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गीता प्रेस, गोरखपुर >> अमृत के घूँट

अमृत के घूँट

रामचरण महेन्द्र

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2007
पृष्ठ :185
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 5984
आईएसबीएन :81-293-0130-X

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प्रस्तुत है पुस्तक अमृत के घूँट.....

भगवान् रामचन्द्रका चित्र मर्यादा, शील, व्यवहार, आचरण, शक्ति, धैर्य, एकपत्नी-व्रत, सात्त्विक प्रेम, कर्तव्य-पालन, शरणागतरक्षा और शान्तिका उज्ज्वल प्रतीक है। उनमें अनन्तशक्तिके साथ धीरता, गम्भीरता और कोमलताकी पूजा है। एक भार्याकी मर्यादाका समाजमें महत्त्व, माधुर्य और सुखके आदर्शकी पूजा है। भरतमें आदर्श भ्रातृभक्ति, स्नेहार्द्रता, लोकभीरुता, आत्मग्लानि, त्याग, निर्मलता तथा दृढ़ताकी पूजा है। राजा दशरथमें सत्यवादिता दृढ़प्रतिज्ञा स्नेहकी पराकाष्ठा आदि गुण और स्त्रीके वशमें होनेका दुर्गुण मूर्तिमान् किया गया है। इन महापुरुषोंके चित्रों अथवा प्रतिमाओंमें हम दैवी भावोंका ही कलात्मक मूर्तरूप चित्रित देखते हैं।

योगेश्वर भगवान् श्रीकृष्णचन्द्रमें हम शक्ति, शौर्य, नीतिकुशलता, सौन्दर्य, समाजसेवा, दुष्टदमनका आदर्श देखते हैं। बाक्क श्रीकृष्णने व्रजके ग्वालोंमें प्रेम, सेवा, संगठन, शक्ति और सदाचार, पराक्रमके दिव्य गुण उत्पन्न किये थे। देशकी आध्यात्मिक, शारीरिक और आत्मिक उन्नतिके लिये वे गोपाल बने; भारतमें राष्ट्रसंगकी स्थापना, नीतिसे शत्रुको परास्त करना, दीनता और मोहसे हानि, त्यागकी महत्ता प्रकट की। निष्काम कर्मयोगकी महत्ता, साहस और शक्ति, नीति, ज्ञान, मधुरता, सौन्दर्य, सरसता, वीरता, धर्म, राजनीति, ऐश्वर्य, यश, श्री, वैराग्य और मोक्ष आदि दिव्य गुणोंकी पूजा हम उनकी मूर्तिमें किया करते हैं।

भगवान् बुद्धने सत्य, धर्म, अहिंसा, धृति, वैराग्य और त्याग आदि गुणोंका स्वरूप प्रकट किया था। उनके चरित्रमें सत्य और दयाका बल है, संयम और वैराग्यकी चरम सीमा है।

भक्तप्रवर हनुमान् हमारे यहाँ शक्ति, सेवा, आत्मसमर्पण और निरलसताके सात्त्विक प्रतीक (Symbol) हैं। एक आदर्श सेवकमें जो गुण होने अनिवार्य है, वे सब उनमें एकत्र कर दिये गये हैं। बजरंगबली हनुमान् अमित शक्ति और साहसके प्रतीक हैं। गणेशजीमें शुभ शक्तिका वास है। प्रत्येक कार्यके आरम्भमें गणेशका आवाहन हमारी दिव्य शक्तियोंको उत्तेजना देता है।

उपर्युक्त देवी-देवताओक्री पूजाके दो पक्ष है- १. वस्तुपक्ष, २. भावपक्ष। नाना मूर्तियोंके प्रतीकोंको देखकर मनमें तदनुकूल विचारोंकी सृष्टि होती है। समस्त जड़-मूर्तियाँ भावोंसे आवृत है। उन्हें सदा चर्मचक्षुओंके समक्ष रखनेसे तदनुकूल शुभ सात्त्विक सद्रुणोंका विकास होता है और मनुष्य अपना आदर्श भूल नहीं पाता। मूर्तियोंके निरन्तर दर्शन, आरती, कीर्तन, भजन, पूजन आदि धार्मिक कृत्योंका सबसे बड़ा लाभ यह है कि मनमें सद्गुणोंकी गंगाका प्रवाह अक्षुण्ण बना रहता है। मनको शुभ भावोंका सत्सक् प्राप्त होता है। गंदे विचार नहीं आ पाते। हमारे यहाँ प्रतिदिन आरती-पूजन आदिका विधान इसीलिये रखा गया है कि हम प्रातः स्वयं अपने मनकी गंदगीको साफ कर उसमें शुभ सामर्थ्यकी प्रतिष्ठा कर लिया करें।

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    अनुक्रम

  1. निवेदन
  2. आपकी विचारधारा की सही दिशा यह है
  3. हित-प्रेरक संकल्प
  4. सुख और स्वास्थ के लिये धन अनिवार्य नहीं है
  5. रुपये से क्या मिलता है और क्या नहीं
  6. चिन्ता एक मूर्खतापूर्वक आदत
  7. जीवन का यह सूनापन!
  8. नये ढंग से जीवन व्यतीत कीजिये
  9. अवकाश-प्राप्त जीवन भी दिलचस्प बन सकता है
  10. जीवन मृदु कैसे बने?
  11. मानव-हृदय में सत्-असत् का यह अनवरत युद्ध
  12. अपने विवेकको जागरूक रखिये
  13. कौन-सा मार्ग ग्रहण करें?
  14. बेईमानी एक मूर्खता है
  15. डायरी लिखने से दोष दूर होते हैं
  16. भगवदर्पण करें
  17. प्रायश्चित्त कैसे करें?
  18. हिंदू गृहस्थ के लिये पाँच महायज्ञ
  19. मनुष्यत्व को जीवित रखनेका उपाय-अर्थशौच
  20. पाठ का दैवी प्रभाव
  21. भूल को स्वीकार करने से पाप-नाश
  22. दूसरों की भूलें देखने की प्रवृत्ति
  23. एक मानसिक व्यथा-निराकरण के उपाय
  24. सुख किसमें है?
  25. कामभाव का कल्याणकारी प्रकाश
  26. समस्त उलझनों का एक हल
  27. असीम शक्तियोंकी प्रतीक हमारी ये देवमूर्तियाँ
  28. हिंदू-देवताओंके विचित्र वाहन, देश और चरित्र
  29. भोजनकी सात्त्विकता से मनकी पवित्रता आती है!
  30. भोजन का आध्यात्मिक उद्देश्य
  31. सात्त्विक आहार क्या है?
  32. मन को विकृत करनेवाला राजसी आहार क्या है?
  33. तामसी आहार क्या है?
  34. स्थायी सुख की प्राप्ति
  35. मध्यवर्ग सुख से दूर
  36. इन वस्तुओं में केवल सुखाभास है
  37. जीवन का स्थायी सुख
  38. आन्तरिक सुख
  39. सन्तोषामृत पिया करें
  40. प्राप्त का आदर करना सीखिये
  41. ज्ञान के नेत्र
  42. शान्ति की गोद में
  43. शान्ति आन्तरिक है
  44. सबसे बड़ा पुण्य-परमार्थ
  45. आत्मनिर्माण कैसे हो?
  46. परमार्थ के पथपर
  47. सदुपदेशों को ध्यानपूर्वक सुनिये
  48. गुप्त सामर्थ्य
  49. आनन्द प्राप्त करनेके अचूक उपाय
  50. अपने दिव्य सामर्थ्यों को विकसित कीजिये
  51. पाप से छूटने के उपाय
  52. पापसे कैसे बचें?
  53. पापों के प्रतीकार के लिये झींके नहीं, सत्कर्म करे!
  54. जीवन का सर्वोपरि लाभ
  55. वैराग्यपूर्ण स्थिति
  56. अपने-आपको आत्मा मानिये
  57. ईश्वरत्व बोलता है
  58. सुखद भविष्य में विश्वास करें
  59. मृत्यु का सौन्दर्य

विनामूल्य पूर्वावलोकन

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