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गीता प्रेस, गोरखपुर >> अमृत के घूँट

अमृत के घूँट

रामचरण महेन्द्र

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2007
पृष्ठ :185
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 5984
आईएसबीएन :81-293-0130-X

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प्रस्तुत है पुस्तक अमृत के घूँट.....

भोजनकी सात्त्विकता से मनकी पवित्रता आती है!

'जैसा भोजन वैसा विचार' या 'जैसा अन्न वैसा मन' इस तथ्यमें गहरी सत्यता है। हम जैसा कुछ खाते हैं, वैसा ही मन बनता है, खाये हुएसे ही रुधिरकी उत्पत्ति होती है। इसमें वे ही गुण आते हैं, जो गुण हमारे भोजनके थे। भोजन हमारे मन, बुद्धि, अन्तःकरणके निर्माणमें सहायक है। भारतीय संस्कृतिमें अध्यात्ममार्गका अवस्थ्यन करनेवाले योगी-महात्मा, ऋषि-मुनि इत्यादि सात्त्विक प्रवृत्तिके व्यक्तियोंके लिये सात्त्विक भोजनकी ही योजना है।

मनुष्यकी सर्वांगीण उन्नति तब होती है, जब वह प्राकृतिक रूपसे मिलनेवाले भोजनसे अपने-आपको पुष्ट करता रहे। मृदुता, सरलता, सहानुभूति, शान्ति अथवा उग्रता, क्रोध, कपट, घृणा इत्यादि सब स्वभावके गुण-दोष भोजनपर ही निर्भर करते हैं। जो व्यक्ति उत्तेजक भोजन करते हैं, वे संयमसे किस प्रकार रह सकते हैं? वे शुद्ध बुद्धिका विकास कैसे कर सकते हैं? और वे कैसे दीर्घायु हो सकते हैं? राजसी आहार करनेवाले व्यक्ति यह भूल जाते हैं कि उत्तेजक भोजन करनेपर भजन-पूजन, स्वाध्याय या संयम सम्भव नहीं है।

हमारे द्वारा प्रयुक्त भोजनका तथा हमारे विचारोंका अन्योन्याश्रित सम्बन्ध है। भोजन हमारे संस्कार बनाता है, जिनके द्वारा हमारे विचार बनते हैं। यदि भोजन सात्त्विक है तो मनमें उत्पन्न होनेवाले विचार सात्त्विक और पवित्र होंगे; इसके विपरीत उत्तेजक या राजसी भोजन करनेवालोंके विचार अशुद्ध और विलासी होंगे। जिन लोगोंमें मांस, अंडे, लहुसन, प्याज, मद्य, चाय, तम्बाकू इत्यादिका प्रयोग किया जाता है, वे प्रायः विलासी विकारमय और गंदे विचारोंसे परिपूर्ण होते हैं। उनकी कामेन्द्रियाँ उत्तेजक रहती हैं, मन कुकल्पनाओंसे परिपूर्ण रहता है। क्षणिक प्रलोभनमें अन्तर्द्वन्द्वसे परिपूर्ण हो जाता है। भोजन हमारे स्वभाव, रुचि तथा विचारोंका निर्माता है।

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    अनुक्रम

  1. निवेदन
  2. आपकी विचारधारा की सही दिशा यह है
  3. हित-प्रेरक संकल्प
  4. सुख और स्वास्थ के लिये धन अनिवार्य नहीं है
  5. रुपये से क्या मिलता है और क्या नहीं
  6. चिन्ता एक मूर्खतापूर्वक आदत
  7. जीवन का यह सूनापन!
  8. नये ढंग से जीवन व्यतीत कीजिये
  9. अवकाश-प्राप्त जीवन भी दिलचस्प बन सकता है
  10. जीवन मृदु कैसे बने?
  11. मानव-हृदय में सत्-असत् का यह अनवरत युद्ध
  12. अपने विवेकको जागरूक रखिये
  13. कौन-सा मार्ग ग्रहण करें?
  14. बेईमानी एक मूर्खता है
  15. डायरी लिखने से दोष दूर होते हैं
  16. भगवदर्पण करें
  17. प्रायश्चित्त कैसे करें?
  18. हिंदू गृहस्थ के लिये पाँच महायज्ञ
  19. मनुष्यत्व को जीवित रखनेका उपाय-अर्थशौच
  20. पाठ का दैवी प्रभाव
  21. भूल को स्वीकार करने से पाप-नाश
  22. दूसरों की भूलें देखने की प्रवृत्ति
  23. एक मानसिक व्यथा-निराकरण के उपाय
  24. सुख किसमें है?
  25. कामभाव का कल्याणकारी प्रकाश
  26. समस्त उलझनों का एक हल
  27. असीम शक्तियोंकी प्रतीक हमारी ये देवमूर्तियाँ
  28. हिंदू-देवताओंके विचित्र वाहन, देश और चरित्र
  29. भोजनकी सात्त्विकता से मनकी पवित्रता आती है!
  30. भोजन का आध्यात्मिक उद्देश्य
  31. सात्त्विक आहार क्या है?
  32. मन को विकृत करनेवाला राजसी आहार क्या है?
  33. तामसी आहार क्या है?
  34. स्थायी सुख की प्राप्ति
  35. मध्यवर्ग सुख से दूर
  36. इन वस्तुओं में केवल सुखाभास है
  37. जीवन का स्थायी सुख
  38. आन्तरिक सुख
  39. सन्तोषामृत पिया करें
  40. प्राप्त का आदर करना सीखिये
  41. ज्ञान के नेत्र
  42. शान्ति की गोद में
  43. शान्ति आन्तरिक है
  44. सबसे बड़ा पुण्य-परमार्थ
  45. आत्मनिर्माण कैसे हो?
  46. परमार्थ के पथपर
  47. सदुपदेशों को ध्यानपूर्वक सुनिये
  48. गुप्त सामर्थ्य
  49. आनन्द प्राप्त करनेके अचूक उपाय
  50. अपने दिव्य सामर्थ्यों को विकसित कीजिये
  51. पाप से छूटने के उपाय
  52. पापसे कैसे बचें?
  53. पापों के प्रतीकार के लिये झींके नहीं, सत्कर्म करे!
  54. जीवन का सर्वोपरि लाभ
  55. वैराग्यपूर्ण स्थिति
  56. अपने-आपको आत्मा मानिये
  57. ईश्वरत्व बोलता है
  58. सुखद भविष्य में विश्वास करें
  59. मृत्यु का सौन्दर्य

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