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गीता प्रेस, गोरखपुर >> अमृत के घूँट

अमृत के घूँट

रामचरण महेन्द्र

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2007
पृष्ठ :185
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 5984
आईएसबीएन :81-293-0130-X

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प्रस्तुत है पुस्तक अमृत के घूँट.....

पशु-जगत्को लीजिये। बैल, भैंस, घोड़े, गधे, हाथी, बकरी इत्यादि शारीरिक श्रम करनेवाले पशुओंका मुख्य भोजन घास-पात, हरी तरकारियाँ या अनाज रहता है। फलतः वे सहनशील, शान्त, मृदु होते हैं। इसके विपरीत सिंह, चीते, भेड़िये, बिल्ली इत्यादि मांसभक्षी, चंचल, उग्र, क्रोधी, उत्तेजक स्वभावके बन जाते है। घास-पात तथा मांसके भोजनका यह प्रभाव है। इसी प्रकार उत्तेजक भोजन करनेवाले व्यक्ति कामी, क्रोधी, झगड़ालू, अशिष्ट होते हैं। विलासी भोजन करनेवाले आलस्यमें डूबे रहते हैं; दिन-रातमें दस-बारह घंटे वे सोकर ही नष्ट कर देते हैं। सात्त्विक भोजन करनेवाले हलके, चुस्त, सत्-कार्योंके प्रति रुचि प्रदर्शित करनेवाले, कम सोनेवाले और मधुर स्वभावके होते हैं। उन्हें कामवासना अधिक नहीं सताती। उनके आन्तरिक अवयवोंमें विष-विकार एकत्रित नहीं होते। जहाँ अधिक भोजन करनेवाले अजीर्ण, सिरदर्द, कब्ज, सुस्तीसे परेशान रहते हैं, वहाँ कम भोजन करनेवालोंके आन्तरिक अवयव शरीरमें एकत्रित होनेवाले कूड़े-कचड़ेको बाहर फेंकते रहते है, विष-संचय नहीं हो पाता।

भोजनकी उपयोगिता स्पष्ट करते हुए एक वैद्य-विशारद लिखते हैं-'भोजनसे शरीरका छीजन, जो हर समय होता रहता है, दूर होता है। यदि यह छीजन दूर न होगा तो कोष दुर्बल हो जायँगे और चूँकि शरीर कोषोंका एक समूह है, कोषके दुर्बल होनेसे सम्पूर्ण शरीर दुर्बल हो जायगा। कोषोंको वे ही पदार्थ मिलने चाहिये, जिनकी उन्हें आवश्यकता हो, जैसे गरमी तथा स्फूर्ति

देनेवाले, उनको पुष्ट करने और अच्छी हालतमें रखनेवाले पदार्थ। कोषोंके अंशोंके टूटने-फूटनेसे शरीरमें बहुत-से विषैले अम्ल-पदार्थ एकत्रित हो जाते हैं। इनको दूर करनेके लिये क्षार बनानेवाले पदार्थ (पके-मीठे फल, खट्टे फल, नीबू, आम, चकोतरे, अनन्नास, रसभरी, कच्ची या प्राकृतिक ढंगसे पकायी गयी साग, सब्जी, दूध, घी, मीठा, दही, छाछ) खाने चाहिये।

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    अनुक्रम

  1. निवेदन
  2. आपकी विचारधारा की सही दिशा यह है
  3. हित-प्रेरक संकल्प
  4. सुख और स्वास्थ के लिये धन अनिवार्य नहीं है
  5. रुपये से क्या मिलता है और क्या नहीं
  6. चिन्ता एक मूर्खतापूर्वक आदत
  7. जीवन का यह सूनापन!
  8. नये ढंग से जीवन व्यतीत कीजिये
  9. अवकाश-प्राप्त जीवन भी दिलचस्प बन सकता है
  10. जीवन मृदु कैसे बने?
  11. मानव-हृदय में सत्-असत् का यह अनवरत युद्ध
  12. अपने विवेकको जागरूक रखिये
  13. कौन-सा मार्ग ग्रहण करें?
  14. बेईमानी एक मूर्खता है
  15. डायरी लिखने से दोष दूर होते हैं
  16. भगवदर्पण करें
  17. प्रायश्चित्त कैसे करें?
  18. हिंदू गृहस्थ के लिये पाँच महायज्ञ
  19. मनुष्यत्व को जीवित रखनेका उपाय-अर्थशौच
  20. पाठ का दैवी प्रभाव
  21. भूल को स्वीकार करने से पाप-नाश
  22. दूसरों की भूलें देखने की प्रवृत्ति
  23. एक मानसिक व्यथा-निराकरण के उपाय
  24. सुख किसमें है?
  25. कामभाव का कल्याणकारी प्रकाश
  26. समस्त उलझनों का एक हल
  27. असीम शक्तियोंकी प्रतीक हमारी ये देवमूर्तियाँ
  28. हिंदू-देवताओंके विचित्र वाहन, देश और चरित्र
  29. भोजनकी सात्त्विकता से मनकी पवित्रता आती है!
  30. भोजन का आध्यात्मिक उद्देश्य
  31. सात्त्विक आहार क्या है?
  32. मन को विकृत करनेवाला राजसी आहार क्या है?
  33. तामसी आहार क्या है?
  34. स्थायी सुख की प्राप्ति
  35. मध्यवर्ग सुख से दूर
  36. इन वस्तुओं में केवल सुखाभास है
  37. जीवन का स्थायी सुख
  38. आन्तरिक सुख
  39. सन्तोषामृत पिया करें
  40. प्राप्त का आदर करना सीखिये
  41. ज्ञान के नेत्र
  42. शान्ति की गोद में
  43. शान्ति आन्तरिक है
  44. सबसे बड़ा पुण्य-परमार्थ
  45. आत्मनिर्माण कैसे हो?
  46. परमार्थ के पथपर
  47. सदुपदेशों को ध्यानपूर्वक सुनिये
  48. गुप्त सामर्थ्य
  49. आनन्द प्राप्त करनेके अचूक उपाय
  50. अपने दिव्य सामर्थ्यों को विकसित कीजिये
  51. पाप से छूटने के उपाय
  52. पापसे कैसे बचें?
  53. पापों के प्रतीकार के लिये झींके नहीं, सत्कर्म करे!
  54. जीवन का सर्वोपरि लाभ
  55. वैराग्यपूर्ण स्थिति
  56. अपने-आपको आत्मा मानिये
  57. ईश्वरत्व बोलता है
  58. सुखद भविष्य में विश्वास करें
  59. मृत्यु का सौन्दर्य

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