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गीता प्रेस, गोरखपुर >> अमृत के घूँट

अमृत के घूँट

रामचरण महेन्द्र

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2007
पृष्ठ :185
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 5984
आईएसबीएन :81-293-0130-X

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प्रस्तुत है पुस्तक अमृत के घूँट.....

विश्वयुद्धके बाद दूसरी समस्या खाद्य पदार्थोंकी कमीकी है। कुछ देशोंको छोड़कर प्रायः सर्वत्र अन्नकी कमी पड़ रही है। सिंचाई, रासायनिक खाद, वैज्ञानिक यन्त्रों आदिकी सुविधा बढ़ाकर अधिक अन्न उपजानेका प्रयत्न किया जा रहा है। इससे कुछ तात्कालिक सुधार भले ही हो जाय, पर स्थायी सुधार न होगा; क्योंकि जनसंख्या जिस तेजीसे बढ़ रही है, उसकी पूर्ति करनेलायक शक्ति पृथ्वीमें नहीं है। विशेषज्ञोंका कहना है कि कृषियोग्य सारी जमीनपर वैज्ञानिक कृषि कर लेनेसे भी सिर्फ इतनी उपज बढ़ सकती है, जो आगामी चालीस वर्षोंतक लोगोंका पेट भर सके। इसके बाद फिर भुखमरी फैलेगी।

इस प्रश्रका एकमात्र हल संतान-निग्रह है। सभी बुद्धिमान् एक स्वरसे यह स्वीकार करते है कि संतान पैदा करना रोका जाय। संतान-निग्रहका सर्वश्रेष्ठ उपाय है ब्रह्मचर्य। जो तभी सम्भव है जब गायत्री-भावनाके अनुरूप नारीके प्रति विकारदृष्टिको त्यागकर पूज्यभाव स्थापित किया जाय। इससे खाद्यसंकटकी समस्या हल होगी। जनसंख्याकी वृद्धि रुकेगी, शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य सुधरेगा। गायत्रीकी साप्ताहिक उपवास-साधनाको यदि समर्थ लोग अपना लें तो आजकी आवश्यकता पूरी हो जाय और विदेशोंसे एक दाना भी अन्न न माँगना पड़े।

तीसरी व्यापक कठिनाई अनैतिकताकी है। ठगी, विश्वासघात, वचनभंग, स्वार्थ, द्वेष, अहंकार, पर-पीडन और कर्तव्यत्यागकी बुराइयों आदि बेतरह बढ़ रही है। सरकारी कर्मचारी, व्यापारी, धर्म-प्रचारक, नेता, मजदूर आदि सभी वर्गोंमें इस प्रकारकी दूषित मनोवृत्ति बढ़ रही है। अविश्वास, असंतोष और आशंकासे हर एक का मन भारी हो रहा है।

इस स्थितिको कानून, पुलिस, फौज या सरकार नहीं सुधार सकती। जब अन्तरात्मामें ईश्वरीय वाणी जाग्रत् होकर धर्मभावना, कर्तव्यनिष्ठा, ईमानदारी, त्याग, प्रेम और सेवाकी भावना पैदा करेगी, तभी व्यापक अनैतिकता की दुःखदायक स्थिति का अन्त होगा। यह परिवर्तन गायत्रीकी आत्म-विज्ञान-सम्मत प्रक्रिया द्वारा सुगमतापूर्वक सम्भव हो सकता है।

पाप, अनाचार, कुकर्म एवं दुर्बुद्धिके कारण ही मनुष्य नाना प्रकारके दुःख भोगता है। जब जड़ कट जाती है, पापवृत्ति में परिवर्तन हो जाता है तो नाना प्रकारके दैविक, दैहिक, भौतिक दुःखोंसे मानव-जातिको सहज ही छुटकारा मिल जाता है। कलह, संघर्ष, द्वेषके बीज स्वार्थपरता में है। जहाँ पारमार्थिक दृष्टिकोण होगा, वहाँ प्रेम-गंगाकी शान्तिदायिनी निर्मल धारा प्रवाहित होगी।

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    अनुक्रम

  1. निवेदन
  2. आपकी विचारधारा की सही दिशा यह है
  3. हित-प्रेरक संकल्प
  4. सुख और स्वास्थ के लिये धन अनिवार्य नहीं है
  5. रुपये से क्या मिलता है और क्या नहीं
  6. चिन्ता एक मूर्खतापूर्वक आदत
  7. जीवन का यह सूनापन!
  8. नये ढंग से जीवन व्यतीत कीजिये
  9. अवकाश-प्राप्त जीवन भी दिलचस्प बन सकता है
  10. जीवन मृदु कैसे बने?
  11. मानव-हृदय में सत्-असत् का यह अनवरत युद्ध
  12. अपने विवेकको जागरूक रखिये
  13. कौन-सा मार्ग ग्रहण करें?
  14. बेईमानी एक मूर्खता है
  15. डायरी लिखने से दोष दूर होते हैं
  16. भगवदर्पण करें
  17. प्रायश्चित्त कैसे करें?
  18. हिंदू गृहस्थ के लिये पाँच महायज्ञ
  19. मनुष्यत्व को जीवित रखनेका उपाय-अर्थशौच
  20. पाठ का दैवी प्रभाव
  21. भूल को स्वीकार करने से पाप-नाश
  22. दूसरों की भूलें देखने की प्रवृत्ति
  23. एक मानसिक व्यथा-निराकरण के उपाय
  24. सुख किसमें है?
  25. कामभाव का कल्याणकारी प्रकाश
  26. समस्त उलझनों का एक हल
  27. असीम शक्तियोंकी प्रतीक हमारी ये देवमूर्तियाँ
  28. हिंदू-देवताओंके विचित्र वाहन, देश और चरित्र
  29. भोजनकी सात्त्विकता से मनकी पवित्रता आती है!
  30. भोजन का आध्यात्मिक उद्देश्य
  31. सात्त्विक आहार क्या है?
  32. मन को विकृत करनेवाला राजसी आहार क्या है?
  33. तामसी आहार क्या है?
  34. स्थायी सुख की प्राप्ति
  35. मध्यवर्ग सुख से दूर
  36. इन वस्तुओं में केवल सुखाभास है
  37. जीवन का स्थायी सुख
  38. आन्तरिक सुख
  39. सन्तोषामृत पिया करें
  40. प्राप्त का आदर करना सीखिये
  41. ज्ञान के नेत्र
  42. शान्ति की गोद में
  43. शान्ति आन्तरिक है
  44. सबसे बड़ा पुण्य-परमार्थ
  45. आत्मनिर्माण कैसे हो?
  46. परमार्थ के पथपर
  47. सदुपदेशों को ध्यानपूर्वक सुनिये
  48. गुप्त सामर्थ्य
  49. आनन्द प्राप्त करनेके अचूक उपाय
  50. अपने दिव्य सामर्थ्यों को विकसित कीजिये
  51. पाप से छूटने के उपाय
  52. पापसे कैसे बचें?
  53. पापों के प्रतीकार के लिये झींके नहीं, सत्कर्म करे!
  54. जीवन का सर्वोपरि लाभ
  55. वैराग्यपूर्ण स्थिति
  56. अपने-आपको आत्मा मानिये
  57. ईश्वरत्व बोलता है
  58. सुखद भविष्य में विश्वास करें
  59. मृत्यु का सौन्दर्य

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