गीता प्रेस, गोरखपुर >> अमृत के घूँट अमृत के घूँटरामचरण महेन्द्र
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प्रस्तुत है पुस्तक अमृत के घूँट.....
पशु-जगत्को लीजिये। बैल, भैंस, घोड़े, गधे, हाथी, बकरी इत्यादि शारीरिक श्रम करनेवाले पशुओंका मुख्य भोजन घास-पात, हरी तरकारियाँ या अनाज रहता है। फलतः वे सहनशील, शान्त, मृदु होते हैं। इसके विपरीत सिंह, चीते, भेड़िये, बिल्ली इत्यादि मांसभक्षी, चंचल, उग्र, क्रोधी, उत्तेजक स्वभावके बन जाते है। घास-पात तथा मांसके भोजनका यह प्रभाव है। इसी प्रकार उत्तेजक भोजन करनेवाले व्यक्ति कामी, क्रोधी, झगड़ालू, अशिष्ट होते हैं। विलासी भोजन करनेवाले आलस्यमें डूबे रहते हैं; दिन-रातमें दस-बारह घंटे वे सोकर ही नष्ट कर देते हैं। सात्त्विक भोजन करनेवाले हलके, चुस्त, सत्-कार्योंके प्रति रुचि प्रदर्शित करनेवाले, कम सोनेवाले और मधुर स्वभावके होते हैं। उन्हें कामवासना अधिक नहीं सताती। उनके आन्तरिक अवयवोंमें विष-विकार एकत्रित नहीं होते। जहाँ अधिक भोजन करनेवाले अजीर्ण, सिरदर्द, कब्ज, सुस्तीसे परेशान रहते हैं, वहाँ कम भोजन करनेवालोंके आन्तरिक अवयव शरीरमें एकत्रित होनेवाले कूड़े-कचड़ेको बाहर फेंकते रहते है, विष-संचय नहीं हो पाता।
भोजनकी उपयोगिता स्पष्ट करते हुए एक वैद्य-विशारद लिखते हैं-'भोजनसे शरीरका छीजन, जो हर समय होता रहता है, दूर होता है। यदि यह छीजन दूर न होगा तो कोष दुर्बल हो जायँगे और चूँकि शरीर कोषोंका एक समूह है, कोषके दुर्बल होनेसे सम्पूर्ण शरीर दुर्बल हो जायगा। कोषोंको वे ही पदार्थ मिलने चाहिये, जिनकी उन्हें आवश्यकता हो, जैसे गरमी तथा स्फूर्ति
देनेवाले, उनको पुष्ट करने और अच्छी हालतमें रखनेवाले पदार्थ। कोषोंके अंशोंके टूटने-फूटनेसे शरीरमें बहुत-से विषैले अम्ल-पदार्थ एकत्रित हो जाते हैं। इनको दूर करनेके लिये क्षार बनानेवाले पदार्थ (पके-मीठे फल, खट्टे फल, नीबू, आम, चकोतरे, अनन्नास, रसभरी, कच्ची या प्राकृतिक ढंगसे पकायी गयी साग, सब्जी, दूध, घी, मीठा, दही, छाछ) खाने चाहिये।
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