गीता प्रेस, गोरखपुर >> अमृत के घूँट अमृत के घूँटरामचरण महेन्द्र
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प्रस्तुत है पुस्तक अमृत के घूँट.....
गायत्री-साधनाके फलस्वरूप सूक्ष्म शरीरके कुछ गुप्त कोषों, चक्रों, गुच्छकों, ग्रन्थियोंका विकास होता है, जिसके कारण दिव्य शक्तियोंका बढ़ना अपने-आप शुरू हो जाता है। बुद्धिकी तीव्रता, शरीरकी स्वस्थता, सत्पुरुषोंकी मित्रता, व्यावसायिक सफलता, कीर्ति, प्रतिष्ठा, पारिवारिक सुख-शान्ति, सुसंतति, व्याधियोंसे निवृत्ति, शत्रुताका निवारण आदि अनेकों लाभ अनायास ही मिलने लगते है। कारण यह है कि आत्मबल बढ़नेसे, दिव्य शक्तियों विकसित होनेसे, गुण-कर्म-स्वभावमें आशाजनक परिवर्तन हो जानेसे अनेक ज्ञात एवं अज्ञात बाधाएँ हट जाती है और ऐसे सूक्ष्म, तत्त्व अपनेमें बढ़ जाते है जो दिनोंदिन उन्नतिकी ओर ले जाते हैं।
राज्य-शासनपर जनताकी कठिनाइयोंका जितना उत्तरदायित्व है, उससे कहीं अधिक जनताकी मनोवृत्तियोंपर है। जनता प्रतिमा है; राज्य उसकी छाया है। जनताकी प्रबल इच्छाके प्रतिकूल कोई राज्य जम नहीं सकता, इसलिये हमें जड़को सींचना चाहिये। जनसाधारणका चरित्र ऊँचा उठाकर, उनकी मनोदशा में श्रेष्ठ तत्त्वोंको बढ़ाकर, सम्पूर्ण अन्ताराष्ट्रिय, अन्तर्देशीय, देशीय, सामाजिक, आर्थिक, शारीरिक एवं मानसिक समस्याओंकी सुलझाया जा सकता है। केवल कानून या सरकारमें हेर-फेर कर देनेसे स्थितिमें कोई विशेष परिवर्तन नहीं हो सकता।
मानव-जीवनकी जितनी भी गुत्थियों उलझी पड़ी है, उन सबको गायत्रीरूपी सद्बुद्धि, सात्त्विकता एवं सत्प्रवृतिको अपनानेसे सुलझाया जा सकता है।
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- निवेदन
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- हित-प्रेरक संकल्प
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- भगवदर्पण करें
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- हिंदू गृहस्थ के लिये पाँच महायज्ञ
- मनुष्यत्व को जीवित रखनेका उपाय-अर्थशौच
- पाठ का दैवी प्रभाव
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- एक मानसिक व्यथा-निराकरण के उपाय
- सुख किसमें है?
- कामभाव का कल्याणकारी प्रकाश
- समस्त उलझनों का एक हल
- असीम शक्तियोंकी प्रतीक हमारी ये देवमूर्तियाँ
- हिंदू-देवताओंके विचित्र वाहन, देश और चरित्र
- भोजनकी सात्त्विकता से मनकी पवित्रता आती है!
- भोजन का आध्यात्मिक उद्देश्य
- सात्त्विक आहार क्या है?
- मन को विकृत करनेवाला राजसी आहार क्या है?
- तामसी आहार क्या है?
- स्थायी सुख की प्राप्ति
- मध्यवर्ग सुख से दूर
- इन वस्तुओं में केवल सुखाभास है
- जीवन का स्थायी सुख
- आन्तरिक सुख
- सन्तोषामृत पिया करें
- प्राप्त का आदर करना सीखिये
- ज्ञान के नेत्र
- शान्ति की गोद में
- शान्ति आन्तरिक है
- सबसे बड़ा पुण्य-परमार्थ
- आत्मनिर्माण कैसे हो?
- परमार्थ के पथपर
- सदुपदेशों को ध्यानपूर्वक सुनिये
- गुप्त सामर्थ्य
- आनन्द प्राप्त करनेके अचूक उपाय
- अपने दिव्य सामर्थ्यों को विकसित कीजिये
- पाप से छूटने के उपाय
- पापसे कैसे बचें?
- पापों के प्रतीकार के लिये झींके नहीं, सत्कर्म करे!
- जीवन का सर्वोपरि लाभ
- वैराग्यपूर्ण स्थिति
- अपने-आपको आत्मा मानिये
- ईश्वरत्व बोलता है
- सुखद भविष्य में विश्वास करें
- मृत्यु का सौन्दर्य