गीता प्रेस, गोरखपुर >> अमृत के घूँट अमृत के घूँटरामचरण महेन्द्र
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प्रस्तुत है पुस्तक अमृत के घूँट.....
कामभाव का कल्याणकारी प्रकाश
कामभाव मानवके लिये एक विषम पहेली बना हुआ है। अनेक बार इस दुर्निवार भावनाके अनेक आवेशमें मनुष्य ऐसे दुष्कृत्य कर बैठता है कि बादमें उसे पश्चात्ताप होता है। अनेक पुरानी कहानियों द्वारा विदित होता है कि कामवासना भयंकर उत्पात का कारण बनी है। अतः इस भयंकर शत्रुसे सावधान रहनेकी परम आवश्यकता है।
वासनाका दमन अत्यन्त कठिन है। यह मानवकी एक सहज वृत्ति है। इससे सर्वथा मुक्ति पा लेना कठिन है। मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोणसे वासनाको दबाना अस्वाभाविक एवं अकल्याणकारी है। जिन व्यक्तियोंमें कामवासना दलित होकर अन्तर्मनमें पैठ जाती है, वे अनजानमें ही अनेक विकारोंसे ग्रसित रहते है। नाना प्रकारकी गालियोंका प्रयोग, गुप्त अंगोंका स्पर्श एवं कुचेष्टाएँ गंदे संकेत, गुप्त मनमें जटिलतासे प्रविष्ट दलित वासनाके वाह्य प्रदर्शन हैं। हँसी-मजाकमें निन्द्य शब्दोंके प्रयोगद्वारा मनकी संचित गंदगी निकला करती है। गंदगीका निकलना स्वास्थके लिये हितकर है अन्यथा वह मानसिक विकृति, अपस्मार, हिस्टीरिया, स्नायुविकता आदि प्रमादजन्य रोगोंके रूपमें बाहर निकलती है। पागलपनका कारण प्रायः दलित कामवासना ही है।
कामवासनाका शमन सम्भव है
स्मरण रखिये, कामवासनाका दमन अत्यन्त कठिन है। इससे मुक्ति पानेका एक उपाय यह है कि इसका शमन (Sublimation) किया जाय। शमन करना हितकर है। दमनमें अमृत भी विष-तुल्य बन जाता है, किंतु दूसरी ओर शमनद्वारा विष भी अमृतमय फल प्रदान करना है। वासना एक प्रकारकी शक्ति है। उसे गंदे अनुत्पादक मार्गोंसे हटाकर पवित्र, उपयोगी, सृजनात्मक कार्योंमें लगाना श्रेयस्कर है।
सवोंत्तम मार्ग है भक्ति, भगवत्पूजा, आराधना इत्यादि। अनेक संत ज्ञानी-महात्माओंने अपनी वासनाओंका शमन इसी पवित्र मार्गके द्वारा किया है। गोस्वामी तुलसीदास, भक्तप्रवर सूरदास, कविवर रसखान इत्यादि विद्वानोंको अन्तमें भक्ति, पूजा एवं आराधनाके पवित्र मार्गसे ही शान्ति एवं नवप्रेरणा प्राप्त हुई। परमात्माके नाम-स्मरण, पूजन, कीर्तन, सद्ग्रन्थावलोकनमें मनुष्यकी शक्तियों केन्द्रित होनेसे समस्त पाप भस्म हो जाते है। दृढ़ आत्माओं, विचारशील पुरुषोंके लिये भक्ति-आराधनाका मार्ग सर्वोत्तम है। अपना जीवन ईश्वरमय कर देनेसे समस्त विकार सहज ही दग्ध हो जाते हैं।
साधारण व्यक्तियोंके लिये गृहस्थ-जीवन ही शास्त्र-सम्मत मार्ग है। समाजने स्वयं विवाह द्वारा दो मानव-प्राणियोंको बाँधकर धर्मकी मुहर लगाकर कामभावके स्वस्थ विकासकी व्यवस्था कर दी है। विवाहमें भी विवेक एवं संयमकी अतीव आवश्यकता है। विवाहका यह तात्पर्य नहीं कि मनुष्य अनियोजित रूपसे वासना-तुष्टिमें निमग्र हो जाय। विवाहके साथ परिवारका उत्तरदायित्व संलग्न है। जब मनुष्यको विवेक होता है और उसे क्षय होती हुई शक्तियोंका ज्ञान होता है, तब वह धीरे-धीरे स्वयं संयम तथा आत्म-नियंत्रणके मार्गपर आरूढ़ होने लगता है। विवाहित व्यक्ति ब्रह्मचर्यका पालन अविवाहितकी अपेक्षा अधिक सुविधापूर्वक कर सकता है।
कामभावनाके स्वस्थ विकासके लिये कुछ सार्वजनिक कलात्मक उपाय भी हैं। कलात्मक रूपोंमें प्रकाशित होनेसे वासनाका कलुषित विकार दूर हो जाता है। इन मार्गोंके द्वारा आत्म-संयम और शक्तिसंग्रह तो होता ही है, प्रसिद्धि और समृद्धि भी प्राप्त होती है। इस वर्गमें संगीत, चित्रकारी, कशीदा, बुनाई, साहित्य-निर्माण, बागवानी, साहसिक यात्राएँ प्राकृतिक सौन्दर्य-निरीक्षण, सार्वजनिक सेवा-कार्य, अध्यापन इत्यादि अनेक कार्य ऐसे अपनी प्रकृतिके अनुसार आप चुन सकते हैं। इनमें तन्मयतापूर्वक लगनेसे मनुष्यको अपनी वासनाओंको निकालनेका अवसर प्राप्त हो जाता है। वासनाकी शक्तिको संगीत-साहित्यके मार्गमें मोड़कर मनुष्य सफल एवं उच्चकोटिका कलाकार बन सकता है। समाजसेवा, जाति-उत्थान तथा पददलित मानवताकी सेवाका विस्तृत क्षेत्रमार्ग हमारे लिये खुला पड़ा है। इनमें निरन्तर मन लगानेसे वासनाका उन्नयन होता है।
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