
  28. हिंदू-देवताओंके विचित्र वाहन, देश और चरित्र
  29. भोजनकी सात्त्विकता से मनकी पवित्रता आती है!
  30. भोजन का आध्यात्मिक उद्देश्य
  31. सात्त्विक आहार क्या है?
  32. मन को विकृत करनेवाला राजसी आहार क्या है?
  33. तामसी आहार क्या है?
  34. स्थायी सुख की प्राप्ति
  35. मध्यवर्ग सुख से दूर
  36. इन वस्तुओं में केवल सुखाभास है
  37. जीवन का स्थायी सुख
  38. आन्तरिक सुख
  39. सन्तोषामृत पिया करें
  40. प्राप्त का आदर करना सीखिये
  41. ज्ञान के नेत्र
  42. शान्ति की गोद में
  43. शान्ति आन्तरिक है
  44. सबसे बड़ा पुण्य-परमार्थ
  45. आत्मनिर्माण कैसे हो?
  46. परमार्थ के पथपर
  47. सदुपदेशों को ध्यानपूर्वक सुनिये
  48. गुप्त सामर्थ्य
  49. आनन्द प्राप्त करनेके अचूक उपाय
  50. अपने दिव्य सामर्थ्यों को विकसित कीजिये
  51. पाप से छूटने के उपाय
  52. पापसे कैसे बचें?
  53. पापों के प्रतीकार के लिये झींके नहीं, सत्कर्म करे!
  54. जीवन का सर्वोपरि लाभ
  55. वैराग्यपूर्ण स्थिति
  56. अपने-आपको आत्मा मानिये
  57. ईश्वरत्व बोलता है
  58. सुखद भविष्य में विश्वास करें
  59. मृत्यु का सौन्दर्य

विनामूल्य पूर्वावलोकन

Prev
Next
Prev
Next

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book