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जीवनी/आत्मकथा >> सत्य के प्रयोग

सत्य के प्रयोग

महात्मा गाँधी

प्रकाशक : राजपाल एंड सन्स प्रकाशित वर्ष : 2018
पृष्ठ :188
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 6042
आईएसबीएन :9788170287285

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प्रस्तुत है महात्मा गाँधी की आत्मकथा ....


अब्दुल्ला सेठ बहुत कमपढ़े लिखे थे, पर उनके पास अनुभव का ज्ञान बहुत था। उनकी बुद्धि तीव्र थी और स्वयं उन्हें इसका भान था। रोज के अभ्यास से उन्होंने सिर्फ बातचीतकरने लायक अंग्रेजी का ज्ञान प्राप्त कर लिया था। इस पर अपनी इस अंग्रेजी के द्वारा वे अपना सब काम निकाल लेते थे। वे बैंक के मैंनेजरों से बातचीतकरते थे, यूरोपियन व्यापारियों के साथ सौदे कर लेते थे और वकीलो को अपनेमामले समझा सकते थे। हिन्दुस्तानी उनकी बहुत इज्जत करते थे। उन दिनों इनकीफर्म हिन्दुस्तानियों की फर्मों में सबसे बड़ी अथवा बड़ी फर्मों में एक तो थी ही। अब्दुल्ला सेठ का स्वभाव वहमी था।

उन्हें इस्लाम का अभिमान था। वे तत्त्वज्ञान की चर्चा के शौकीन थे। अरबी नहीं जानते थे, फिरभी कहना होगा कि उन्हें कुरान-शरीफ की और आम तौर पर इस्लाम के धार्मिक साहित्य की अच्छी जानकारी थी। दृष्टान्त तो उन्हें कण्ठाग्र ही थे। उनकेसहवास से मुझे इस्लाम का काफी व्यावहारिक ज्ञान हो गया। हम एक-दूसरे को पहचाने लगे। उसके बाद तो वे मेरे साथ खूब धर्म-चर्चा करते थे।

वे दूसरे या तीसरे दिन मुझे डरबन की अदालत दिखाने ले गये। वहाँ कुछ जान-पहचानकरायी। अदालत में मुझे अपने वकील के पास बैठाया। मजिस्ट्रेट मुझे बार-बारदेखता रहा। उसने मुझे पगड़ी उतारने के लिए कहा। मैंने इन्कार किया औरअदालत छोड़ दी।

मेरे भाग्य में यहाँ भी लड़ाई ही बदी थी।

अब्दुल्ला सेठ ने मुझे पगड़ी उतारने का रहस्य समझाया, 'मुसलमानी पोशाक पहना हुआ आदमीअपनी मुसलमानी पगड़ी पहन सकता हैं। पर हिन्दुस्तानियो को अदालत में पैर रखते ही अपनी पगड़ी उतार लेनी चाहिये। '

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