लोगों की राय

गीता प्रेस, गोरखपुर >> अमृत के घूँट

अमृत के घूँट

रामचरण महेन्द्र

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2007
पृष्ठ :185
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 5984
आईएसबीएन :81-293-0130-X

Like this Hindi book 7 पाठकों को प्रिय

341 पाठक हैं

प्रस्तुत है पुस्तक अमृत के घूँट.....

जिस प्रकार एक स्थानपर पड़ा हुआ जल दुर्गन्धादि से दोषयुक्त हो जाता है, उसी प्रकार यज्ञ-दान, धर्म-कर्ममें व्यय न किया हुआ धन भी प्रमाद आदि दोष उत्पन्न कर धनीको नष्ट करता है और स्वयं भी नष्ट हो जाता है।

कहते है कि एक बार गुरु नानक किसी गाँवमें गये तो समस्त गाँव-वालोंने उनका खूब आदर-सत्कार किया। गाँवके जमींदारने यह सुना तो नानकजीको दावत दी। अनेक सुस्वादु भोजन, मिठाइयाँ और सब्जियाँ बनवायीं, बड़ी धूमधाम रही।

उधर एक गरीब किसान भी श्रद्धा-भक्तिसे भरा गुरुजीके लिये ज्वारकी मोटी-मोटी रूखी रोटियाँ लाया। गुरुजीके सामने दोनोंका भोजन था। एक और जमींदारके बढ़िया पकवान, दूसरी ओर ज्वारकी सूखी रोटियाँ।

गुरुजीने किसानकी रोटियाँ ले लीं और बड़े स्वादसे उन्हें खाया।'

'जमींदार कुद्ध था। उसने इतने बढ़िया-बढ़िया पकवान, भोजन, मिठाइयाँ इतने व्ययसे इतने कुशल रसोइयोंसे बनवायी थीं। उससे न रहा गया। उसने गुरुजीसे पूछा- 'महाराज! आपने मेरा भोजन ग्रहण न कर इस गरीब किसानकी ज्वारकी सूखी रोटियाँ क्यों ग्रहण की है।'

गुरु बोले-'अपनी रोटियाँ इधर लाओ।'

फिर गुरुजीने जमींदारकी रोटीको निचोड़ा तो उसमेंसे खूनकी बूँदें टपकने लगीं। लोग यह चमत्कार देखकर चकित थे। उसके बाद उन्होंने उस किसानकी रोटीको निचोड़ा। जनताने देखा कि उसमेंसे दूधकी बूँदें टपकने लगीं।

गुरुजी बोले-'ये रक्तकी बूँदें उन गरीबोंकी है, जिनसे जुल्म, अत्याचार, मारपीट, बेईमानीके हिंसक प्रयोगद्वारा रुपया लूटा गया है। यह धन अधर्मसे इकट्ठा किया गया है। दूसरी ओर इस किसानने धूपमें कठोर परिश्रम और पुरुषार्थ करके पसीनेकी कमाईसे ये रूखी ज्वारकी रोटियाँ बनाई है, धर्मकी सदा सामने रखा है। यह न झूठ बोला है, न किसीपर अत्याचार, छल-कपट किया है। इसका पैसा सत्य, न्याय और धर्मके अनुकूल है। ऐसी कमाईमें समृद्धि और लक्ष्मीका निवास है। जैसा भाव होता है, वैसी ही बुद्धि बनती है। जैसी बुद्धि होती है, वैसा ही अन्न कमाया जाता है, जैसे उपायोंसे अन्न कमाया जाता है, उसमें वैसे ही गुण-अवगुण आ जाते है। पापकी कमाईसे मुक्त रहो।' 

'यह सुनकर जमींदारको सब पुरानी बातें याद आने लगीं। उसने स्मृतिके कोषमें देखा कि उसका असंख्य धन, जिसपर उसे इतना अभिमान था, अनाथोंपर निर्मम अत्याचार, झूठ, फरेब, मिथ्याचार करके कमाया गया था। इसी कारण उसका आतिथ्य अस्वीकार किया गया था।'

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

    अनुक्रम

  1. निवेदन
  2. आपकी विचारधारा की सही दिशा यह है
  3. हित-प्रेरक संकल्प
  4. सुख और स्वास्थ के लिये धन अनिवार्य नहीं है
  5. रुपये से क्या मिलता है और क्या नहीं
  6. चिन्ता एक मूर्खतापूर्वक आदत
  7. जीवन का यह सूनापन!
  8. नये ढंग से जीवन व्यतीत कीजिये
  9. अवकाश-प्राप्त जीवन भी दिलचस्प बन सकता है
  10. जीवन मृदु कैसे बने?
  11. मानव-हृदय में सत्-असत् का यह अनवरत युद्ध
  12. अपने विवेकको जागरूक रखिये
  13. कौन-सा मार्ग ग्रहण करें?
  14. बेईमानी एक मूर्खता है
  15. डायरी लिखने से दोष दूर होते हैं
  16. भगवदर्पण करें
  17. प्रायश्चित्त कैसे करें?
  18. हिंदू गृहस्थ के लिये पाँच महायज्ञ
  19. मनुष्यत्व को जीवित रखनेका उपाय-अर्थशौच
  20. पाठ का दैवी प्रभाव
  21. भूल को स्वीकार करने से पाप-नाश
  22. दूसरों की भूलें देखने की प्रवृत्ति
  23. एक मानसिक व्यथा-निराकरण के उपाय
  24. सुख किसमें है?
  25. कामभाव का कल्याणकारी प्रकाश
  26. समस्त उलझनों का एक हल
  27. असीम शक्तियोंकी प्रतीक हमारी ये देवमूर्तियाँ
  28. हिंदू-देवताओंके विचित्र वाहन, देश और चरित्र
  29. भोजनकी सात्त्विकता से मनकी पवित्रता आती है!
  30. भोजन का आध्यात्मिक उद्देश्य
  31. सात्त्विक आहार क्या है?
  32. मन को विकृत करनेवाला राजसी आहार क्या है?
  33. तामसी आहार क्या है?
  34. स्थायी सुख की प्राप्ति
  35. मध्यवर्ग सुख से दूर
  36. इन वस्तुओं में केवल सुखाभास है
  37. जीवन का स्थायी सुख
  38. आन्तरिक सुख
  39. सन्तोषामृत पिया करें
  40. प्राप्त का आदर करना सीखिये
  41. ज्ञान के नेत्र
  42. शान्ति की गोद में
  43. शान्ति आन्तरिक है
  44. सबसे बड़ा पुण्य-परमार्थ
  45. आत्मनिर्माण कैसे हो?
  46. परमार्थ के पथपर
  47. सदुपदेशों को ध्यानपूर्वक सुनिये
  48. गुप्त सामर्थ्य
  49. आनन्द प्राप्त करनेके अचूक उपाय
  50. अपने दिव्य सामर्थ्यों को विकसित कीजिये
  51. पाप से छूटने के उपाय
  52. पापसे कैसे बचें?
  53. पापों के प्रतीकार के लिये झींके नहीं, सत्कर्म करे!
  54. जीवन का सर्वोपरि लाभ
  55. वैराग्यपूर्ण स्थिति
  56. अपने-आपको आत्मा मानिये
  57. ईश्वरत्व बोलता है
  58. सुखद भविष्य में विश्वास करें
  59. मृत्यु का सौन्दर्य

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book