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गीता प्रेस, गोरखपुर >> अमृत के घूँट

अमृत के घूँट

रामचरण महेन्द्र

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2007
पृष्ठ :185
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 5984
आईएसबीएन :81-293-0130-X

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प्रस्तुत है पुस्तक अमृत के घूँट.....

हमारा समस्त पूजन मानसिक है, अर्थात् इससे भावात्मक स्वच्छता, सात्त्विक गुणोंकी अभिवृद्धि, शुभ सत्संग, विरोधी दुष्ट विचारोंका दमन, ईर्ष्या, वासना, क्रोध आदिका परिष्कार होकर दैवी सत्ता से सांनिध्य प्राप्त होता है। हम लक्ष्यकी ओर अग्रसर होते रहते हैं। दैवी गुणोंका अनन्त अविराम प्रवाह मानसिक कलुषको दूर करता रहता है। यदि किसी दिन राक्षसी वृत्तिके विकारसे वशीभूत हो हम आदर्शच्युत भी हो जाते हैं तो मानस-पूजन आत्मग्लानि उत्पन्न कर फिर दैवी प्रकाश प्रदान करता है। पूजा हमारे मानसिक संस्थानको स्वच्छ करनेका एक सात्त्विक चिरपरीक्षित साधन है।

मत समझिये कि ये मूर्ति-पूजा करनेवाली किन्हीं बाहरी प्रस्तर-मूर्तियोंको प्रसन्न करनेकी चेष्टा कर रहे हैं। ये तो स्वयं अपने ही मनको शुभ सात्त्विक दैवी भावोंसे परिपूर्ण कर रहे हैं। मानसिक विकारोंको दूर कर अपने व्यक्तित्वके देवत्वका विकास कर रहे हैं। देवमूर्तियोंका बाह्य आधार लेकर ये एक प्रकारका मानसिक व्यायाम-(अपने दिव्य अंशपर एकाग्रता) मात्र कर रहे हैं। अपने आन्तरिक जगत्को दिव्य प्रकाशसे आलोकित कर रहे हैं। इनका पूजन मानस-पूजन है।

यह समझिये कि भजन-कीर्तनसे प्रस्तर-मूर्तियों प्रसन्न होती हैं या उन्हें सुनती हैं। परमात्माके गुण-गानकर, भजनोंका उचारणकर कीर्तन, वादन, जप, ध्यान, समाधि से हम दैवी स्वरमें अपना स्वर मिला देते हैं। ये क्रियाएँ हमारी आत्माकी दैवी आत्मासे एकता बनाये रखनेके साधन है। तुलसीकी 'विनयपत्रिका', 'मीराके भजन', 'सूरके पद' भक्त-हृदयोंकी आत्मशुद्धिके साधन है। भक्तोंकी इनसे आत्यन्तिक आत्मशुद्धि हुई। वे दैवी तत्त्वसे एकस्वर-एकरस हो सके।

मत समझिये कि जो भोग (मिष्ठान्न, फल, भोजन इत्यादि) देवमूर्तियोंको लगाया जाता है, उसे वे मूर्ति चखती है अथवा उनका स्वाद लेती हैं। पर उनके सम्मुख रखकर हम अपने भोजनमें सात्त्विकता, देवत्व, स्वच्छता,

आरोग्य, शक्ति, समृद्धि आदि दैवी तत्त्वोंका समावेश कर लेते है। भोजन या भोगके साथ-साथ इन दैवी भावोंको भी खानेसे हमें आरोग्य और स्वास्थ्यकी प्राप्ति होती है। हमारे व्यक्तित्वका देवत्व ही कल्याणकारी है। हमारा पूजन उसीके विकासका एक सरल संकेतात्मक (Symbolical) साधन है।

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    अनुक्रम

  1. निवेदन
  2. आपकी विचारधारा की सही दिशा यह है
  3. हित-प्रेरक संकल्प
  4. सुख और स्वास्थ के लिये धन अनिवार्य नहीं है
  5. रुपये से क्या मिलता है और क्या नहीं
  6. चिन्ता एक मूर्खतापूर्वक आदत
  7. जीवन का यह सूनापन!
  8. नये ढंग से जीवन व्यतीत कीजिये
  9. अवकाश-प्राप्त जीवन भी दिलचस्प बन सकता है
  10. जीवन मृदु कैसे बने?
  11. मानव-हृदय में सत्-असत् का यह अनवरत युद्ध
  12. अपने विवेकको जागरूक रखिये
  13. कौन-सा मार्ग ग्रहण करें?
  14. बेईमानी एक मूर्खता है
  15. डायरी लिखने से दोष दूर होते हैं
  16. भगवदर्पण करें
  17. प्रायश्चित्त कैसे करें?
  18. हिंदू गृहस्थ के लिये पाँच महायज्ञ
  19. मनुष्यत्व को जीवित रखनेका उपाय-अर्थशौच
  20. पाठ का दैवी प्रभाव
  21. भूल को स्वीकार करने से पाप-नाश
  22. दूसरों की भूलें देखने की प्रवृत्ति
  23. एक मानसिक व्यथा-निराकरण के उपाय
  24. सुख किसमें है?
  25. कामभाव का कल्याणकारी प्रकाश
  26. समस्त उलझनों का एक हल
  27. असीम शक्तियोंकी प्रतीक हमारी ये देवमूर्तियाँ
  28. हिंदू-देवताओंके विचित्र वाहन, देश और चरित्र
  29. भोजनकी सात्त्विकता से मनकी पवित्रता आती है!
  30. भोजन का आध्यात्मिक उद्देश्य
  31. सात्त्विक आहार क्या है?
  32. मन को विकृत करनेवाला राजसी आहार क्या है?
  33. तामसी आहार क्या है?
  34. स्थायी सुख की प्राप्ति
  35. मध्यवर्ग सुख से दूर
  36. इन वस्तुओं में केवल सुखाभास है
  37. जीवन का स्थायी सुख
  38. आन्तरिक सुख
  39. सन्तोषामृत पिया करें
  40. प्राप्त का आदर करना सीखिये
  41. ज्ञान के नेत्र
  42. शान्ति की गोद में
  43. शान्ति आन्तरिक है
  44. सबसे बड़ा पुण्य-परमार्थ
  45. आत्मनिर्माण कैसे हो?
  46. परमार्थ के पथपर
  47. सदुपदेशों को ध्यानपूर्वक सुनिये
  48. गुप्त सामर्थ्य
  49. आनन्द प्राप्त करनेके अचूक उपाय
  50. अपने दिव्य सामर्थ्यों को विकसित कीजिये
  51. पाप से छूटने के उपाय
  52. पापसे कैसे बचें?
  53. पापों के प्रतीकार के लिये झींके नहीं, सत्कर्म करे!
  54. जीवन का सर्वोपरि लाभ
  55. वैराग्यपूर्ण स्थिति
  56. अपने-आपको आत्मा मानिये
  57. ईश्वरत्व बोलता है
  58. सुखद भविष्य में विश्वास करें
  59. मृत्यु का सौन्दर्य

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