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गीता प्रेस, गोरखपुर >> अमृत के घूँट

अमृत के घूँट

रामचरण महेन्द्र

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2007
पृष्ठ :185
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 5984
आईएसबीएन :81-293-0130-X

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प्रस्तुत है पुस्तक अमृत के घूँट.....

हित-प्रेरक संकल्प

प्रतिदिन रात्रिमें निद्रासे पूर्व एकान्त स्थानमें शान्तचित होकर बैठ जाओ। शरीरको निष्क्रिय कर लो और मनको सब विचारोंसे हटाकर हितप्रेरक संकल्पों पर एकाग्र करो।

'मैं अब अनुभव करने लगा हूँ कि मेरा असत् चिन्तन कितना भयंकर शत्रु है। मैंने अपने विषयमें तुच्छ विचार रखकर अपने साथ बड़ा अत्याचार किया है। मेरा आत्मा ईश्वरसे अभिन्न है। ईश्वर सर्वत्र वर्तमान है। साक्षात् आनन्दस्वरूप, सच्चिदानन्दरूप ईश्वर मेरे अन्तरमें वर्तमान है। मेरा हृदय सत्यस्वरूप, ज्ञानस्वरूप, प्रभुका परम पवित्र मन्दिर है। अतः उसमें भय, चिता एवं दुष्ट मनोविकार क्योंकर प्रलय मचा सकते है? ईश्वर तो पूर्ण निर्भय, निःसंग एवं सर्वथा निष्पाप है। मैं उनका बालक हूँ अतः मैं भी पूर्ण निर्भय हूँ पूर्ण निर्भय और निष्पाप हूँ। मेरे अन्दर सम्पूर्ण जगत्के प्रेरक तथा प्राण विश्वव्यापी भगवान् विराज रहे है। मैं आज अपनी मोहनिद्रासे जाग गया हूँ। आज मुझे अपने ईश्वरत्वका सम्यक् ज्ञान हुआ है।'

'मैं जान गया हूँ कि ईश्वर परम वीर्यमान् है, पूर्ण भाग्यवान् तथा असीम सामर्थ्यवान् है। मैं उनका अपना हूँ। मैं भी परम वीर्यवान् हूँ, पूर्ण भाग्यवान् हूँ उसी प्रकार सामर्थ्यवान् हूँ। आज मैंने अपनी निकृष्ट भावनाओंको बहिष्कृत कर दिया है। अब मैं भयभीत नहीं होता, हानिसे विचलित नहीं हो जाता, संसारकी तंग गलियाँ मुझे अशान्त कदापि नहीं कर सकतीं।'

'ईश्वर पूर्ण निष्काम, निर्विषय तथा निर्विकार है। मेरी आत्मामें वही दिव्य प्रवाह प्रवाहित हो रहा है। वही तत्त्व मुझे भी जीवन प्रदान कर रहे है। मैं भी पूर्ण निष्काम, निर्विषय एवं निर्विकार हूँ।'

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    अनुक्रम

  1. निवेदन
  2. आपकी विचारधारा की सही दिशा यह है
  3. हित-प्रेरक संकल्प
  4. सुख और स्वास्थ के लिये धन अनिवार्य नहीं है
  5. रुपये से क्या मिलता है और क्या नहीं
  6. चिन्ता एक मूर्खतापूर्वक आदत
  7. जीवन का यह सूनापन!
  8. नये ढंग से जीवन व्यतीत कीजिये
  9. अवकाश-प्राप्त जीवन भी दिलचस्प बन सकता है
  10. जीवन मृदु कैसे बने?
  11. मानव-हृदय में सत्-असत् का यह अनवरत युद्ध
  12. अपने विवेकको जागरूक रखिये
  13. कौन-सा मार्ग ग्रहण करें?
  14. बेईमानी एक मूर्खता है
  15. डायरी लिखने से दोष दूर होते हैं
  16. भगवदर्पण करें
  17. प्रायश्चित्त कैसे करें?
  18. हिंदू गृहस्थ के लिये पाँच महायज्ञ
  19. मनुष्यत्व को जीवित रखनेका उपाय-अर्थशौच
  20. पाठ का दैवी प्रभाव
  21. भूल को स्वीकार करने से पाप-नाश
  22. दूसरों की भूलें देखने की प्रवृत्ति
  23. एक मानसिक व्यथा-निराकरण के उपाय
  24. सुख किसमें है?
  25. कामभाव का कल्याणकारी प्रकाश
  26. समस्त उलझनों का एक हल
  27. असीम शक्तियोंकी प्रतीक हमारी ये देवमूर्तियाँ
  28. हिंदू-देवताओंके विचित्र वाहन, देश और चरित्र
  29. भोजनकी सात्त्विकता से मनकी पवित्रता आती है!
  30. भोजन का आध्यात्मिक उद्देश्य
  31. सात्त्विक आहार क्या है?
  32. मन को विकृत करनेवाला राजसी आहार क्या है?
  33. तामसी आहार क्या है?
  34. स्थायी सुख की प्राप्ति
  35. मध्यवर्ग सुख से दूर
  36. इन वस्तुओं में केवल सुखाभास है
  37. जीवन का स्थायी सुख
  38. आन्तरिक सुख
  39. सन्तोषामृत पिया करें
  40. प्राप्त का आदर करना सीखिये
  41. ज्ञान के नेत्र
  42. शान्ति की गोद में
  43. शान्ति आन्तरिक है
  44. सबसे बड़ा पुण्य-परमार्थ
  45. आत्मनिर्माण कैसे हो?
  46. परमार्थ के पथपर
  47. सदुपदेशों को ध्यानपूर्वक सुनिये
  48. गुप्त सामर्थ्य
  49. आनन्द प्राप्त करनेके अचूक उपाय
  50. अपने दिव्य सामर्थ्यों को विकसित कीजिये
  51. पाप से छूटने के उपाय
  52. पापसे कैसे बचें?
  53. पापों के प्रतीकार के लिये झींके नहीं, सत्कर्म करे!
  54. जीवन का सर्वोपरि लाभ
  55. वैराग्यपूर्ण स्थिति
  56. अपने-आपको आत्मा मानिये
  57. ईश्वरत्व बोलता है
  58. सुखद भविष्य में विश्वास करें
  59. मृत्यु का सौन्दर्य

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