गीता प्रेस, गोरखपुर >> अमृत के घूँट अमृत के घूँटरामचरण महेन्द्र
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प्रस्तुत है पुस्तक अमृत के घूँट.....
आपके पारिवारिक जीवनमें कैसी उन्नति है? आप अपने परिवारके प्रत्येक सदस्यकी उन्नतिके लिये कैसा प्रयत्न कर रहे है, यह भी लिखिये।
डायरी आपकी सवर्मीण उन्नतिका मापदष्ठ है। वैयक्तिक, सामाजिक, पारिवारिक, धार्मिक, आध्यात्मिक-सभी उन्नतिका ब्योरा तथा बुरी आदतों, कमजोरियों-भूलोंके प्रति पश्चात्ताप दर्ज होना चाहिये। प्राणायाम, धार्मिक पुस्तकोंका स्वाध्याय-मनन, आपका पश्चात्ताप और उन्नतिकी ओर प्रगति उसमें चित्रित होनी चाहिये।
दैनिक डायरी आपका दुःख-सुख, हर्ष-विषाद, प्रशंसा-ताड़ना अपनी आलोचना-प्रत्यालोचनामें सच्चा साथी है। मनोविज्ञान का यह नियम है कि अपनी व्यथा, आन्तरिक हर्ष, विषाद, कसक, वेदना, हूक या आनन्ददायिनी आशा, अभिलाषा, सौन्दर्यशीलता, प्रेम, सुख, महत्त्वाकांक्षा आदि दूसरोंसे कहनेसे मन प्रसन्न होता है। अपनी मर्म-व्यथाएँ दूसरोंसे प्रकट कर देनेसे मनकी शून्यता एवं आकुलता दूर होती है, पीड़ा और हृदयद्रावक क्रन्दन बह जाता है। अन्तराल स्वच्छ हो उठता है। तम-निशा दूर होकर मनमें प्रभातकालीन आशा-रश्मिका उदय होता है। हृदयमें हरियाली और रससिक्त बहुमुखी तरंगिणी प्रवाहित होने लगती है। अवसाद दूर होता है। डायरी आपका ऐसा अनन्य मित्र है, सच्चा साथी, हितैषी, सुहृद है, जिससे आप अपने मनकी पीड़ा कह सकते है। हृदयकी जलनपर सहानुभूतिका मरहम लगा सकते है। आशा और उत्साह प्राप्त कर सकते है। अतः स्वयं अपने-आपसे पृथक् होकर डायरी द्वारा अपने नये संकल्प लिखिये। कुकृत्यों तथा गलतियों पर हार्दिक पश्चात्ताप प्रकट कीजिये। उनसे कोसों दूर रहने का दृढ़ निश्चय लिखिये। लिखे हुए निश्चयों में अमित बल होता है। हम जितनी देर तक कोई बात लिखते है, उतनी देर तक उसी प्रकार के विचार-प्रवाह में बहते है। हमारा अभ्यन्तर प्रदेश उतनी देरतक उन्हीं विचारों, उसी वातावरण में रहकर तदनुसार विकसित होता है। स्वयं अपनी आलोचना लिखने से हमारी आत्मनिरीक्षण की शक्ति दृढ़ होती है। अपने मानसिक त्रुटियों, क्लेशोंके कारण ढूँढ़कर हम स्वयं ही उनका निवारण करते हैं।
डायरी एक ऐसा सच्चा शिक्षक है, जो हमें सत्यपथपर आरूढ़ होनेमें सहायता करता है और क्षण-क्षण भागते हुए समय-कम होती हुई आयु-सम्पदाका लेखा-जोखा रखती है। अपने बीते हुए विचारोंको पुनः पढ़कर हमें अपने क्रमिक विकास का ज्ञान होता है।
डायरी लिखनेकी आदत डालिये।
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- निवेदन
- आपकी विचारधारा की सही दिशा यह है
- हित-प्रेरक संकल्प
- सुख और स्वास्थ के लिये धन अनिवार्य नहीं है
- रुपये से क्या मिलता है और क्या नहीं
- चिन्ता एक मूर्खतापूर्वक आदत
- जीवन का यह सूनापन!
- नये ढंग से जीवन व्यतीत कीजिये
- अवकाश-प्राप्त जीवन भी दिलचस्प बन सकता है
- जीवन मृदु कैसे बने?
- मानव-हृदय में सत्-असत् का यह अनवरत युद्ध
- अपने विवेकको जागरूक रखिये
- कौन-सा मार्ग ग्रहण करें?
- बेईमानी एक मूर्खता है
- डायरी लिखने से दोष दूर होते हैं
- भगवदर्पण करें
- प्रायश्चित्त कैसे करें?
- हिंदू गृहस्थ के लिये पाँच महायज्ञ
- मनुष्यत्व को जीवित रखनेका उपाय-अर्थशौच
- पाठ का दैवी प्रभाव
- भूल को स्वीकार करने से पाप-नाश
- दूसरों की भूलें देखने की प्रवृत्ति
- एक मानसिक व्यथा-निराकरण के उपाय
- सुख किसमें है?
- कामभाव का कल्याणकारी प्रकाश
- समस्त उलझनों का एक हल
- असीम शक्तियोंकी प्रतीक हमारी ये देवमूर्तियाँ
- हिंदू-देवताओंके विचित्र वाहन, देश और चरित्र
- भोजनकी सात्त्विकता से मनकी पवित्रता आती है!
- भोजन का आध्यात्मिक उद्देश्य
- सात्त्विक आहार क्या है?
- मन को विकृत करनेवाला राजसी आहार क्या है?
- तामसी आहार क्या है?
- स्थायी सुख की प्राप्ति
- मध्यवर्ग सुख से दूर
- इन वस्तुओं में केवल सुखाभास है
- जीवन का स्थायी सुख
- आन्तरिक सुख
- सन्तोषामृत पिया करें
- प्राप्त का आदर करना सीखिये
- ज्ञान के नेत्र
- शान्ति की गोद में
- शान्ति आन्तरिक है
- सबसे बड़ा पुण्य-परमार्थ
- आत्मनिर्माण कैसे हो?
- परमार्थ के पथपर
- सदुपदेशों को ध्यानपूर्वक सुनिये
- गुप्त सामर्थ्य
- आनन्द प्राप्त करनेके अचूक उपाय
- अपने दिव्य सामर्थ्यों को विकसित कीजिये
- पाप से छूटने के उपाय
- पापसे कैसे बचें?
- पापों के प्रतीकार के लिये झींके नहीं, सत्कर्म करे!
- जीवन का सर्वोपरि लाभ
- वैराग्यपूर्ण स्थिति
- अपने-आपको आत्मा मानिये
- ईश्वरत्व बोलता है
- सुखद भविष्य में विश्वास करें
- मृत्यु का सौन्दर्य