गीता प्रेस, गोरखपुर >> अमृत के घूँट अमृत के घूँटरामचरण महेन्द्र
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प्रस्तुत है पुस्तक अमृत के घूँट.....
भ्रान्ति, अविद्या, अन्धपरम्पण, अदूरदर्शिता, लोलुपता और संकुचित दृष्टिको 'कुबुद्धि' कहते है। सुशिक्षित और चतुर समझे जानेवाले भी लोग इस स्वद्धिमें ग्रसित रहते है। फलस्वरूप उन्हें अकारण अनेक प्रकारके त्रास प्राप्त होते है। आजके युगमें संतान न होना एक ईश्वरीय वरदान है; पर लोग इसमें भी दुःख मानते है, कुरीतियोंका अन्धानुकरण करनेके लिये धन न मिलनेपर दुःख होता है। परिजनोंकी मृत्युपर ऐसा शोक करते है, मानो कोई अनहोनी घटना घटी हो। धनकी कामनामें ही व्यस्त रहना, जीवनके अन्य अंगोंका विकास न करना तथा विलासिता, फिजूल खर्ची, व्यसन, फैशनपरस्ती आदिमें डूबे रहना लोग अपनी बुद्धिमानी समझते हैं।
गायत्रीरूपी सद्बुद्धि जिस मस्तिष्कमें प्रवेश करती है, वह अन्धानुकरण करना छोड़कर हर प्रश्रपर मौलिक विचार करता है। वह उन चिन्ता, शोक, दुःख आदिसे छुटकारा पा लेता है, जो कुबुद्धिकी भ्रान्त धारणाओंके कारण मिलते है। संसारमें आधेसे अधिक दुःख कुबुद्धिके कारण है, उन्हें गायत्रीकी सद्बुद्धि जब हटा देती है तब मनुष्य सरलता, शान्ति, संतोष और प्रसन्नतासे परिपूर्ण रहने लगता है।
बीमारी और कमजोरी आज घर-घरमें घुसी हुई है। इसका कारण आहार-विहार का असंयम है। पशु-पक्षी प्रकृतिको आदर्श मानकर चलते है और नीरोग रहते है। प्रकृतिके आदर्शोंका उल्लंघन करनेसे ही मनुष्य बीमार पड़ता है, कमजोर होता है और जल्दी मर जाता है।
गायत्री-मन्त्रकी शिक्षामें आहार-विहारका संयम और प्राकृतिक जीवनकी विशेष प्रेरणा है। सादगी और सात्त्विकताके ढाँचेमें ढली हुई जीवन-चर्या नीरोगताकी प्रामाणिक गारंटी है।
चिड़चिड़ापन, आलस्य, लापरवाही, अनुदारता, अहंकार, कटुभाषण, निराशा, चिन्ता, आवेश, द्वेष आदि मानसिक बीमारियोंसे आन्तरिक स्वास्थ्य खोखला हो जाता है और व्यावहारिक जीवनमें पग-पगपर ठोकरें लगती है। गायत्री-साधना मनुष्यके स्वभावमें सात्त्विक परिवर्तन करती है, सद्गुण बढ़ाती है। फलस्वरूप मानसिक अस्वस्थता नष्ट होकर मनोबल बढ़ता है और उसके द्वारा अनेकों लाभ प्राप्त होते रहते हैं। आन्तरिक निर्बलता एक ऐसी व्यक्तिगत कमी है, जिसके कारण मनुष्य इच्छा करते हुए भी कुछ कर नहीं पाता। मानव-तत्त्वका पूर्ण विकास कुछ ऐसे तथ्योंपर निर्भर है जो बहुधा अपने हाथमें नहीं होते। सूक्ष्म-शरीरमें उसकी जड़ें होनेके कारण ऐसा मानना पड़ता है कि अमुक विशेषताओंसे भाग्यने या भगवान् ने हमें वञ्चित कर रखा है। गायत्री-साधनाका प्रवेश सूक्ष्म शरीरके उस भागतक हो जाता है, जहाँ भाग्य को फेरनेवाली कुंजी छिपी रहती है।
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- निवेदन
- आपकी विचारधारा की सही दिशा यह है
- हित-प्रेरक संकल्प
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- अवकाश-प्राप्त जीवन भी दिलचस्प बन सकता है
- जीवन मृदु कैसे बने?
- मानव-हृदय में सत्-असत् का यह अनवरत युद्ध
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- भगवदर्पण करें
- प्रायश्चित्त कैसे करें?
- हिंदू गृहस्थ के लिये पाँच महायज्ञ
- मनुष्यत्व को जीवित रखनेका उपाय-अर्थशौच
- पाठ का दैवी प्रभाव
- भूल को स्वीकार करने से पाप-नाश
- दूसरों की भूलें देखने की प्रवृत्ति
- एक मानसिक व्यथा-निराकरण के उपाय
- सुख किसमें है?
- कामभाव का कल्याणकारी प्रकाश
- समस्त उलझनों का एक हल
- असीम शक्तियोंकी प्रतीक हमारी ये देवमूर्तियाँ
- हिंदू-देवताओंके विचित्र वाहन, देश और चरित्र
- भोजनकी सात्त्विकता से मनकी पवित्रता आती है!
- भोजन का आध्यात्मिक उद्देश्य
- सात्त्विक आहार क्या है?
- मन को विकृत करनेवाला राजसी आहार क्या है?
- तामसी आहार क्या है?
- स्थायी सुख की प्राप्ति
- मध्यवर्ग सुख से दूर
- इन वस्तुओं में केवल सुखाभास है
- जीवन का स्थायी सुख
- आन्तरिक सुख
- सन्तोषामृत पिया करें
- प्राप्त का आदर करना सीखिये
- ज्ञान के नेत्र
- शान्ति की गोद में
- शान्ति आन्तरिक है
- सबसे बड़ा पुण्य-परमार्थ
- आत्मनिर्माण कैसे हो?
- परमार्थ के पथपर
- सदुपदेशों को ध्यानपूर्वक सुनिये
- गुप्त सामर्थ्य
- आनन्द प्राप्त करनेके अचूक उपाय
- अपने दिव्य सामर्थ्यों को विकसित कीजिये
- पाप से छूटने के उपाय
- पापसे कैसे बचें?
- पापों के प्रतीकार के लिये झींके नहीं, सत्कर्म करे!
- जीवन का सर्वोपरि लाभ
- वैराग्यपूर्ण स्थिति
- अपने-आपको आत्मा मानिये
- ईश्वरत्व बोलता है
- सुखद भविष्य में विश्वास करें
- मृत्यु का सौन्दर्य