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गीता प्रेस, गोरखपुर >> अमृत के घूँट

अमृत के घूँट

रामचरण महेन्द्र

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2007
पृष्ठ :185
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 5984
आईएसबीएन :81-293-0130-X

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प्रस्तुत है पुस्तक अमृत के घूँट.....


देवताओंके सेनापति कार्तिकेयको मोरका वाहन दिया गया है। कहा गया है-
विकसदमरनारीत्रनीलाब्जखण्डा-
न्यधिवसति सदा यः संयमाधःकृतानि।
ननु रूचिरकलापे वर्तते यो मसूरे
वितरतु स कुमारो ब्रह्मचर्यश्रियं वः।।

अर्थात् जिन्होंने अपने संयमकी महिमासे देवताओंकी स्त्रियोंके विकसित नील कमलकी पँखुड़ियोंके समान बड़े-बड़े गौरवपूर्ण नेत्रोंको भी नीचा कर दिया है तथा जो रुचिर-कलापी मयूरपर ही स्थित है, वे कुमार कार्तिकेय ब्रह्मचर्यरूपी श्रीका वितरण करें।
मोरको अहिमार या साँपोंको मारनेवाला कहा गया है। 'अहि' शब्दका व्यापक अर्थ लें तो वह उन सब विश्वासघातियोंके लिये भी प्रयुक्त होता है, जो तनिक-से स्वार्थके लिये शत्रुपक्षसे मिलकर सब भेद खोल देते हैं। ऐसे व्यक्तियोंको भी शत्रु ही मानना चाहिये। देवताओंके सेनापति कार्तिकेय ऐसे सब शत्रुओंसे सावधान रहने तथा उन्हें दण्ड देनेवाले हैं। वे शत्रुके सब गुप्तचरों-आस्तीनके साँपोंका नाश करनेवाले हैं। देवसेनापति कुमार कहे गये है। जो सेनापति जितेन्द्रिय होगा, वह निश्चय ही कर्तव्यमार्गपर उठा रहेगा।

तात्पर्य यह है कि हिन्दूधर्मके इन प्रतीकोंमें गूढ़ रहस्य छिपे हुए हैं।

इनके गुप्त मर्मोंको देखकर प्राचीन ऋषियोंकी बुद्धिपर चकित रह जाना पड़ता है। ये हमारे गौरवशाली अतीत, हमारे समीक्षात्मक ज्ञान, नीर-क्षीर-विवेक-बुद्धि और प्रतीकवाद को स्पष्ट करनेवाले हैं। नागरिक जीवनमें पौराणिक देवी-देवताओं द्वारा वे ज्ञान का भण्डार भर देना चाहते थे। खेद है कि आजके भौतिक युगमें हमारे बहुत-से वाहनोंका सच्चा अर्थ स्पष्ट नहीं है, क्योंकि धार्मिक प्रतीकोंके प्रति कुछ श्रद्धा कम होती जा रही है।

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    अनुक्रम

  1. निवेदन
  2. आपकी विचारधारा की सही दिशा यह है
  3. हित-प्रेरक संकल्प
  4. सुख और स्वास्थ के लिये धन अनिवार्य नहीं है
  5. रुपये से क्या मिलता है और क्या नहीं
  6. चिन्ता एक मूर्खतापूर्वक आदत
  7. जीवन का यह सूनापन!
  8. नये ढंग से जीवन व्यतीत कीजिये
  9. अवकाश-प्राप्त जीवन भी दिलचस्प बन सकता है
  10. जीवन मृदु कैसे बने?
  11. मानव-हृदय में सत्-असत् का यह अनवरत युद्ध
  12. अपने विवेकको जागरूक रखिये
  13. कौन-सा मार्ग ग्रहण करें?
  14. बेईमानी एक मूर्खता है
  15. डायरी लिखने से दोष दूर होते हैं
  16. भगवदर्पण करें
  17. प्रायश्चित्त कैसे करें?
  18. हिंदू गृहस्थ के लिये पाँच महायज्ञ
  19. मनुष्यत्व को जीवित रखनेका उपाय-अर्थशौच
  20. पाठ का दैवी प्रभाव
  21. भूल को स्वीकार करने से पाप-नाश
  22. दूसरों की भूलें देखने की प्रवृत्ति
  23. एक मानसिक व्यथा-निराकरण के उपाय
  24. सुख किसमें है?
  25. कामभाव का कल्याणकारी प्रकाश
  26. समस्त उलझनों का एक हल
  27. असीम शक्तियोंकी प्रतीक हमारी ये देवमूर्तियाँ
  28. हिंदू-देवताओंके विचित्र वाहन, देश और चरित्र
  29. भोजनकी सात्त्विकता से मनकी पवित्रता आती है!
  30. भोजन का आध्यात्मिक उद्देश्य
  31. सात्त्विक आहार क्या है?
  32. मन को विकृत करनेवाला राजसी आहार क्या है?
  33. तामसी आहार क्या है?
  34. स्थायी सुख की प्राप्ति
  35. मध्यवर्ग सुख से दूर
  36. इन वस्तुओं में केवल सुखाभास है
  37. जीवन का स्थायी सुख
  38. आन्तरिक सुख
  39. सन्तोषामृत पिया करें
  40. प्राप्त का आदर करना सीखिये
  41. ज्ञान के नेत्र
  42. शान्ति की गोद में
  43. शान्ति आन्तरिक है
  44. सबसे बड़ा पुण्य-परमार्थ
  45. आत्मनिर्माण कैसे हो?
  46. परमार्थ के पथपर
  47. सदुपदेशों को ध्यानपूर्वक सुनिये
  48. गुप्त सामर्थ्य
  49. आनन्द प्राप्त करनेके अचूक उपाय
  50. अपने दिव्य सामर्थ्यों को विकसित कीजिये
  51. पाप से छूटने के उपाय
  52. पापसे कैसे बचें?
  53. पापों के प्रतीकार के लिये झींके नहीं, सत्कर्म करे!
  54. जीवन का सर्वोपरि लाभ
  55. वैराग्यपूर्ण स्थिति
  56. अपने-आपको आत्मा मानिये
  57. ईश्वरत्व बोलता है
  58. सुखद भविष्य में विश्वास करें
  59. मृत्यु का सौन्दर्य

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