गीता प्रेस, गोरखपुर >> अमृत के घूँट अमृत के घूँटरामचरण महेन्द्र
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प्रस्तुत है पुस्तक अमृत के घूँट.....
जिस प्रकार एक स्थानपर पड़ा हुआ जल दुर्गन्धादि से दोषयुक्त हो जाता है, उसी प्रकार यज्ञ-दान, धर्म-कर्ममें व्यय न किया हुआ धन भी प्रमाद आदि दोष उत्पन्न कर धनीको नष्ट करता है और स्वयं भी नष्ट हो जाता है।
कहते है कि एक बार गुरु नानक किसी गाँवमें गये तो समस्त गाँव-वालोंने उनका खूब आदर-सत्कार किया। गाँवके जमींदारने यह सुना तो नानकजीको दावत दी। अनेक सुस्वादु भोजन, मिठाइयाँ और सब्जियाँ बनवायीं, बड़ी धूमधाम रही।
उधर एक गरीब किसान भी श्रद्धा-भक्तिसे भरा गुरुजीके लिये ज्वारकी मोटी-मोटी रूखी रोटियाँ लाया। गुरुजीके सामने दोनोंका भोजन था। एक और जमींदारके बढ़िया पकवान, दूसरी ओर ज्वारकी सूखी रोटियाँ।
गुरुजीने किसानकी रोटियाँ ले लीं और बड़े स्वादसे उन्हें खाया।'
'जमींदार कुद्ध था। उसने इतने बढ़िया-बढ़िया पकवान, भोजन, मिठाइयाँ इतने व्ययसे इतने कुशल रसोइयोंसे बनवायी थीं। उससे न रहा गया। उसने गुरुजीसे पूछा- 'महाराज! आपने मेरा भोजन ग्रहण न कर इस गरीब किसानकी ज्वारकी सूखी रोटियाँ क्यों ग्रहण की है।'
गुरु बोले-'अपनी रोटियाँ इधर लाओ।'
फिर गुरुजीने जमींदारकी रोटीको निचोड़ा तो उसमेंसे खूनकी बूँदें टपकने लगीं। लोग यह चमत्कार देखकर चकित थे। उसके बाद उन्होंने उस किसानकी रोटीको निचोड़ा। जनताने देखा कि उसमेंसे दूधकी बूँदें टपकने लगीं।
गुरुजी बोले-'ये रक्तकी बूँदें उन गरीबोंकी है, जिनसे जुल्म, अत्याचार, मारपीट, बेईमानीके हिंसक प्रयोगद्वारा रुपया लूटा गया है। यह धन अधर्मसे इकट्ठा किया गया है। दूसरी ओर इस किसानने धूपमें कठोर परिश्रम और पुरुषार्थ करके पसीनेकी कमाईसे ये रूखी ज्वारकी रोटियाँ बनाई है, धर्मकी सदा सामने रखा है। यह न झूठ बोला है, न किसीपर अत्याचार, छल-कपट किया है। इसका पैसा सत्य, न्याय और धर्मके अनुकूल है। ऐसी कमाईमें समृद्धि और लक्ष्मीका निवास है। जैसा भाव होता है, वैसी ही बुद्धि बनती है। जैसी बुद्धि होती है, वैसा ही अन्न कमाया जाता है, जैसे उपायोंसे अन्न कमाया जाता है, उसमें वैसे ही गुण-अवगुण आ जाते है। पापकी कमाईसे मुक्त रहो।'
'यह सुनकर जमींदारको सब पुरानी बातें याद आने लगीं। उसने स्मृतिके कोषमें देखा कि उसका असंख्य धन, जिसपर उसे इतना अभिमान था, अनाथोंपर निर्मम अत्याचार, झूठ, फरेब, मिथ्याचार करके कमाया गया था। इसी कारण उसका आतिथ्य अस्वीकार किया गया था।'
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- परमार्थ के पथपर
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