गीता प्रेस, गोरखपुर >> अमृत के घूँट अमृत के घूँटरामचरण महेन्द्र
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प्रस्तुत है पुस्तक अमृत के घूँट.....
विश्वयुद्धके बाद दूसरी समस्या खाद्य पदार्थोंकी कमीकी है। कुछ देशोंको छोड़कर प्रायः सर्वत्र अन्नकी कमी पड़ रही है। सिंचाई, रासायनिक खाद, वैज्ञानिक यन्त्रों आदिकी सुविधा बढ़ाकर अधिक अन्न उपजानेका प्रयत्न किया जा रहा है। इससे कुछ तात्कालिक सुधार भले ही हो जाय, पर स्थायी सुधार न होगा; क्योंकि जनसंख्या जिस तेजीसे बढ़ रही है, उसकी पूर्ति करनेलायक शक्ति पृथ्वीमें नहीं है। विशेषज्ञोंका कहना है कि कृषियोग्य सारी जमीनपर वैज्ञानिक कृषि कर लेनेसे भी सिर्फ इतनी उपज बढ़ सकती है, जो आगामी चालीस वर्षोंतक लोगोंका पेट भर सके। इसके बाद फिर भुखमरी फैलेगी।
इस प्रश्रका एकमात्र हल संतान-निग्रह है। सभी बुद्धिमान् एक स्वरसे यह स्वीकार करते है कि संतान पैदा करना रोका जाय। संतान-निग्रहका सर्वश्रेष्ठ उपाय है ब्रह्मचर्य। जो तभी सम्भव है जब गायत्री-भावनाके अनुरूप नारीके प्रति विकारदृष्टिको त्यागकर पूज्यभाव स्थापित किया जाय। इससे खाद्यसंकटकी समस्या हल होगी। जनसंख्याकी वृद्धि रुकेगी, शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य सुधरेगा। गायत्रीकी साप्ताहिक उपवास-साधनाको यदि समर्थ लोग अपना लें तो आजकी आवश्यकता पूरी हो जाय और विदेशोंसे एक दाना भी अन्न न माँगना पड़े।
तीसरी व्यापक कठिनाई अनैतिकताकी है। ठगी, विश्वासघात, वचनभंग, स्वार्थ, द्वेष, अहंकार, पर-पीडन और कर्तव्यत्यागकी बुराइयों आदि बेतरह बढ़ रही है। सरकारी कर्मचारी, व्यापारी, धर्म-प्रचारक, नेता, मजदूर आदि सभी वर्गोंमें इस प्रकारकी दूषित मनोवृत्ति बढ़ रही है। अविश्वास, असंतोष और आशंकासे हर एक का मन भारी हो रहा है।
इस स्थितिको कानून, पुलिस, फौज या सरकार नहीं सुधार सकती। जब अन्तरात्मामें ईश्वरीय वाणी जाग्रत् होकर धर्मभावना, कर्तव्यनिष्ठा, ईमानदारी, त्याग, प्रेम और सेवाकी भावना पैदा करेगी, तभी व्यापक अनैतिकता की दुःखदायक स्थिति का अन्त होगा। यह परिवर्तन गायत्रीकी आत्म-विज्ञान-सम्मत प्रक्रिया द्वारा सुगमतापूर्वक सम्भव हो सकता है।
पाप, अनाचार, कुकर्म एवं दुर्बुद्धिके कारण ही मनुष्य नाना प्रकारके दुःख भोगता है। जब जड़ कट जाती है, पापवृत्ति में परिवर्तन हो जाता है तो नाना प्रकारके दैविक, दैहिक, भौतिक दुःखोंसे मानव-जातिको सहज ही छुटकारा मिल जाता है। कलह, संघर्ष, द्वेषके बीज स्वार्थपरता में है। जहाँ पारमार्थिक दृष्टिकोण होगा, वहाँ प्रेम-गंगाकी शान्तिदायिनी निर्मल धारा प्रवाहित होगी।
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- शान्ति की गोद में
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- आनन्द प्राप्त करनेके अचूक उपाय
- अपने दिव्य सामर्थ्यों को विकसित कीजिये
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