लोगों की राय

जीवनी/आत्मकथा >> सत्य के प्रयोग

सत्य के प्रयोग

महात्मा गाँधी

प्रकाशक : राजपाल एंड सन्स प्रकाशित वर्ष : 2018
पृष्ठ :188
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 6042
आईएसबीएन :9788170287285

Like this Hindi book 4 पाठकों को प्रिय

57 पाठक हैं

प्रस्तुत है महात्मा गाँधी की आत्मकथा ....


कमेची को भंगियो की बस्तीमें भी जाना तो था ही। कमेटी के सदस्यों में से एक ही सदस्य मेरे साथ वहाँ जाने को तैयार हुए। भंगियो की बस्ती में जाना और सो भी पाखानो का निरीक्षणकरने के लिए ! पर मुझे तो भंगिययो की बस्ती देखकर सानन्द आश्चर्य हुआ।अपने जीवन में मैं पहली ही बार उस दिन भंगी बस्ती देखने गया था। भंगीभाई-बहनो को हमे देखकर अचम्मा हुआ। मैंने उनके पाखाने देखने की इच्छाप्रकट की। उन्होंने कहा, 'हमारे यहाँ पाखाने कैसे? हमारे पाखाने को जंगलमें हैं। पाखाने तो आप बड़े आदमियो के यहाँ होते है।'

मैंने पूछा, 'तो क्या अपने घर आप हमे देखने देंगे?'

'आईये न भाई साहब ! जहाँ भी आपकी इच्छा हो, जाईये। ये ही हमारे घर हैं।'

मैं अन्दर गया और घर की तथा आंगन की सफाई देखकर खुश हो गया। घर के अन्दर सबकुछ लिपा-पुता देखा। आंगन झाड़ा-बुहारा था ; और जो इने-गिने बरतन थे, वे सब साफ और चमचमाते हुए थे। मुझे इस बस्ती में बीमारी के फैलने का डर नहींदिखायी दिया।

यहाँ में एक पाखाने का वर्णन किये बिना नहीं रह सकता। हर एक घर में नाली तो थी ही। उसमें पानी भी गिराया जाता और पेशाब भीकिया जाता। इसलिए ऐसी कोठरी क्वचित ही मिलती, जिसमे दुर्गन्ध न हो। पर एक घर में तो सोने के कमरे में ही मोरी और पाखाना दोनो देखे ; और घर की वहसारी गंदगी नाली के रास्ते नीचे उतरती थी। उस कोठरी में खड़ा भी नहीं रहा जा सकता था। घर के लोग उसमें सो कैसे सकते थे, इसे पाठक ही सोच ले।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book