गीता प्रेस, गोरखपुर >> अमृत के घूँट अमृत के घूँटरामचरण महेन्द्र
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प्रस्तुत है पुस्तक अमृत के घूँट.....
देवताओंके सेनापति कार्तिकेयको मोरका वाहन दिया गया है। कहा गया है-
विकसदमरनारीत्रनीलाब्जखण्डा-
न्यधिवसति सदा यः संयमाधःकृतानि।
ननु रूचिरकलापे वर्तते यो मसूरे
वितरतु स कुमारो ब्रह्मचर्यश्रियं वः।।
अर्थात् जिन्होंने अपने संयमकी महिमासे देवताओंकी स्त्रियोंके विकसित नील कमलकी पँखुड़ियोंके समान बड़े-बड़े गौरवपूर्ण नेत्रोंको भी नीचा कर दिया है तथा जो रुचिर-कलापी मयूरपर ही स्थित है, वे कुमार कार्तिकेय ब्रह्मचर्यरूपी श्रीका वितरण करें।
मोरको अहिमार या साँपोंको मारनेवाला कहा गया है। 'अहि' शब्दका व्यापक अर्थ लें तो वह उन सब विश्वासघातियोंके लिये भी प्रयुक्त होता है, जो तनिक-से स्वार्थके लिये शत्रुपक्षसे मिलकर सब भेद खोल देते हैं। ऐसे व्यक्तियोंको भी शत्रु ही मानना चाहिये। देवताओंके सेनापति कार्तिकेय ऐसे सब शत्रुओंसे सावधान रहने तथा उन्हें दण्ड देनेवाले हैं। वे शत्रुके सब गुप्तचरों-आस्तीनके साँपोंका नाश करनेवाले हैं। देवसेनापति कुमार कहे गये है। जो सेनापति जितेन्द्रिय होगा, वह निश्चय ही कर्तव्यमार्गपर उठा रहेगा।
तात्पर्य यह है कि हिन्दूधर्मके इन प्रतीकोंमें गूढ़ रहस्य छिपे हुए हैं।
इनके गुप्त मर्मोंको देखकर प्राचीन ऋषियोंकी बुद्धिपर चकित रह जाना पड़ता है। ये हमारे गौरवशाली अतीत, हमारे समीक्षात्मक ज्ञान, नीर-क्षीर-विवेक-बुद्धि और प्रतीकवाद को स्पष्ट करनेवाले हैं। नागरिक जीवनमें पौराणिक देवी-देवताओं द्वारा वे ज्ञान का भण्डार भर देना चाहते थे। खेद है कि आजके भौतिक युगमें हमारे बहुत-से वाहनोंका सच्चा अर्थ स्पष्ट नहीं है, क्योंकि धार्मिक प्रतीकोंके प्रति कुछ श्रद्धा कम होती जा रही है।
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