लोगों की राय

जीवनी/आत्मकथा >> सत्य के प्रयोग

सत्य के प्रयोग

महात्मा गाँधी

प्रकाशक : राजपाल एंड सन्स प्रकाशित वर्ष : 2018
पृष्ठ :188
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 6042
आईएसबीएन :9788170287285

Like this Hindi book 4 पाठकों को प्रिय

57 पाठक हैं

प्रस्तुत है महात्मा गाँधी की आत्मकथा ....

रंग-भेद


न्यायालय का चिह्न तराजू हैं। एक निष्पक्ष, अंधी परन्तु चतुर बुढिया उसे थामे हुए हैं। विधाता ने उसे अंधीबनाया हैं, जिससे वह मुँह देखकर तिलक न करे, बल्कि जो व्यक्ति गुण में योग्य है उसी को टीका लगाये। इसके विपरीत, नेटाल के न्यायालय से वहाँ कीवकील सभा मुँह देखकर तिलक करवाने के लिए तैयार हो गयी थी। परन्तु अदालत नेइस अवसर पर अपने चिह्न की प्रतिष्ठा रख ली।

मुझे वकालत की सनद लेनी थी। मेरे पास बम्बई के हाईकोर्ट का प्रमाण-पत्र था। विलायत काप्रमाण-पत्र बम्बई के हाईकोर्ट के कार्यालय में था। प्रवेश के प्रार्थना पत्र साथ सदाचरण के दो प्रमाण पत्रों की आवश्यकता मानी जाती थी। मैंनेसोचा कि ये प्रमाण-पत्र गोरो के होगे तो ठीक रहेगा। इसलिए अब्दुल्ला सेठ के द्वारा मेरे सम्पर्क में आये हुए दो प्रसिद्ध गोरे व्यापारियों केप्रमाण-पत्र मैंने प्राप्त कर लिए थे। प्रार्थना-पत्र किसी वकील के द्वाराभेजा जाना चाहिये था और साधारण नियम यह था कि ऐसा प्रार्थना पत्र एटर्नीजनरल बिना पारिश्रमिक के प्रस्तुत करे। मि. एस्कम्ब एटर्नी जनरल थे। हम यह तो जानते थे कि वे अब्दुल्ला सेठ के वकील थे। मैं उनसे मिला और उन्होंनेखुशी से मेरा प्रार्थना-पत्र प्रस्तुत करना स्वीकार किया।

इतने में अचानक वकील-सभा की ओर से मुझे नोटिस मिला। नोटिस में न्यायालय मेंमेरे प्रवेश का विरोध किया था। उसमें एक कारण यह दिया गया था कि वकालत के लिए दिये गये प्रमाण-पत्र के साथ मैंने मूल प्रमाण-पत्र नत्थी नहीं कियाथा। पर विरोध का मुख्य मुद्दा यह था कि अदालत में वकीलो की भरती करने के नियम बनाते समय यह सम्भव न माना गया होगा कि कोई काला या पीला आदमी कभीप्रवेश के लिए प्रार्थना-पत्र देगा। नेटाल गोरो के साहस से बना था, इसलिएउसमें गोरो की प्रधानता होनी चाहिये। यदि काले वकील प्रवेश पाने लगेंगे,तो धीरे-धीरे गोरो की प्रधानता जाती रहेगी औऱ उनकी रक्षा की दीवार नष्ट होजायेगी।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book