गीता प्रेस, गोरखपुर >> अमृत के घूँट अमृत के घूँटरामचरण महेन्द्र
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प्रस्तुत है पुस्तक अमृत के घूँट.....
प्रत्येक ईश्वरीय शक्ति एक देवी या देवताका रूप है, वह एक अदृश्य शक्तिको प्रकट करता है। इससे लाभ यह है कि एक देवी या देवतासे स्पष्ट होनेवाली शक्तिका अच्छा परिचय और प्रतीति हो जाय। मनोविज्ञानका यह अटल सिद्धात है कि हम जिस शक्तिका अधिक देरतक चिन्तन या विचार करते रहते हैं, जिसको मूर्तरूपमें देखते है, उसी शक्तिको अपने अंदर ग्रहण भी करते हैं। उस शक्तिको धारण करनेसे हमारे मन, बुद्धि और शरीरमें नयी क्षमता और अजेय संकल्प उत्पन्न होता है। जहाँ धर्म, वहाँ शक्ति है, यह बिलकुल सत्य है। धर्मका अर्थ है सत्य और न्याययुक्त चेष्टा, क्रिया; जो सत्य और न्याययुक्त है, उसे शक्तिमान् होना ही चाहिये। ईश्वरकी शक्तिसे आत्माके माध्यमद्वारा हम ताकत लेते है। जो गुण ईश्वरमें है, वे ही हमारी आत्मामें है। इस प्रकार ईश्वरकी जिस शक्ति अर्थात् जिस देवी-देवताकी हम आराधना करते हैं, वही हमारे चरित्रमें विकसित हो जाती है।
तात्पर्य यह कि देवपूजा ईश्वरकी शक्ति ग्रहण करनेकी मनोवैज्ञानिक रीति हैं। शक्तिका चित्र तो कल्पनाकी ही तस्वीर है। प्रतीक तो आखिर प्रतीक ही है। वह तो एक आधार है, जिसका गुप्त तात्पर्य समझना चाहिये और उसकी शक्तिसे चरित्रमें धारण करना चाहिये। हमारे देवता ईश्वरके नाना गुणोंके बोधक प्रतीक है, मूर्तस्वरूप है। उन गुणोंके अनुसार ही उनकी विचित्र आकृतियाँ है, वेशभूषा है और वाहन हैं।
जब किसी गुणकी कल्पना करनेके लिये कहा जाय तब आपको अपने मनमें किसी-न-किसी प्रकारकी कल्पना या चित्र तैयार करना पड़ेगा। विचार किसी-न-किसी रूपमें तो प्रकट होगा ही, मस्तिष्क कोई आकृति जरूर बनायेगा। दिव्य दृष्टि रखनेवाले योगियोंने ईश्वरकी शक्तियोंकी जो आकृतियाँ तैयार की है, वे देवी-देवता कहलाती हैं। यह एक प्रतीक प्रणाली है। जैसे भाषाका अक्षर-विज्ञान सूक्ष्म आकृतियोंपर निर्भर रहता है, उसी प्रकार ईश्वरीय लिपि हमारे ये देवतागण हैं।
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