जीवनी/आत्मकथा >> सत्य के प्रयोग सत्य के प्रयोगमहात्मा गाँधी
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प्रस्तुत है महात्मा गाँधी की आत्मकथा ....
मैंनेदेखा कि इस मामले का दार-मदार बहियों पर हैं। जिसे बही-खाते की जानकारी हो वही इस मामले को समझ और समझा सकता हैं। जब मुनीम नामे की बात करता तो मैंपरेशान होता। मैं पी. नोट का मतलब नहीं जानता था। कोश में यह शब्द न मिलताथा। जब मैंने मुनीम के सामनेे अपना अज्ञान प्रकट किया जब उससे पता चला किपी. नोट का मतलब प्रामिसरी नोट हैं। मैंने बही-खाते की पुस्तके खरीदी औरपढ़ डाली। कुछ आत्म विश्वास अत्पन्न हुआ। मामला समझ में आया। मैंने देखाकि अब्दुल्ला सेठ बही-खाता लिखना नहीं जानते थे। पर उन्होंने व्यावहारिकज्ञान इतना अधिक प्राप्त कर लिया था कि वे बही-खाते की गुत्थियाँ फौरनसुलझा सकते थे। मैंने उनसे कहा, 'मैं प्रिटोरिया जाने को तैयार हूँ।' सेठने कहा, 'आप कहाँ उतरेंगे?'
मैंने जवाब दिया, 'जहाँ आप कहे।'
'तो मैं अपने वकील को लिखूँगा। वे आपके लिए ठहरने का प्रबंध करेंगे।प्रिटोरिया में मेरे मेंमन दोस्त हैं। उन्हें मैं अवश्य लिखूँगा, पर उनके यहाँ आपका ठहरना ठीक न होगा। वहाँ हमारे प्रतिपक्षी की अच्छी रसाई है।आपके नाम मेरे निजी कागज-पत्र पहुँचे और उनमे से कोई उन्हें पढ़ ले तो हमारे मुकदमे को नुकसान पहुँच सकता हैं। उनके साथ जितना कम संबंध रहे,उतना ही अच्छा हैं।'
मैंने कहा, 'आपके वकील जहाँ रखेंगे वहीं मैं रहूँगा, अथवा मैं कोई अलग घर खोज लूँगा। आप निश्चिंत रहिये, आपकी एक भीव्यक्तिगत बात बाहर न जायेगी। पर मैं मिलता-जुलता तो सभी से रहूँगा। मुझे तो प्रतिपक्षी से मित्रता कर लेनी हैं। मुझ से बन पड़ा तो मैं इस मुकदमेको आपस में निबटाने की भी कोशिश करुँगा। आखिर तैयब सेठ आपके रिश्तेदार ही तो हैं न?'
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