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जीवनी/आत्मकथा >> सत्य के प्रयोग

सत्य के प्रयोग

महात्मा गाँधी

प्रकाशक : राजपाल एंड सन्स प्रकाशित वर्ष : 2018
पृष्ठ :188
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 6042
आईएसबीएन :9788170287285

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प्रस्तुत है महात्मा गाँधी की आत्मकथा ....


परंतु इस तरहयदि हिन्दुस्तानियो की प्रतिष्ठा बढ़ी, तो उनके प्रति गोरों का द्वेष भी बढ़ा। गोरों को विश्वास हो गया कि हिन्दुस्तानियों में ढृढतापूर्वक लड़नेकी शक्ति हैं। फलतः उनका डर बढ़ गया। नेटाल की धारासभा में दो कानून पेश हुए, जिनके कारण हिन्दुस्तानियो की की कठिनाईयाँ बढ़ गयी। एक से भारतीयव्यापारियों के धंधे को नुकसान पहुँचा, दुसरे से हिन्दुस्तानियो के आने-जाने पर अंकुश लग गया। सौभाग्य से मताधिकार का लड़ाई के समय यह फैसलाहो चुका था कि हिन्दुस्तानियों के खिलाफ हिन्दुस्तानी होने के नाते कोई कानून नहीं बनाया जा सकता। मतलब यह कि कानून में रंगभेद या जातिभेद नहींहोना चाहिये। इसलिए ऊपर के दोनों कानून उनकी भाषा को देखते हुए तो सब परलागू होते जान पड़ते थे, पर उनका मूल उद्देश्य केवल हिन्दुस्तानी कौम परदबाव डालना था।

इन कानूनों ने मेरा काम बहुत ज्यादा बढ़ा दिया औऱ हिन्दुस्तानियो में जागृति भी बढ़ायी। हिन्दुस्तानियो की ये कानून इस तरहसमझा दिये गये कि इनकी बारीक से बारीक बातों से भी कोई हिन्दुस्तानी अपरिचित न रह सके। हमने इनके अनुवाद भी प्रकाशित कर दिये। झगड़ा आखिरविलायत पहुँचा। पर कानून नामंजूर नहीं हुए।

मेरा अधिकतर समय सार्वजनिक काम में ही बीतने लगा। मनसुखलाल नाजर मेरे साथ रहे। उनके नेटालमें होने की बात मैं ऊपर लिख चुका हूँ। वे सार्वजनिक काम में अधिक हाथ बँटाने लगे, जिससे मेरा काम कुछ हलका हो गया।

मेरी अनुपस्थिति में सेठ आदमजी मियाँखाने अपने मंत्री पद को खूब सुशोभित किया था। उन्होंनेसदस्य बढ़ाये और स्थानीय कांग्रेस के कोष में लगभग एक हजार पौण्ड कीवृद्धि की थी। यात्रियों पर हुए हमले के कारण और उपर्युक्त कानूनों केकारण जो जागृति पैदा हुई, उससे मैंने इस वृद्धि में भी वृद्धि करने काविशेष प्रयत्न किया और कोष में लगभग पाँच हजार पौण्ड जमा हो गये। मेरे मनमें लोभ यह था कि यदि कांग्रेस का स्थायी कोष हो जाये, उसके लिए जमीन लेली जाये और उसका भाड़ा आने लगे तो कांग्रेस निर्भय हो जाये। सार्वजनिकसंस्था का यह मेरा पहला अनुभव था। मैंने अपना विचार साथियों के सामने रखा। उन्होंने उसका स्वागत किया। मकान खरीदे गये और वे भाड़े पर उठा दिये गये।उनके किराये से कांग्रेस का मासिक खर्च आसानी से चलने लगा। सम्पत्ति का सुढृञड ट्रष्ट बन गया। वह सम्पत्ति आज भी मौजूद हैं, पर अन्दर ही अन्दर वहआपसी कलह का कारण बन गयी और जायदाद का किराया आज अदालत में जना होता हैं।

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