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गीता प्रेस, गोरखपुर >> अमृत के घूँट

अमृत के घूँट

रामचरण महेन्द्र

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2007
पृष्ठ :185
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 5984
आईएसबीएन :81-293-0130-X

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प्रस्तुत है पुस्तक अमृत के घूँट.....

प्रत्येक ईश्वरीय शक्ति एक देवी या देवताका रूप है, वह एक अदृश्य शक्तिको प्रकट करता है। इससे लाभ यह है कि एक देवी या देवतासे स्पष्ट होनेवाली शक्तिका अच्छा परिचय और प्रतीति हो जाय। मनोविज्ञानका यह अटल सिद्धात है कि हम जिस शक्तिका अधिक देरतक चिन्तन या विचार करते रहते हैं, जिसको मूर्तरूपमें देखते है, उसी शक्तिको अपने अंदर ग्रहण भी करते हैं। उस शक्तिको धारण करनेसे हमारे मन, बुद्धि और शरीरमें नयी क्षमता और अजेय संकल्प उत्पन्न होता है। जहाँ धर्म, वहाँ शक्ति है, यह बिलकुल सत्य है। धर्मका अर्थ है सत्य और न्याययुक्त चेष्टा, क्रिया; जो सत्य और न्याययुक्त है, उसे शक्तिमान् होना ही चाहिये। ईश्वरकी शक्तिसे आत्माके माध्यमद्वारा हम ताकत लेते है। जो गुण ईश्वरमें है, वे ही हमारी आत्मामें है। इस प्रकार ईश्वरकी जिस शक्ति अर्थात् जिस देवी-देवताकी हम आराधना करते हैं, वही हमारे चरित्रमें विकसित हो जाती है।

तात्पर्य यह कि देवपूजा ईश्वरकी शक्ति ग्रहण करनेकी मनोवैज्ञानिक रीति हैं। शक्तिका चित्र तो कल्पनाकी ही तस्वीर है। प्रतीक तो आखिर प्रतीक ही है। वह तो एक आधार है, जिसका गुप्त तात्पर्य समझना चाहिये और उसकी शक्तिसे चरित्रमें धारण करना चाहिये। हमारे देवता ईश्वरके नाना गुणोंके बोधक प्रतीक है, मूर्तस्वरूप है। उन गुणोंके अनुसार ही उनकी विचित्र आकृतियाँ है, वेशभूषा है और वाहन हैं।

जब किसी गुणकी कल्पना करनेके लिये कहा जाय तब आपको अपने मनमें किसी-न-किसी प्रकारकी कल्पना या चित्र तैयार करना पड़ेगा। विचार किसी-न-किसी रूपमें तो प्रकट होगा ही, मस्तिष्क कोई आकृति जरूर बनायेगा। दिव्य दृष्टि रखनेवाले योगियोंने ईश्वरकी शक्तियोंकी जो आकृतियाँ तैयार की है, वे देवी-देवता कहलाती हैं। यह एक प्रतीक प्रणाली है। जैसे भाषाका अक्षर-विज्ञान सूक्ष्म आकृतियोंपर निर्भर रहता है, उसी प्रकार ईश्वरीय लिपि हमारे ये देवतागण हैं।

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    अनुक्रम

  1. निवेदन
  2. आपकी विचारधारा की सही दिशा यह है
  3. हित-प्रेरक संकल्प
  4. सुख और स्वास्थ के लिये धन अनिवार्य नहीं है
  5. रुपये से क्या मिलता है और क्या नहीं
  6. चिन्ता एक मूर्खतापूर्वक आदत
  7. जीवन का यह सूनापन!
  8. नये ढंग से जीवन व्यतीत कीजिये
  9. अवकाश-प्राप्त जीवन भी दिलचस्प बन सकता है
  10. जीवन मृदु कैसे बने?
  11. मानव-हृदय में सत्-असत् का यह अनवरत युद्ध
  12. अपने विवेकको जागरूक रखिये
  13. कौन-सा मार्ग ग्रहण करें?
  14. बेईमानी एक मूर्खता है
  15. डायरी लिखने से दोष दूर होते हैं
  16. भगवदर्पण करें
  17. प्रायश्चित्त कैसे करें?
  18. हिंदू गृहस्थ के लिये पाँच महायज्ञ
  19. मनुष्यत्व को जीवित रखनेका उपाय-अर्थशौच
  20. पाठ का दैवी प्रभाव
  21. भूल को स्वीकार करने से पाप-नाश
  22. दूसरों की भूलें देखने की प्रवृत्ति
  23. एक मानसिक व्यथा-निराकरण के उपाय
  24. सुख किसमें है?
  25. कामभाव का कल्याणकारी प्रकाश
  26. समस्त उलझनों का एक हल
  27. असीम शक्तियोंकी प्रतीक हमारी ये देवमूर्तियाँ
  28. हिंदू-देवताओंके विचित्र वाहन, देश और चरित्र
  29. भोजनकी सात्त्विकता से मनकी पवित्रता आती है!
  30. भोजन का आध्यात्मिक उद्देश्य
  31. सात्त्विक आहार क्या है?
  32. मन को विकृत करनेवाला राजसी आहार क्या है?
  33. तामसी आहार क्या है?
  34. स्थायी सुख की प्राप्ति
  35. मध्यवर्ग सुख से दूर
  36. इन वस्तुओं में केवल सुखाभास है
  37. जीवन का स्थायी सुख
  38. आन्तरिक सुख
  39. सन्तोषामृत पिया करें
  40. प्राप्त का आदर करना सीखिये
  41. ज्ञान के नेत्र
  42. शान्ति की गोद में
  43. शान्ति आन्तरिक है
  44. सबसे बड़ा पुण्य-परमार्थ
  45. आत्मनिर्माण कैसे हो?
  46. परमार्थ के पथपर
  47. सदुपदेशों को ध्यानपूर्वक सुनिये
  48. गुप्त सामर्थ्य
  49. आनन्द प्राप्त करनेके अचूक उपाय
  50. अपने दिव्य सामर्थ्यों को विकसित कीजिये
  51. पाप से छूटने के उपाय
  52. पापसे कैसे बचें?
  53. पापों के प्रतीकार के लिये झींके नहीं, सत्कर्म करे!
  54. जीवन का सर्वोपरि लाभ
  55. वैराग्यपूर्ण स्थिति
  56. अपने-आपको आत्मा मानिये
  57. ईश्वरत्व बोलता है
  58. सुखद भविष्य में विश्वास करें
  59. मृत्यु का सौन्दर्य

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