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जीवनी/आत्मकथा >> सत्य के प्रयोग

सत्य के प्रयोग

महात्मा गाँधी

प्रकाशक : राजपाल एंड सन्स प्रकाशित वर्ष : 2018
पृष्ठ :188
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 6042
आईएसबीएन :9788170287285

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प्रस्तुत है महात्मा गाँधी की आत्मकथा ....


प्रतिपक्षी स्व. तैयब हाजी खानमहमम्द अब्दुल्ला सेठके निकट संबंधी थे। मैंने देखा कि मेरी इस बात पर अब्दुल्ला सेठ कुछ चौंके। पर उस समय तक मुझे जरबन पहुँचे छह-सात दिन हो चुके थे। हम एक-दूसरेको जानने और समझने लग गये थे। मैं अब 'सफेद हाथी' लगभग नहीं रहा था। वेबोले, 'हाँ.. आ.. आ, यदि समझोता हो जाये तो उसके जैसी भली बात तो कोई हैंही नहीं। पर हम रिश्तेदार हैं, इसलिए एक-दूसरे को अच्छी तरह पहचानते हैं।तैयब सेठ जल्दी मानने वाले नहीं हैं। हम भोलापन दिखाये तो वे हमारे पेट कीबात निकालवा ले और फिर हमको फँसा ले। इसलिए आप जो कुछ करे सो होशियार रहकर कीजिये।'

मैं सातवें या आठवे दिन डरबन से रवाना हुआ। मेरे लिए पहले दर्जे का टिकट कटाया गया। वहाँ रेल में सोने की सुविधा के लिए पाँचशिलिंग का अलग टिकट कटाना होता था। अब्दुल्ला सेठ ने उसे कटाने का आग्रहकिया, पर मैंने हठवश अभिमानवश और पाँच शिलिंग बचाने के विचार से बिस्तर काटिकट काटने से इनकार कर दिया।

अब्दुल्ला सेठ ने चेताया, 'देखिये,यह देश दूसरा हैं, हिन्दुस्तान नहीं हैं। खुदा की मेंहरबानी हैं। आप पैसेकी कंजूसी न कीजिये। आवश्यक सुविधा प्राप्त कर लीजिये।'

मैंने उन्हें धन्यवाद दिया और निश्चिंत रहने को कहा।

ट्रेन लगभग नौ बजे नेटाल की राजधानी मेंरित्सबर्ग पहुँची। यहाँ बिस्तर दिया जाताथा। रेलवे के किसी नौकर ने आकर पूछा, 'आपको बिस्तर की जरूरत हैं?'

मैंने कहा, 'मेरे पास अपना बिस्तर हैं।'

वह चला गया। इस बीच एक यात्री आया। उसने मेरी तरफ देखा। मुझे भिन्न वर्ण कापाकर वह परेशान हुआ, बाहर निकला और एक-दो अफसरो को लेकर आया। किसी ने मुझेकुछ न कहा। आखिर एक अफसर आया। उसने कहा, 'इधर आओ। तुम्हें आखिरी डिब्बेमें जाना हैं।'

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