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गीता प्रेस, गोरखपुर >> अमृत के घूँट

अमृत के घूँट

रामचरण महेन्द्र

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2007
पृष्ठ :185
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 5984
आईएसबीएन :81-293-0130-X

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प्रस्तुत है पुस्तक अमृत के घूँट.....

5-भूत-यज्ञ या बलिवैश्वदेव

'भूत' शब्दका अर्थ है 'जीव'। ऊपर मनुष्य-जातिकी भलाईका विधान स्पष्ट किया गया है। किंतु हिंदू-संस्कृति बड़ी उदार है। वह केवल मनुष्यकी ही नहीं, वरं जीवमात्रकी भलाईमें विश्वास करती है।

इस यज्ञमें पशु-पक्षी तथा आदि उपकारी तत्त्वोंके संरक्षण, पालन-पोषण और सेवाका विधान है। ये सभी 'भूत' शब्दमें आ जाते है। हमारा जीवन पशु-पक्षी, वृक्ष-वनस्पति इत्यादि सबपर टिका हुआ है। गौ, बैल-जैसे उपकारी पशु और मोर, हंस, तोता, पुष्प इत्यादि हमारे नित्यप्रतिके मित्र है। वृक्ष हमें फल-भोजन इत्यादि देते है। फूलोंके पेड़ोंसे घर-उद्यानकी शोभा बढ़ती है। उनकी हरियाली हमारे मनको हरा कर देती है। हिंदू संस्कृतिने भूत-यज्ञके अन्तर्गत हमें यह शिक्षा दी है कि हम पशु-पक्षी, वृक्ष-वनस्पति-जैसे उपयोगी और कल्याणकारी तत्त्वोंके प्रति भी अपनी कृतज्ञता प्रक्ट करें।

यह दो प्रकारसे सम्भव है। जहाँ पशु-पक्षियोंके लिये उचित भोजन या जलका प्रबन्ध नहीं है; वहाँ गोशाला या पशुशालाओंका प्रबन्ध करना, पशुओंके लिये जल पीनेके स्थान बनवाना, पुराने कुएँ तालाबोंकी मरम्मत करवाना और बीमार पशुओंके निःशुल्क इलाजका प्रबन्ध करना। गौ पालना या दूध देनेवाली गौका दान करना। दूसरे, वृक्षारोपण करना और पुराने वृक्षोंकी सेवा-सहायता करना, उद्यान लगाना, पौधोंको सींचना। इस प्रकार हमारी संस्कृतिमें अधिक-से-अधिक व्यक्तियों की सेवाका विधान है। भारतीय संस्कृतिके पुनः स्थापन द्वारा कैसा मनोरम दृश्य उपस्थित हो जाता है, इसका वर्णन एक कविने किया है-

यत्र नास्ति दधिमन्धनघोषो
यत्र नो लघुलघूनि शिशूनि।।
यत्र नास्ति गुरुगौरवपूजा
तानि किं व्रत ग्रहाणि वनानि।।

अर्थात् 'जहाँ दूध बिलोनेका घोष नहीं सुनाई देता, जहाँ छोटे-छोटे बच्चोंके खेलने-कूदनेका कोलाहल नहीं सुन पड़ता और वृद्ध जनोंकी पूजा नहीं होती, वह घर नहीं बल्कि एक तरहका जंगल है।' इसी प्रकार वाटिकामें छोटे-छोटे वृक्षोंको हरे-भरे देखना, पेड़ोंको अपने हाथसे सींचना, उनके फूलों-पत्तोंको सँवारना अद्भुत आनन्दकी सृष्टि करनेवाला है।

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    अनुक्रम

  1. निवेदन
  2. आपकी विचारधारा की सही दिशा यह है
  3. हित-प्रेरक संकल्प
  4. सुख और स्वास्थ के लिये धन अनिवार्य नहीं है
  5. रुपये से क्या मिलता है और क्या नहीं
  6. चिन्ता एक मूर्खतापूर्वक आदत
  7. जीवन का यह सूनापन!
  8. नये ढंग से जीवन व्यतीत कीजिये
  9. अवकाश-प्राप्त जीवन भी दिलचस्प बन सकता है
  10. जीवन मृदु कैसे बने?
  11. मानव-हृदय में सत्-असत् का यह अनवरत युद्ध
  12. अपने विवेकको जागरूक रखिये
  13. कौन-सा मार्ग ग्रहण करें?
  14. बेईमानी एक मूर्खता है
  15. डायरी लिखने से दोष दूर होते हैं
  16. भगवदर्पण करें
  17. प्रायश्चित्त कैसे करें?
  18. हिंदू गृहस्थ के लिये पाँच महायज्ञ
  19. मनुष्यत्व को जीवित रखनेका उपाय-अर्थशौच
  20. पाठ का दैवी प्रभाव
  21. भूल को स्वीकार करने से पाप-नाश
  22. दूसरों की भूलें देखने की प्रवृत्ति
  23. एक मानसिक व्यथा-निराकरण के उपाय
  24. सुख किसमें है?
  25. कामभाव का कल्याणकारी प्रकाश
  26. समस्त उलझनों का एक हल
  27. असीम शक्तियोंकी प्रतीक हमारी ये देवमूर्तियाँ
  28. हिंदू-देवताओंके विचित्र वाहन, देश और चरित्र
  29. भोजनकी सात्त्विकता से मनकी पवित्रता आती है!
  30. भोजन का आध्यात्मिक उद्देश्य
  31. सात्त्विक आहार क्या है?
  32. मन को विकृत करनेवाला राजसी आहार क्या है?
  33. तामसी आहार क्या है?
  34. स्थायी सुख की प्राप्ति
  35. मध्यवर्ग सुख से दूर
  36. इन वस्तुओं में केवल सुखाभास है
  37. जीवन का स्थायी सुख
  38. आन्तरिक सुख
  39. सन्तोषामृत पिया करें
  40. प्राप्त का आदर करना सीखिये
  41. ज्ञान के नेत्र
  42. शान्ति की गोद में
  43. शान्ति आन्तरिक है
  44. सबसे बड़ा पुण्य-परमार्थ
  45. आत्मनिर्माण कैसे हो?
  46. परमार्थ के पथपर
  47. सदुपदेशों को ध्यानपूर्वक सुनिये
  48. गुप्त सामर्थ्य
  49. आनन्द प्राप्त करनेके अचूक उपाय
  50. अपने दिव्य सामर्थ्यों को विकसित कीजिये
  51. पाप से छूटने के उपाय
  52. पापसे कैसे बचें?
  53. पापों के प्रतीकार के लिये झींके नहीं, सत्कर्म करे!
  54. जीवन का सर्वोपरि लाभ
  55. वैराग्यपूर्ण स्थिति
  56. अपने-आपको आत्मा मानिये
  57. ईश्वरत्व बोलता है
  58. सुखद भविष्य में विश्वास करें
  59. मृत्यु का सौन्दर्य

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