गीता प्रेस, गोरखपुर >> अमृत के घूँट अमृत के घूँटरामचरण महेन्द्र
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प्रस्तुत है पुस्तक अमृत के घूँट.....
समस्त उलझनों का एक हल
आज मनुष्योंके व्यक्तिगत तथा सामूहिक जीवनमें अनेक प्रकारकी समस्याएँ उपस्थित है, अनेक गुत्थियाँ उलझी हुई है, हर एक उलझन ऐसी विषम है कि उसकी परेशानीसे प्रत्येक मनुष्य चिन्ताग्रस्त एवं दुःखी हो रहा है। इन कठिनाइयोंको हल करनेके लिये नाना प्रकारके उपाय काममें लाये जा रहे है; पर सफलताकी कोई आशा-किरण भी दिखायी नहीं पड़ती।
समस्त कठिनाइयों, व्यथाओं और वेदनाओंका एक ही कारण है और उनके निवारणका उपाय भी एक ही है। काँटा चुभना दर्दका कारण है तो उसे निकाल देना ही दर्दसे छुटकारा पानेका उपाय है। मनोवृत्तियोंका संकुचित, स्वार्थग्रस्त हो जाना ही उलझनोंका कारण है। संसारमें तबतक शान्ति स्थापित नहीं हो सकती, जबतक कि मनुष्यका अन्तःकरण परमार्थकी ओर न झुके, सात्त्विकता, धार्मिकता, उदारताको न अपनावे।
गायत्री सात्त्विकताकी प्रतीक है। गायत्री-भक्त होनेका अर्थ है-जीवनको सत्त्वगुणी, धार्मिक बनानेका लक्ष्य स्थिर करना। गायत्री-उपासनाका अर्थ है-उन आध्यात्मिक उपचारोंका अवलम्बन करना, जो अन्तःकरणमें सत्त्वगुणी परमार्थभावनाका बीजारोपण करते हैं। गायत्रीका आश्रय लेनेका तात्पर्य बुद्धिको उस सात्त्विकताकी गोदमें डाल देना है, जो मनुष्यके समस्त विचारों, गुणों, स्वभावों और आचरणोंको दिव्य तत्त्वोंसे परिपूर्ण कर देती है। इस प्रक्रियाको अन्तस्तलमें गहराईतक प्रतिष्ठित करनेसे मनुष्य उस स्थितिमें पहुँच जाता है, जिसमें उसके सामने कोई उलझन शेष नहीं रहती। आइये, अब जीवनकी प्रमुख समस्याओं पर विचार करें और देखें कि गायत्रीरूपी सद्बुद्धिको अपना लेनेपर वे किस प्रकार सुलझ सकती हैं।
विश्वयुद्धकी घटाएँ आकाशमें घुमड़ रही है। कह नहीं सकते कि किस क्षण विस्फोट हो जाय और परमाणु बम दुनियाको तहस-नहस कर दें। इन युद्धोंका कारण साम्राज्यवादी लालसाएँ ही हैं। एक देश दूसरे देशपर अपना प्रभुत्व जमाने, उसका शोषण करनेकी मनोवृत्तिको छोड़ दे और न्यायपर दृढ़ रहे तो इन युद्धोंका कोई कारण नहीं रह जाता।
यदि आज विश्व-राजनीतिमें गायत्रीप्रतिपादित 'न्याय' का समावेश हो जाय तो युद्धकी तैयारी पर जो शक्ति लगी हुई है, वह रचनात्मक कार्योंमें लगकर जीवनकी सुविधाओंको बढ़ाये और अन्ताराष्ट्रिय सहयोगके आधारपर विश्व-बन्धुत्वके प्रेमभावका समुचित विकास हो सकता है। महायुद्धकी आशंकासे आज समस्त संसार संत्रस्त है। इस त्रासको कूटनीतिक माथापच्चीसे नहीं, गायत्रीकी निर्मल भावनाओंद्वारा सुलझाया जा सकता है।
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