गीता प्रेस, गोरखपुर >> अमृत के घूँट अमृत के घूँटरामचरण महेन्द्र
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प्रस्तुत है पुस्तक अमृत के घूँट.....
मन को विकृत करनेवाला राजसी आहार क्या है?
राजसी आहार
कट्वम्ललवणात्युतीक्ष्णरूक्षविदाहिनः।
आहारा राजसस्येष्टा दुःखशोकामयप्रदाः।।
'कड़वा, खट्टा, नमकीन, बहुत गरम, तीखा, रूखा, जलन पैदा करनेवाला, ऐसे दुःख, शोक और रोग उत्पन्न करनेवाले आहार राजस लोगोंको प्रिय होते है।' राजसी आहारका प्रत्यक्ष प्रभाव हमारे मन तथा इन्द्रियोंपर पड़ता है। मनमें कुकल्पनाएँ वासनाकी उत्तेजना और इन्द्रियलोलुपता उत्पन्न होती है। मनुष्य कामी, क्रोधी, लालची और पापी बन जाता है; उसके रोग, शोक, दुःख, दैन्य अभिवृद्धिको प्राप्त होते हैं। मनुष्यकी आयु तेज, सामर्थ्य और सौभाग्यका तिरोभाव होता है। बुद्धि मलिन होती है।
राजसी आहारकी सूची देखिये
करेला, नीम, इमली, बहुत नमकीन, सोडा आदि क्षार गरम-गरम चीजें, राई, गरम मसाला, भाड़के भूजे पदार्थ, लाल मिर्च, तेलके तले हुए गरिष्ठ पदार्थ बाजारमें बिकनेवाली मिठाइयाँ रबड़ी, पूडी-कचौडियाँ मालपुआ, तली हुई दालें, अधिक मिर्च-मसालेवाले पदार्थ, उत्तेजक तरकारियाँ केवल जिह्वाके स्वादमात्रके लिये तैयार की गयी बाजारू चाटे, पकौड़ी, समोसे, दही-बड़े, खस्ता कचौड़ियाँ मसालेदार काबुली चने, चाय-ये सभी चीजें दुःख, चिन्ता और रोग पैदा करती हैं। इनके अतिरिक्त खानेका पान-चूना, तम्बाकू आदि भी राजसिक हैं।
हिन्दू-शास्त्रमें प्याज तथा लहसुन वर्जित हैं। इसका प्रमुख कारण यह है कि ये उत्तेजना उत्पन्न करनेवाली तरकारियाँ है। ये तमोगुणी है। राजसी, तामसी, विलासी व्यक्ति इनका प्रयोग करते है, इनसे इन्द्रियाँ कामुक हो उठती है। इन्हें खानेवाले लोग विलासी, क्रोधी, विक्षुब्ध और उत्तेजनाओंमें फँसे रहते हैं। उनके मुँहसे दुर्गन्ध आती है।
दालोंमें उर्द-मसूर पौष्टिक होते हुए भी अपने गुणोंमें तामसिक हैं। यही कारण है कि हिन्दू मसूरकी दालसे परहेज करते हैं। वह ठाकुरजीके भोगमें निषिद्ध है। चटनियाँ अचार, तेल, खटाई, सोंठ भी राजसिक है। रोटीमें नमक डालकर पकानेसे वह भी मनकी राजसिक वृत्तिको प्रोत्साहित करती है। कुछ लोग बर्फके बिना पानी नहीं पी सकते; सोडा-लैमन बार-बार पीते है। आध्यात्मिक दृष्टिसे यह बुरा है। राजसी आहारसे मन चंचल, क्रोधी, लालची होता और विषय-वासनामे लगता है।
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