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गीता प्रेस, गोरखपुर >> अमृत के घूँट

अमृत के घूँट

रामचरण महेन्द्र

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2007
पृष्ठ :185
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 5984
आईएसबीएन :81-293-0130-X

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प्रस्तुत है पुस्तक अमृत के घूँट.....

डायरी कैसे लिखें?

एक ऐसी डायरी खरीदिये या बना लीजिये, जिसमें एक पृष्ठ प्रतिदिनके लिये दिया हुआ हो। यदि काफी लंबा न हो तो एक साधारण कापी से भी कार्य चलाया जा सकता है। इसमें प्रतिरात्रि में अपने दिनभर के कार्यों का सिंहावलोकन कराइये। आपने जो कुछ अच्छा या बुरा किया, किसीको अपशब्द कहा अथवा सद्गुणोंके लिये हार्दिक प्रशंसा की, किसीकी सेवा- सहायता की, अथवा दान किया, उसे लिखिये।

समयका ब्योरा भी लिखिये। कितना समय सोनेमें, नित्यकर्ममें, व्यर्थ बकवास करनेमें, मनोरंजन आदिमें व्यय किया है? छः घण्टे निद्राके अतिरिक्त अन्य समय सोकर नष्ट मत कीजिये। दिनमें भोजनके पश्चात् आप थोड़ा विश्राम कर सकते है; पर सोनेसे शरीरमें आलस्य आता है, मन भारी-भारी बना रहता है। लिखिये कि कितनी देर व्यायाम किया, टहलने गये, घूमे, मित्रों के पास मिलने गये। कितना समय व्यर्थ नष्ट किया?

अपने आचार-व्यवहारकी आलोचना भी रखिये। कितनी बार झूठ बोले और उसके लिये अपनेको कितनी, कैसी सजा दी, भविष्यमें पुनरावृत्ति न करनेके लिये कैसा प्रयत्न चला? कितनी बार काम, क्रोध, ईर्ष्या, चिन्ताका वेग आया और उसे दूर करनेके लिये आपने क्या किया? आपने कैसा दण्ड दिया? कितनी-कितनी बुरी आदतोंको दूर करने तथा नवीन सद्धावनाओं, अच्छी आदतोंको धारण करनेमें समर्थ रहे? किन-किन दैवी गुणोंका आप विकास कर रहे है? कौन-सी भावना, चिन्ता, विकार, मनोवेग आपको अधिक सताते है? उन्हें सेकनेमें आप कितना उद्योगशील और समर्थ हुए है?

आध्यात्मिक उन्नतिका ब्योरा दर्ज कीजिये। आप सांसारिकता से कितना छूट रहे है? माया, मोह, ममता आपको दुनियामें कितना बाँधे हुए है? आप स्वार्थ या लोभवश क्या-क्या कर बैठते हैं? अपने इष्टदेवका ध्यान, कीर्तन-भजन, सद्ग्रन्थावलोकन आप कितनी देर करते है? सत्संग कितनी देर करते है? स्वाध्याय में कितना समय लगाते है? स्वार्थरहित निष्काम सेवामें कितना समय आप व्यय करते है? गीताके कितने श्लोक पढ़े, कितनों और किन-किनपर अमल किया? जप और ध्यानकी ओर कैसी प्रगति रही? ब्रह्मचर्यको अपनाने तथा भोग-विलासके परित्यागके हेतु कैसी श्रद्धा चल रही है? इन्द्रियनिग्रह और त्यागवृत्तिकी धारणा कैसी है? सांसारिक भोगोंको कैसे छोड़ रहे है? आत्मकल्याणके क्षेत्रमें जो-जो प्रगति हो, उसे दर्ज करते चलिये।

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    अनुक्रम

  1. निवेदन
  2. आपकी विचारधारा की सही दिशा यह है
  3. हित-प्रेरक संकल्प
  4. सुख और स्वास्थ के लिये धन अनिवार्य नहीं है
  5. रुपये से क्या मिलता है और क्या नहीं
  6. चिन्ता एक मूर्खतापूर्वक आदत
  7. जीवन का यह सूनापन!
  8. नये ढंग से जीवन व्यतीत कीजिये
  9. अवकाश-प्राप्त जीवन भी दिलचस्प बन सकता है
  10. जीवन मृदु कैसे बने?
  11. मानव-हृदय में सत्-असत् का यह अनवरत युद्ध
  12. अपने विवेकको जागरूक रखिये
  13. कौन-सा मार्ग ग्रहण करें?
  14. बेईमानी एक मूर्खता है
  15. डायरी लिखने से दोष दूर होते हैं
  16. भगवदर्पण करें
  17. प्रायश्चित्त कैसे करें?
  18. हिंदू गृहस्थ के लिये पाँच महायज्ञ
  19. मनुष्यत्व को जीवित रखनेका उपाय-अर्थशौच
  20. पाठ का दैवी प्रभाव
  21. भूल को स्वीकार करने से पाप-नाश
  22. दूसरों की भूलें देखने की प्रवृत्ति
  23. एक मानसिक व्यथा-निराकरण के उपाय
  24. सुख किसमें है?
  25. कामभाव का कल्याणकारी प्रकाश
  26. समस्त उलझनों का एक हल
  27. असीम शक्तियोंकी प्रतीक हमारी ये देवमूर्तियाँ
  28. हिंदू-देवताओंके विचित्र वाहन, देश और चरित्र
  29. भोजनकी सात्त्विकता से मनकी पवित्रता आती है!
  30. भोजन का आध्यात्मिक उद्देश्य
  31. सात्त्विक आहार क्या है?
  32. मन को विकृत करनेवाला राजसी आहार क्या है?
  33. तामसी आहार क्या है?
  34. स्थायी सुख की प्राप्ति
  35. मध्यवर्ग सुख से दूर
  36. इन वस्तुओं में केवल सुखाभास है
  37. जीवन का स्थायी सुख
  38. आन्तरिक सुख
  39. सन्तोषामृत पिया करें
  40. प्राप्त का आदर करना सीखिये
  41. ज्ञान के नेत्र
  42. शान्ति की गोद में
  43. शान्ति आन्तरिक है
  44. सबसे बड़ा पुण्य-परमार्थ
  45. आत्मनिर्माण कैसे हो?
  46. परमार्थ के पथपर
  47. सदुपदेशों को ध्यानपूर्वक सुनिये
  48. गुप्त सामर्थ्य
  49. आनन्द प्राप्त करनेके अचूक उपाय
  50. अपने दिव्य सामर्थ्यों को विकसित कीजिये
  51. पाप से छूटने के उपाय
  52. पापसे कैसे बचें?
  53. पापों के प्रतीकार के लिये झींके नहीं, सत्कर्म करे!
  54. जीवन का सर्वोपरि लाभ
  55. वैराग्यपूर्ण स्थिति
  56. अपने-आपको आत्मा मानिये
  57. ईश्वरत्व बोलता है
  58. सुखद भविष्य में विश्वास करें
  59. मृत्यु का सौन्दर्य

विनामूल्य पूर्वावलोकन

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