गीता प्रेस, गोरखपुर >> अमृत के घूँट अमृत के घूँटरामचरण महेन्द्र
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प्रस्तुत है पुस्तक अमृत के घूँट.....
हिंदू गृहस्थ के लिये पाँच महायज्ञ
भारतीय शास्त्रकारोंने समस्त हिंदूजातिके उपकार तथा अधिकाधिक कल्याणकी भावनासे प्रेरित होकर पाँच ऐसे दैनिक कर्मोंका विधान रखा है, जिनसे जीवन पूर्ण बनता है। प्रत्येक बड़े कर्मको 'यज्ञ' शब्दसे सम्बोधित किया गया है, जिससे उसकी महत्ता स्पष्ट हो जाती है।
ये पाँच महायज्ञ है-(१) ब्रह्मयज्ञ, (२) देवयज्ञ, (३) पितृयज्ञ, (४) अतिथियज्ञ और (५) भूतयज्ञ। 'शतपथब्राह्मण' नामक ग्रन्थमें इन पाँचोंका बड़ा माहात्म्य बताया गया है। यहाँतक कहा गया है कि 'जो पुरुष इनको यथाशक्ति नहीं करता, वह देवताओं, पितरों और ऋषियोंका सदा ऋणी रहता है।' जैसे किसी कर्जदारको सदा अपने कर्जको देनेका ही भय लगा रहता है, उसी प्रकार उपर्युक्त कर्मोंको न करनेवाला सदा मन-ही-मन डरता रहता है। उसका कल्याण नहीं होता और मनमें सुख-शान्ति नहीं रहती। अतः प्रत्येक महायज्ञका अर्थ समझ लेना चाहिये और यथाशक्ति अनुष्ठान करना चाहिये।
१-ब्रह्मयज्ञ
अर्थात् ब्रह्म (ईश्वर)-चिन्तन। यह दो प्रकारसे किया जा सकता है- (१) वेदमन्त्रोंसे परमात्माकी स्तुति, प्रार्थना और उपासना करना। दिनका प्रारम्भ इसी यज्ञसे प्रारम्भ होना चाहिये। ईश्वरीय उपासनासे मनुष्यका सम्बन्ध उस दैवी शक्तियोंके साथ हो जाता है और उसमें ब्रह्मतेजका उदय होता है। (२) स्वाध्याय। गृहस्थको चाहिये कि वह प्रातः नियमपूर्वक वेद, भगवद्गीता, समायण, योगवासिष्ठ आदि सद्ग्रन्थोंमेंसे किसीका भी नित्यप्रति पाठ करे, उन्हें समझनेका प्रयत्न करे, उनपर विचार करे, अपने जीवनकी आलोचना करे और यथाशक्ति अपने आचरणको उसके अनुकूल बनाये।
स्वाध्याय हमारे आत्मविकासका एक प्रधान अंग है; इसलिये उच्चतम ज्ञानसे परिचित होते रहना आवश्यक माना गया है। परमार्थ चिन्तन के साथ स्वाध्याय होने से जीवन आनन्दसे व्यतीत होता है। स्वाध्यायमें कई बातें महत्त्वपूर्ण है-जैसे धर्मपुस्तक का गहरा अध्ययन; उसके अर्थों पर पर्याप्त चिन्तन, विचार और श्रद्धापूर्वक उसपर आरूढ़ होनेका व्रत श्रद्धा और नियमका होना आवश्यक है, यदि कोई व्यक्ति केवल दूसरोंको दिखानेमात्रके लिये स्वाध्याय करता है तो वह ढोंग करता है अध्ययन और आचरणका संयोग होना चाहिये। स्वाध्याय छोड़ना नहीं चाहिये, अन्यथा पाप लगता है। उसमें आलस्य भी न होना चाहिये। इसीसे 'शतपथ' में कहा गया है-
'जल चलते है, सूर्य चलता है, चन्द्रमा चलता है, नक्षत्र चलते है।' इसी प्रकार स्वाध्यायका क्रम प्रतिदिन नियमपूर्वक चलना चाहिये। यदि कोई स्वाध्याय नहीं करता तो यह बात वैसी ही होती है, जैसे इन देवताओंके काम न करनेपर होती। इसलिये उत्तम व्यक्तिको नियमसे स्वाध्याय अवश्य करना चाहिये।
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