गीता प्रेस, गोरखपुर >> अमृत के घूँट अमृत के घूँटरामचरण महेन्द्र
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प्रस्तुत है पुस्तक अमृत के घूँट.....
अतएव प्रतिज्ञा कर लीजिये कि चाहे जो कुछ हो, आप एक कार्य अवश्यमेव करेंगे। वह यही कि अपनी शक्तियों को ऊँची-से-ऊँची बनायेंगे। प्रत्येक दिन अपनी योग्यता, अपनी विलक्षणतामें अभिवृद्धि करते रहेंगे, आत्मामें जो ईश्वरीय गुण विद्यमान है, उनपरसे अविद्याका आवरण उठाते रहेंगे और इस प्रकार अपने यथार्थ स्परूपसे पूर्ण परिचित हो जायेंगे।
नवीन भावनाकी सृष्टि कर लेना ही आत्मप्रतीतिके मार्गमें नया कदम उठाना है। तुम अपने विचारोंमें परिवर्तन करो अर्थात् निज अन्तःकरणकी स्थायी वृत्तिको बदल दो! अभी तक तुमने जिन सकीर्णता-सीमाबन्धनकी संकुचित भावनाओंमें अपना जीवन व्यतीत किया है, उनके स्थानपर समृद्धिकी नवीन भावनाएँ दृढ़ करो। नये विचार, नयी भावनाएँ नया दृष्टिकोण तुम्हें कहाँ प्राप्त हो सकेगा? उनके लिये सर्वप्रथम अपने मनको टटोलो। अपने-आपसे स्वयं प्रश्र करो, गम्भीरतापूर्वक विचार करो, चिन्तन करो। तुम्हारी हार्दिक अभिलाषाएँ तुम्हारे उत्पादक अन्तर्बलको उत्तेजित करती है। वे तुम्हारी शक्तियोंको परिपुष्ट करती है। अपनी आन्तरिक महत्त्वाकांओंको स्पन्दन देनेसे वे स्वयं ही तुम्हें प्रशस्त मार्ग दिखा देती है। उत्तम पुस्तकोंका अध्ययन करो, उनमें अपने प्रश्रोंके उत्तर खोजो। सत्संग करो और ऐसे व्यक्तियोंसे शंका-निवारण करो, जो मनकी उच्च भूमिकामें निवास करते है। परमेश्वरकी अनन्त शक्तिकी छायामें जीवन-वृक्षको विकसित करो। जीवनकी सबसे उच्च भावनामें रमण करो। जीवनके जिस स्थलमें पड़े हो, उससे असन्तुष्ट हो जाओ। अपनी लाचारीकी, निर्धनताकी, मूर्खताकी परिस्थितिको तिलाञ्जलि दे दो और जीवनको स्वतन्त्रताकी सुमधुर सुगन्धसे सुवासित करो। विचारोंको ऊँचा उठाओ। मनोमन्दिरके प्रवेशद्वारको दिव्य और उत्कृष्ट वस्तुओंके लिये खोल दो।
निशाना मारते समय निशानची कुछ आगे को मारते है, तब वह यथार्थ स्थान पर लगता है। तुम अपने जीवन को जैसा निर्माण करना चाहते हो, उसकी सर्वोच्च प्रतिमा, सबसे उत्तम स्वरूप, अच्छे-से-अच्छा नमूना अपने सम्मुख रखो और फिर सुईकी तरह अपने आदर्शकी पूर्तिमें लग जाओ।
अनेक पुरुष तनिक-सी प्रतिकूलता उपस्थित होते ही अस्त-व्यस्त हो जाते है। उन्हें स्मरण रखना चाहिये कि विकट स्थिति, प्रतिकूलताके अवसर, दरिद्रता एवं विघ्न आदि कारणोंसे ही मानवजातिको उन्नतिकी उत्तेजना मिली है। ऐसे ही प्रसंगोंमें मनुष्यका असामान्य पराक्रम प्रकट हुआ है। स्थूल दृष्टिसे तो ऐसे प्रसंग अनिष्ट जान पड़ते है, किंतु वस्तुतः इन्हींसे मनुष्यका बड़ा भारी हितसाधन होता है। सामान्य प्रसंग और साधारण जीवनसे मनुष्यकी आन्तरिक शक्तियोंका विकास नहीं होता। यदि मनुष्यको प्रतिघातकी उत्तेजनाके अवसर न मिलें तो गुप्त शक्तियाँ कदापि प्रकट न हों। ये शक्तियाँ इतने गहन स्तरमें निवास करती है कि सामान्य कारणोंसे उनपर कुछ भी प्रभाव नहीं पड़ता। उनके लिये ऐसे कारण अपेक्षित है, जो मर्मस्थान पर चोट करें।
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- निवेदन
- आपकी विचारधारा की सही दिशा यह है
- हित-प्रेरक संकल्प
- सुख और स्वास्थ के लिये धन अनिवार्य नहीं है
- रुपये से क्या मिलता है और क्या नहीं
- चिन्ता एक मूर्खतापूर्वक आदत
- जीवन का यह सूनापन!
- नये ढंग से जीवन व्यतीत कीजिये
- अवकाश-प्राप्त जीवन भी दिलचस्प बन सकता है
- जीवन मृदु कैसे बने?
- मानव-हृदय में सत्-असत् का यह अनवरत युद्ध
- अपने विवेकको जागरूक रखिये
- कौन-सा मार्ग ग्रहण करें?
- बेईमानी एक मूर्खता है
- डायरी लिखने से दोष दूर होते हैं
- भगवदर्पण करें
- प्रायश्चित्त कैसे करें?
- हिंदू गृहस्थ के लिये पाँच महायज्ञ
- मनुष्यत्व को जीवित रखनेका उपाय-अर्थशौच
- पाठ का दैवी प्रभाव
- भूल को स्वीकार करने से पाप-नाश
- दूसरों की भूलें देखने की प्रवृत्ति
- एक मानसिक व्यथा-निराकरण के उपाय
- सुख किसमें है?
- कामभाव का कल्याणकारी प्रकाश
- समस्त उलझनों का एक हल
- असीम शक्तियोंकी प्रतीक हमारी ये देवमूर्तियाँ
- हिंदू-देवताओंके विचित्र वाहन, देश और चरित्र
- भोजनकी सात्त्विकता से मनकी पवित्रता आती है!
- भोजन का आध्यात्मिक उद्देश्य
- सात्त्विक आहार क्या है?
- मन को विकृत करनेवाला राजसी आहार क्या है?
- तामसी आहार क्या है?
- स्थायी सुख की प्राप्ति
- मध्यवर्ग सुख से दूर
- इन वस्तुओं में केवल सुखाभास है
- जीवन का स्थायी सुख
- आन्तरिक सुख
- सन्तोषामृत पिया करें
- प्राप्त का आदर करना सीखिये
- ज्ञान के नेत्र
- शान्ति की गोद में
- शान्ति आन्तरिक है
- सबसे बड़ा पुण्य-परमार्थ
- आत्मनिर्माण कैसे हो?
- परमार्थ के पथपर
- सदुपदेशों को ध्यानपूर्वक सुनिये
- गुप्त सामर्थ्य
- आनन्द प्राप्त करनेके अचूक उपाय
- अपने दिव्य सामर्थ्यों को विकसित कीजिये
- पाप से छूटने के उपाय
- पापसे कैसे बचें?
- पापों के प्रतीकार के लिये झींके नहीं, सत्कर्म करे!
- जीवन का सर्वोपरि लाभ
- वैराग्यपूर्ण स्थिति
- अपने-आपको आत्मा मानिये
- ईश्वरत्व बोलता है
- सुखद भविष्य में विश्वास करें
- मृत्यु का सौन्दर्य