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गीता प्रेस, गोरखपुर >> अमृत के घूँट

अमृत के घूँट

रामचरण महेन्द्र

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2007
पृष्ठ :185
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 5984
आईएसबीएन :81-293-0130-X

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प्रस्तुत है पुस्तक अमृत के घूँट.....

डायरी लिखने से दोष दूर होते हैं

डायरी लिखना महापुरुषोंका एक दैनिक कार्य रहा है। रात्रिमें सोनेसे पूर्व वे दिनभरका लेखा-जोखा अपनी डायरीमें लिखते रहे है। हमारे मनमें अनेक-अनेक अन्तर्द्वन्द्व होते रहते है। असत्यभाषण, क्रोध, काम इत्यादि दुष्ट मनोविकारोंके वशीभूत होकर हम अनेक गलतियों बेईमानी, कपट, मिथ्याचार किया करते है। ये दोष मनके मनमें ही रह जाते है। मन ही चोरीसे हमें पथभ्रष्ट करता है। मनके ये राक्षस किसी-न-किसी कोनेमें छिपकर उभर उठनेकी प्रतीक्षा किया करते हैं। यदि हम इन्हें मनमें छिपाये रहें तो हमें सदा यह भय रहता है कि न जाने ये कब उठकर हमें गिरा देंगे। इन्हें बार-बार मारने, चाबुकसे पीटने, नियन्तित करने और सत्पथपर अग्रसर करनेके हेतु डायरी अमूल्य साधन है।

डायरी हमारे समय तथा कार्योंका दैनिक लेखा-जोखा है। हमारे मनमें कौन-सा विचार अच्छा या बुरा आया? क्यों आया? नहीं आना चाहिये था? आगे नहीं आयेगा? आदि प्रश्रोंका उत्तर हमें प्रतिदिन डायरीमें दर्ज करना चाहिये। ऐसा करके हम स्वयं अपने दोषोंको परखने, अपनेकी ताड़ने और परिष्कार करनेवाले होते है। जब हम अपने दोषोंको दूसरेसे कहते अथवा लिखते है, तब हममें उनसे बचनेकी प्रवृत्ति दृढ़ होती है। हम उनसे मुक्त होकर उच्चतर जीवनकी अभिलाषा प्रकट करते है। अपनी गलतियोंके लिये पक्षात्ताप करते है। स्वयं अपनेसे? सान्त्वना और मनःशान्ति भी प्राप्त करते हैं।

डायरी लिखने से विचारोंमें स्पष्टता आती है। यदि सब दोषोंकी सूची हमारे सामने रहे तो उन्हें दूर करनेमें वृत्ति लगी रहती है।-कहते है, बेंजामिन फ्रेंकलिनने यही आत्मसुधारका साधन अपनाया था। प्रतिदिन वे जो कुछ उत्तम अथवा निकृष्ट कार्य करते थे, रात्रिमें उसे डायरीमें दर्ज करते थे। निकृष्ट कार्यपर विक्षोभ प्रकट करते और भविष्यमें उसकी पुनरावृत्ति न करनेकी प्रतिज्ञा और दृढ़ संकल्प करते थे। वे अपने आलस्य, प्रमाद, क्रोध, वासना आदिके लिये आत्मग्लानि प्रकट करते तथा आगे इन दुर्गुणोंमें न पड़नेका संकल्प किया करते थे। सन्मार्गका अवलम्बन तथा निकृष्टसे सम्बन्ध-विच्छेद करते-करते अन्ततः आत्मसुधारमें अच्छी प्रगति की थी। वे अपने मनकी चंचलता दूर कर सकते थे। अन्य महापुरुषों ने भी डायरी लिखना जारी रखा है। जेम्स ऐलनकी डायरी आध्यात्मिक वृत्तिके जिज्ञासुओंके हेतु आज भी आकाशदीपका कार्य करती है। महात्मा गाँधी भी डायरीकी महत्ता समझाते रहते थे। स्वामी शिवानन्द महाराजने लिखा है-

'प्रतिदिन आध्यात्मिक डायरी लिखना अत्यन्त आवश्यक साधन और महत्त्वका कार्य है........डायरी मनको ईश्वरकी ओर हाँकनेके लिये चाबुकका कार्य करती है। यह मनुष्योंको स्वतन्त्रता और शाश्वत आनन्दका मार्ग बतलाती है। यह आपकी गुरु है, नेत्र खोलनेवाली है। यह मननशक्ति को बढ़ाती है। यह आपकी तमाम बुरी आदतोंको छुड़ाने तथा आध्यात्मिक साधनामें नियमित रहनेसे सहायता करती है। यदि डायरी नित्य लिखा जाय तो इससे आध्यात्मिक पथपर द्रुतगति प्राप्त होती है। जिन्हें धर्माचार, आध्यात्मिकता में उन्नति करने की अभिलाषा है और तेजी से आगे बढ़ने की लालसा है, उन्हें अपने नित्य कर्मोंका विवरण प्रतिदिन अवश्य रखना चाहिये।'

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    अनुक्रम

  1. निवेदन
  2. आपकी विचारधारा की सही दिशा यह है
  3. हित-प्रेरक संकल्प
  4. सुख और स्वास्थ के लिये धन अनिवार्य नहीं है
  5. रुपये से क्या मिलता है और क्या नहीं
  6. चिन्ता एक मूर्खतापूर्वक आदत
  7. जीवन का यह सूनापन!
  8. नये ढंग से जीवन व्यतीत कीजिये
  9. अवकाश-प्राप्त जीवन भी दिलचस्प बन सकता है
  10. जीवन मृदु कैसे बने?
  11. मानव-हृदय में सत्-असत् का यह अनवरत युद्ध
  12. अपने विवेकको जागरूक रखिये
  13. कौन-सा मार्ग ग्रहण करें?
  14. बेईमानी एक मूर्खता है
  15. डायरी लिखने से दोष दूर होते हैं
  16. भगवदर्पण करें
  17. प्रायश्चित्त कैसे करें?
  18. हिंदू गृहस्थ के लिये पाँच महायज्ञ
  19. मनुष्यत्व को जीवित रखनेका उपाय-अर्थशौच
  20. पाठ का दैवी प्रभाव
  21. भूल को स्वीकार करने से पाप-नाश
  22. दूसरों की भूलें देखने की प्रवृत्ति
  23. एक मानसिक व्यथा-निराकरण के उपाय
  24. सुख किसमें है?
  25. कामभाव का कल्याणकारी प्रकाश
  26. समस्त उलझनों का एक हल
  27. असीम शक्तियोंकी प्रतीक हमारी ये देवमूर्तियाँ
  28. हिंदू-देवताओंके विचित्र वाहन, देश और चरित्र
  29. भोजनकी सात्त्विकता से मनकी पवित्रता आती है!
  30. भोजन का आध्यात्मिक उद्देश्य
  31. सात्त्विक आहार क्या है?
  32. मन को विकृत करनेवाला राजसी आहार क्या है?
  33. तामसी आहार क्या है?
  34. स्थायी सुख की प्राप्ति
  35. मध्यवर्ग सुख से दूर
  36. इन वस्तुओं में केवल सुखाभास है
  37. जीवन का स्थायी सुख
  38. आन्तरिक सुख
  39. सन्तोषामृत पिया करें
  40. प्राप्त का आदर करना सीखिये
  41. ज्ञान के नेत्र
  42. शान्ति की गोद में
  43. शान्ति आन्तरिक है
  44. सबसे बड़ा पुण्य-परमार्थ
  45. आत्मनिर्माण कैसे हो?
  46. परमार्थ के पथपर
  47. सदुपदेशों को ध्यानपूर्वक सुनिये
  48. गुप्त सामर्थ्य
  49. आनन्द प्राप्त करनेके अचूक उपाय
  50. अपने दिव्य सामर्थ्यों को विकसित कीजिये
  51. पाप से छूटने के उपाय
  52. पापसे कैसे बचें?
  53. पापों के प्रतीकार के लिये झींके नहीं, सत्कर्म करे!
  54. जीवन का सर्वोपरि लाभ
  55. वैराग्यपूर्ण स्थिति
  56. अपने-आपको आत्मा मानिये
  57. ईश्वरत्व बोलता है
  58. सुखद भविष्य में विश्वास करें
  59. मृत्यु का सौन्दर्य

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