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जीवनी/आत्मकथा >> सत्य के प्रयोग

सत्य के प्रयोग

महात्मा गाँधी

प्रकाशक : राजपाल एंड सन्स प्रकाशित वर्ष : 2018
पृष्ठ :188
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 6042
आईएसबीएन :9788170287285

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प्रस्तुत है महात्मा गाँधी की आत्मकथा ....


रायचन्द भाई के प्रति इतना आदर रखते हुए भी मैंउन्हें धर्मगुरु के रूप अपने हृदय में स्थान न दे सका। मेरी वह खोज आज भी चल रहीं हैं।

हिन्दू धर्म में गुरुपद को जो महत्त्व प्राप्त हैं, उसमें मैं विश्वास करता हूँ। 'गुरु बिन ज्ञान न होय', इस वचन में बहुत कछसच्चाई हैं। अक्षर-ज्ञान देनेवाले अपूर्ण शिक्षक से काम चलाया जा सकता हैं, पर आत्मदर्शन कराने वाले अपूर्ण शिक्षक से तो चलाया ही नहीं जो सकता।गुरुपद सम्पूर्ण ज्ञानी को ही दिया जा सकता हैं। गुरु की खोज में ही सफलतानिहित हैं, क्योंकि शिष्य की योग्यता के अनुसार ही गुरु मिलता हैं। इसकाअर्थ यह कि योग्यता-प्राप्ति के लिए प्रत्येक साधक को सम्पूर्ण प्रयत्नकरने का अधिकार हैं, और इस प्रयत्न का फल ईश्वराधीन हैं।

तात्पर्य यह हैं कि यद्यपि मैं रायचन्द भाई को अपने हृदय का स्वामी नहीं बना सका,तो भी मुझे समय-समय पर उनका सहारा किस प्रकार मिला हैं, इसे हम आगे देखेंगे। यहाँ तो इतना कहना काफी होगा कि मेरे जीवन पर प्रभाव डालने वालेआधुनिक पुरुष तीन हैं: रायचन्ज भाई ने अपने सजीव सम्पर्क से, टॉलस्टॉय ने'वैकुण्ठ तेरे हृदय में हैं' नामक अपनी पुस्तक से और रसिकन ने 'अन्टु दिसलास्ट' नामक पुस्तक से मुझे चकित कर दिया। पर इन प्रसंगों की चर्चा आगेयथास्य़ान होगी।

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