गीता प्रेस, गोरखपुर >> अमृत के घूँट अमृत के घूँटरामचरण महेन्द्र
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प्रस्तुत है पुस्तक अमृत के घूँट.....
भोग और लोभ-बुराइयोंके ये दो मूल है। इन्हें रोकनेसे आप सुखी रहेंगे। एकको ठगेंगे तो दूसरा आपको ठगेगा, तीसरा उसे ठगेगा। इस प्रकार ठगी और बेईमानी सर्वत्र फैल जायगी। यदि आप ईमानदारीको अपना ध्येय बनायेंगे तो वही सर्वत्र फैलेगी। बेईमानी सब प्रकारके विकासको नष्ट करती आ रही है। यह एक सस्ती चीज है, जो मनुष्यकी शक्तियोंको कुण्ठित कर देती है। बेईमानीसे सब उद्योग-धंधोंका और व्यापारोंका नाश होता है। छल-कपट अधिक दिन टिकनेवाले नहीं हैं।
बेईमानीके कारण सच्चे व्यक्ति जो विश्वासपात्र है, उनपरसे भी विश्वास उठ गया है। मानवको मानवपर विश्वास करना कठिन हो रहा है। जनताको नेताका, नेताको जनताका, पिताको पुत्रका, पुत्रको पिताका, पतिको पत्नीका, पत्नीको पतिका विश्वास नहीं है। समाजके सब संगठन बेईमानीके कारण टूट-फूट गये है। रोगीको डाक्टरपर विश्वास नहीं है। वह समझता है कि जो दवा उसे दी जा रही है, वह केवल रंगा हुआ जलमात्र हो सकता है। जनता समझती है कि नेता उसे पथ-भ्रष्ट कर रहे हैं। यदि हम बेईमानीके विरुद्ध कड़ा कदम उठा लें तो एक ऐसा केन्द्र उपस्थित कर सकते है, जहाँसे सत्य, न्याय और प्रेमकी
किरणें विकेन्द्रित हो सकती है। ये ही किरणें सर्वत्र व्याप्त होकर दूषित वातावरण को शुद्ध कर सकती है।
बेईमानी आपके जीवनका कोई अंग नहीं बननी चाहिये। बेईमानी अप्राकृतिक है। उसे व्यवहारमें लानेसे हमें अपनी आत्माका हनन करना पड़ता है। हम झिझकते रहते है कि कहीं हमारा झूठ-फरेब प्रकट न हो जाय, हमास रहस्य प्रकट न हो जाय, हमें लोग बुरा-भला न कहें। बेईमानी हमारे गुप्त मनमें दुराव-छिपावकी भावना-ग्रन्थि उत्पन्न करती है और सदा किसी-न-किसी प्रकार प्रभावित किया करती है।
बेईमानी अन्धकार है, तो ईमानदारी शुभ प्रकाश है। ईमानदारीमें मनुष्य धनहीन और अभावग्रस्त रह सकता है; किंतु उसके मनमें शान्ति और संतुलन रहता है। उसका चरित्र-निर्माण दृढ़ पृष्ठभूमिपर रहता है। उसे यह झिझक या शंका नहीं रहती कि कोई किसी दिन आकर उसकी बेईमानीको पकड़ लेगा या उसकी अप्रतिष्ठा होगी, उसकी नौकरी जायगी या मुकदमें चलेंगे। ईमानदारीसे रहना सचाईसे रहना है। ईमानदारीकी कमाई दीर्घकालतक चलनेवाली होती है।
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