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गीता प्रेस, गोरखपुर >> अमृत के घूँट

अमृत के घूँट

रामचरण महेन्द्र

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2007
पृष्ठ :185
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 5984
आईएसबीएन :81-293-0130-X

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प्रस्तुत है पुस्तक अमृत के घूँट.....

असीम शक्तियोंकी प्रतीक हमारी ये देवमूर्तियाँ

हिंदू तीर्थ-स्थानोंमें आप अनेक देव-मन्दिर देखते है, जो एक-से-एक सुन्दर, मनोरम, दर्शनीय देवी-देवताओंकी मूर्तियोंसे परिपूर्ण है, शिल्पकलाके अद्वितीय नमूने इनमें संगृहीत है। हमारे मस्तक जब पूज्यभावसे मन्दिरोंमें विराजित भगवान् श्रीराम, भगवान् श्रीकृष्ण, शिव, ब्रह्मा, दुर्गा, लक्ष्मी, सरस्वती, गायत्री आदिकी मूर्तियोंके प्रति श्रद्धासे झुक जाते हैं, तब हम वास्तवमें उन जड़ प्रतिमाओंके प्रति नहीं, प्रत्युत उन प्रतिमाओंकी कलारूपमें अभिव्यक्त दैवी भावों, शक्तियों और सामर्थ्योंके प्रति अपनी श्रद्धाके पुष्प अर्पित करते है। जड़ प्रतिमाएँ मानव-भावका कलात्मक मूर्तरूप है। गुप्त तात्पर्य प्रत्येक जड़ प्रतिमामें अंकित दैवी भाव ही है। किसीमें शक्ति, साहस, पौरुषका मूर्तिमान् स्वरूप है तो किसी मूर्तिमें सत्य, सौन्दर्य तथा शिवत्वका। इन मूर्तियोंका गुप्त अर्थ संकेतात्मक है। प्रत्येक हिंदू देवी-देवताकी प्रतिमा नैतिक, आध्यात्मिक विशद दृष्टि से निर्मित है। उसमें ऋषि-मुनियों ने गूढ़ विचारों का समावेश किया है।

एक युग था, जब प्रत्येक हिंदू हमारी प्रत्येक प्रतिमाका आन्तरिक अर्थ और गुप्त संकेत समझकर उन आध्यात्मिक दैवी गुणोंको जीवनमें उतारनेका प्रयत्न करता था। प्रतिमा-पूजन उसे सदा उन नैतिक, आध्यात्मिक सत्योंका स्मरण कराया करता था, जिनसे मनुष्यजीवन आदर्शरूप बनता है। उदाहरणके लिये हम तीन देवियोंमें अभिव्यक्त मूल भावोंको ले सकते हैं। हमारी अष्टभुजा दुर्गा सिंहपर विराजमान हैं। जो व्यक्ति अपने सामने दुर्गाकी मूर्ति रखता है, वह शुद्धरूपसे शारीरिक शक्ति और सामर्थ्यका पुजारी है। दुर्गाकी आठ भुजाएँ एक व्यक्तिमें चार व्यक्तियोंकी शक्ति, साहस, सामर्थ्य, बल प्रकट करती हैं, वे सिंह-जैसे बल-पौरुष और साहसमय वाहनपर विराजमान हैं। सब पशुओंके राजापर जिस देवीका अधिकार है, उसका उपासक गुप्तरूपसे ये ही सद्गुण एकत्र करेगा। जब-जब वह दुर्गाका चित्र देखेगा, उसके मनमें इन्हींका मानस चित्र उपस्थित होकर उन्नत भावों और गुणोंको चरित्रमें स्थान देगा।

देवी सरस्वतीके चार हाथ है अर्थात् उनमें दो व्यक्तियोंका शारीरिक बल है, पर उनके हाथोंमें वीणा संगीतकलाकी अद्भुत शक्ति प्रकट करती है, पुस्तक समस्त ज्ञान-विज्ञान, नीति, धर्म, शास्त्रोंके ज्ञानका प्रतीक है। एक हाथमें माला ज्ञानका धर्मके साथ समन्वय करती है। जो व्यक्ति सरस्वतीका उपासक है, वह वास्तवमें ज्ञान, विज्ञान, कला-विशेषतः साहित्य, कविता, संगीत, वाद्य आदिका उपासक है। सरस्वती प्रकृतिके रमणीय प्रांगणमें विचरण करती हैं। मत्त मयूरों, लहलहाते सर, निर्झर हंस इत्यादि कलात्मक परिस्थितियोंसे उनका निकट सम्पर्क है। वस्तुतः जो व्यक्ति सरस्वतीको अपना आदर्श बनाता है, वह ज्ञान और कलासे अपना साहचर्य प्रकट करता है।

देवी लक्ष्मीके चार हाथ है। हाथोंमें कमलका पुष्प, अमित धन, आभूषण, मुद्राएँ स्वर्ण आदि है। दोनों ओर दो हाथी चवँर कर रहे है। सुन्दर वस्त्रों तथा अलंकारोंसे वे विभूषित की गयी है। उनके चारों ओर ऐश्वर्यका विपुल विमुग्धकारी वातावरण मूर्तिमान् है। लक्ष्मीका गरिमामय चित्र हमारे मानस नेत्रोंके सम्मुख धन-सम्पदा-वैभवकी उपयोगिता तथा हमारी इन वस्तुओं के प्रति चपल लालसा अभिव्यक्त करता है।

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    अनुक्रम

  1. निवेदन
  2. आपकी विचारधारा की सही दिशा यह है
  3. हित-प्रेरक संकल्प
  4. सुख और स्वास्थ के लिये धन अनिवार्य नहीं है
  5. रुपये से क्या मिलता है और क्या नहीं
  6. चिन्ता एक मूर्खतापूर्वक आदत
  7. जीवन का यह सूनापन!
  8. नये ढंग से जीवन व्यतीत कीजिये
  9. अवकाश-प्राप्त जीवन भी दिलचस्प बन सकता है
  10. जीवन मृदु कैसे बने?
  11. मानव-हृदय में सत्-असत् का यह अनवरत युद्ध
  12. अपने विवेकको जागरूक रखिये
  13. कौन-सा मार्ग ग्रहण करें?
  14. बेईमानी एक मूर्खता है
  15. डायरी लिखने से दोष दूर होते हैं
  16. भगवदर्पण करें
  17. प्रायश्चित्त कैसे करें?
  18. हिंदू गृहस्थ के लिये पाँच महायज्ञ
  19. मनुष्यत्व को जीवित रखनेका उपाय-अर्थशौच
  20. पाठ का दैवी प्रभाव
  21. भूल को स्वीकार करने से पाप-नाश
  22. दूसरों की भूलें देखने की प्रवृत्ति
  23. एक मानसिक व्यथा-निराकरण के उपाय
  24. सुख किसमें है?
  25. कामभाव का कल्याणकारी प्रकाश
  26. समस्त उलझनों का एक हल
  27. असीम शक्तियोंकी प्रतीक हमारी ये देवमूर्तियाँ
  28. हिंदू-देवताओंके विचित्र वाहन, देश और चरित्र
  29. भोजनकी सात्त्विकता से मनकी पवित्रता आती है!
  30. भोजन का आध्यात्मिक उद्देश्य
  31. सात्त्विक आहार क्या है?
  32. मन को विकृत करनेवाला राजसी आहार क्या है?
  33. तामसी आहार क्या है?
  34. स्थायी सुख की प्राप्ति
  35. मध्यवर्ग सुख से दूर
  36. इन वस्तुओं में केवल सुखाभास है
  37. जीवन का स्थायी सुख
  38. आन्तरिक सुख
  39. सन्तोषामृत पिया करें
  40. प्राप्त का आदर करना सीखिये
  41. ज्ञान के नेत्र
  42. शान्ति की गोद में
  43. शान्ति आन्तरिक है
  44. सबसे बड़ा पुण्य-परमार्थ
  45. आत्मनिर्माण कैसे हो?
  46. परमार्थ के पथपर
  47. सदुपदेशों को ध्यानपूर्वक सुनिये
  48. गुप्त सामर्थ्य
  49. आनन्द प्राप्त करनेके अचूक उपाय
  50. अपने दिव्य सामर्थ्यों को विकसित कीजिये
  51. पाप से छूटने के उपाय
  52. पापसे कैसे बचें?
  53. पापों के प्रतीकार के लिये झींके नहीं, सत्कर्म करे!
  54. जीवन का सर्वोपरि लाभ
  55. वैराग्यपूर्ण स्थिति
  56. अपने-आपको आत्मा मानिये
  57. ईश्वरत्व बोलता है
  58. सुखद भविष्य में विश्वास करें
  59. मृत्यु का सौन्दर्य

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